Bhiwani : गेहूं-आटे में उलझकर रह गई मिड-डे मील योजना

- साढ़े पांच रुपए में नहीं बन पा रहा मीठा दूध का दलिया
- सभी बच्चों के लिए बेसन का पूड़ा बनाना नहीं संभव
Bhiwani : भले ही शिक्षा विभाग बच्चों को दोपहर के वक्त बेहतरीन खाना देने का दावा करती हो, लेकिन हकीकत कोसों परे है। क्योंकि स्कूलों में दिए जाने वाला दोपहर का भोजन गेहूं या आटे के स्टॉक में उलझ गया। कुछ स्कूलों में अभी तक आटे की खेप नहीं पहुंची और न ही गेहूं का स्टाक पहुंच पाया है। जिसकी वजह से उन स्कूल मुखियाओं को चावल की रेसीपी से ही बच्चाें का दोपहर के वक्त पेट भरना पड़ रहा है। यह स्थिति जिले के करीब 25 फीसदी स्कूलों में बनी हुई है। अनेक स्कूल मुखियाओं ने इस बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों से गेहूं का स्टॉक भेजे जाने की डिमांड की, लेकिन अभी तक न तो आटा पहुंच पाया और न ही गेहूं। जिसके चलते यह परेशानी बनी हुई है।
शिक्षा विभाग ने स्कूलों में दोपहर के खाने का नया मैन्यू भेज दिया। नए मैन्यू के हिसाब से एक दिन गेहूं का मीठा दलिया दूध वाला देने के निर्देश दिए गए है। भेजे गए निर्देशों के अनुसार प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम दलिया, 60 ग्राम दूध तथा उसमें निर्धारित मात्रा में चीनी आदि डाली जानी चाहिए। पहले स्कूल में ही गेहूं से दलिया तैयार करवाया जाता था, लेकिन अब कुछ स्कूलों में गेहूं की जगह आटा पहुंचने की वजह से शिक्षकों को दलिया दुकान से खरीदना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग ने खाने के नाम पर प्रत्येक बच्चे के हिसाब से पांच रुपए 45 पैसे की राशि भेजी है। उक्त राशि में निर्धारित मात्रा में न तो दूध खरीदा जा सकता और न ही दलिया। इनके अलावा दलिया बनाने के लिए गैस आदि का भी प्रयोग होता है, जिसके चलते दलिया बनाने में अतिरिक्त बजट खर्च करना पड़ रहा है।
सभी बच्चों के लिए बेसन का पूड़ा बनाना संभव नहीं
शिक्षा विभाग ने दोपहर के भोजन में कुछ नई चीचे डाले जाने के बाद शिक्षकों की जान को आफत आ गई है। चूंकि नई रेसीपी के हिसाब से बच्चों के दोपहर के वक्त एक दिन बेसन का मालपूड़ा खिलाने के निर्देश दिए गए है। अगर निर्देशों के हिसाब से माल पूड़ा बनाया जाए तो जो बजट भेजा जाता है। उसमें सभी बच्चों के लिए मालपूड़ा बनाया जाना संभव नहीं है। क्योंकि एक माल पूड़े पर रोजाना खर्च आने वाले से तीन गुणा ज्यादा खर्च बैठता है। शिक्षकों ने उक्त पूड़े को रेसीपी से हटाए जाने की भी मांग की है। इनके अलावा कढ़ी पकौड़ा, चावल में भी तेल की मात्रा कम पड़ती है। पकौड़े के लिए तेल अलग से खर्च होता है, जिसकी कुकिंग लागत दोगुना हो जाती है। हलवा काला चना में तेल व मीठे की मात्रा बहुत ही कम दी गई, मिलेट पराठा, रागी खिचड़ी व रागी गुलगुले के लिए रागी तथा रागी आटा अन्य अनाज की तरह हैफेड द्वारा उपलब्ध कराया जाने तथा सोया पूरी सब्जी में भी तेल की मात्रा बहुत कम दी गई है, यह मात्रा पुन: निर्धारित की जाए ताकि मानकों अनुसार रेसिपी बनाई जा सके।
क्या कहते है शिक्षक संघ के नेता
राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष भूपेन्द्र चाहर ने बताया कि नई रेसीपी में सरलता होनी चाहिए। क्रमानुसार बनाने के लिए बाध्य न किया जाए। क्योंकि काले चने को एक दिन पहले भिगोना पड़ता है। उसके बाद ही रेसीपी बन पाती है। अगर चना भिगो दिया जाए और अगले दिन किसी कारणवश छुट्टी हो जाए तो वे चने बेकार जाएंगे। इनके अलावा कई रेसीपी को बनाने में लागत दो से तीन गुणा बढ़ रही है। ऐसे में शिक्षा विभाग को उक्त रेसीपी को पुर्ननिर्धारित किया जाए और लागत बढ़ाई जाए। ताकि शिक्षक आराम से स्कूलों में दोपहर का भोजन तैयार करवा सके।
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