हाेली : होलिका दहन में इस बार बाधक नहीं बनेगा भद्रा योग, आगे पढ़ें

भिवानी : होलिका दहन 28 मार्च को होगा और धुलेंडी 29 मार्च को मनाई जाएगी। इस बार होलिका दहन में अशुभ भद्रा योग बाधक नहीं रहेगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6.30 से रात 8.30 बजे तक श्रेष्ठ रहेगा। भद्रा योग इस दिन दोपहर 1.10 बजे तक ही रहेगा, जबकि होलिका दहन शाम को गोधूलि वेला (संध्या का समय) के समय से शुरू होगा।
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भक्त प्रह्लाद की बुआ ने उसे जलाने का प्रयास किया, परंतु आग में वह स्वयं जल गई और प्रह्लाद बच गए, यानी सत्य की जीत हुई। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार होलिका दहन के समय अग्नि की लौ अथवा धुंआ देखकर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है। खास बात यह है कि इस दिन होलिका दहन के दौरान हवा की दिशा से तय होगा कि आगामी एक वर्ष तक का समय व्यापार, कृषि, वित्त, शिक्षा व रोजगार आदि के लिए कैसा होगा।
पंडित कृष्ण कुमार बहल वाले ने ने बताया कि होलिका दहन के समय अग्नि की लौ यदि आसमान की तरफ उठे तो आगामी होली तक सबकुछ अच्छा होता है। खासकर सत्ता और प्रशासनिक क्षेत्रों में बड़े बदलाव होते हैं परंतु यह सकारात्मक होते हैं और कोई बड़ी जनहानि व फिर प्राकृतिक आपदा की आशंका कम ही होती है।
वहीं होलिका दहन की लौ पूर्व की ओर उठती है तो इससे आने वाले समय में धर्म, अध्यात्म, शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में उन्नति के अवसर बढ़ते हैं। लोगों के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। वहीं पश्चिम की ओर होलिका दहन की अग्नि की लौ उठे तो पशुधन को लाभ होता है। आर्थिक प्रगति होती है । हालांकि थोड़ी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका रहती है पर कोई बड़ी हानि नहीं होती है। कृषि क्षेत्र में लाभ-हानि बराबर रहते हैं।
वहीं उत्तर की ओर हवा का रुख रहने पर देश व समाज में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिशा में कुबेर समेत अन्य देवताओं का वास होने से आर्थिक प्रगति होती है। चिकित्सा-शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान होते है। कृषि-व्यापार में उन्नति होती है। वहीं होलिका दहन के वक्त हवा का रुख दक्षिण की ओर हो तो अशांति व क्लेश बना रहता है। झगड़े-विवाद होते हैं। पशुधन की हानि होती है। आपराधिक मामलों में वृद्धि होती है, परंतु न्यायालयीन मामलों में निपटारे भी तेजी से होते हैं।
पंडित ने बताया कि होलिका दहन की रात को दीपावली व शिवरात्रि की तरह महारात्रि की श्रेणी में शामिल किया गया है। होलिका की राख को मस्तक पर लगाने का भी विधान है। ऐसा करने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। इस रात मंत्र जाप करने से वे मंत्र सिद्धि प्राप्त होती है।
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