आदमपुर में कुलदीप बिश्नोई के सामने संपत सिंह को उतारेंगे भूपेंद्र हुड्डा ! या कोई और कहानी है ? जानिए

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक
संपत सिंह कांग्रेस में लौट आए हैं, वो भी ऐसे समय में जब आदमपुर के उपचुनाव सिर पर हैं और ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या वो आदमपुर उपचुनाव लड़वाने के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनको कांग्रेस में लाए हैं ? कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर कुलदीप बिश्नोई चुनाव लड़ते हैं तो फिर संपत सिंह चुनाव लड़ेंगे और अगर भव्य बिश्नोई चुनाव में उतरेंगे तो फिर संपत सिंह के बेटे गौरव संपत सिंह चुनावी मैदान में होंगे। क्या कहानी यही है या कुछ और ही है।
वैसे तो आज कांग्रेस में तीन पूर्व विधायक वापस लौटे हैं। संपत सिंह के अलावा नारनौल के पूर्व विधायक राधेश्याम शर्मा और नारनौंद के पूर्व विधायक रामभगत शर्मा को भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा की मौजूदगी में उदय भान के हाथों ज्वाइन करवाया है लेकिन इन तीनों में सबसे ज्यादा मजबूत कद के नेता संपत सिंह ही हैं हालांकि राजनीति में मजबूत वही होता है जो चुनाव जीत जाए और फिलहाल तो संपत सिंह जीत के लिए तरस रहे हैं। शुरुआत संपत सिंह से करते हैं। चौधरी देवीलाल की अंगुली पकडकर वो राजनीति में आए। खूब चुनाव लड़े और खूब चुनाव जीते। मंत्री बने और चौधरी देवीलाल परिवार के सदस्यों के बाद उनकी ही चलती थी। संपत सिंह की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाना बिल्कुल सही नहीं होगा क्योंकि जब उनकी प्रेस कांफ्रेंस होती थी तब हम भी तैयारी करके जाया करते थे।
साफ और सटीक बातें करते हैं और फैक्ट एंड फीगर के साथ करते हैं लेकिन राजनीति में जीत के लिए अब केवल इन्हीं बातों की जरूरत नहीं होती है। आजकल तो ये सब गुण अवगुण ही माने जाते हैं और एक तरह से नुकसान ही आजकल करती है क्योंकि आजकल तो राजनीति में वही सफल होता है जो एक गाड़ी झूठ की रोज जनता के बीच उतार दे और जनता भी बेचारी ऐसी हो गई है कि जो सबसे ज्यादा झूठा हो उसी को चुनाव जीतवा देती है। काम की भी जनता परवाह नहीं करती है क्योंकि काम के बूते चुनाव अगर जीते जाते तो आदमपुर में पिछले कई सालों से भजनलाल परिवार बिना कुछ करवाए चुनाव जीत ही रहा है और नारनौंद में हरियाणा में सबसे ज्यादा काम करवाने के बावजूद लोगों ने कैप्टन अभिमन्यु की जगह पर दादा गौतम को चुन लिया जो केवल राजनीति को कॉमेडी सकर्स की तरह लेते हैं।
खैर संपत सिंह 2009 में नलवा हलके से चौधरी भजनलाल की पत्नी जसमां देवी को चुनावी मैदान में हरा चुके हैं लेकिन वो नलवा था, ये आदमपुर है। यहां सोच समझकर चुनावी मैदान में उतरना होगा। हार और बुरी तरह हार दोनों में भी अंतर होता है। दूसरी बात ये है कि दूसरे नेताओं की तरह वो अपने बेटे गौरव को आगे बढाने मे जुटे हैं जो राजनीति में एक आम बात है। 2024 में वो कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर वे अपने बेटे गौरव के लिए नलवा से कांग्रेस की टिकट मांगें और खुद उनके लिए चुनाव प्रचार करें। अगर वो आदमपुर से उपचुनाव चुनाव लड़ने का जोखिम ले भी लें ओर अगर खुदा ना खास्ता हार का मार्जन कम ही रहा तो 2024 में भी कांग्रेस उनको आदमपुर की ही टिकट थमा देगी जो उनके लिए कोई फायदे का सौदा नहीं है। इसलिए वो फिलहाल तो चुनाव से बचेंगे लेकिन मीडिया में जरूर ये कहते रहेंगे कि मैं तो तैयार हूं। पार्टी का आदेश मानूंगा। अगर मैं अपनी बात कहूं तो संपत सिंह आदमपुर उपचुनाव में उतरने की संभावनाओं पर कह सकता हूं कि ये बेहद मुश्किल काम लग रहा है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ये अच्छी तरह पता होगा कि सपंत सिंह हो या जेपी हों, वो यहां से कुलदीप बिश्नोई को टक्कर तो दे सकते हैं लेकिन चुनाव जीत नहीं सकते हैं।
आदमपुर में कुलदीप बिश्नाई को हराना कोई बाएं हाथ का काम नहीं है, बड़े बड़े नेता आए और गए भजनलाल परिवार की नींव अभी तक नहीं हिला पाए। दूसरी बात ये है कि आदमपुर में अकेले जाट वोटों के बूते चुनाव नहीं जीता जा सकता, वोट सबके चाहिए होते हैं। दूसरी जातियों की तरह जाटों के वोट भी बंटेंगे। क्या पता कांग्रेस भी जाट कंडीडेट को उतारे और आम आदमी पार्टी भी कोई स्थानीय मजबूत जाट प्रत्याशी को उतारे तो क्या पता कांग्रेस का कंडीडेट तीन नंबर पर भी चला जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। इसलिए इस बात की बहुत ही कम संभावनाएं हें कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनको आदमपुर में चुनावी मैदान में उतारेंगे। हां इतना जरूर है कि आदमपुर में उनके रसूख हैं जो भी प्रत्याशी होगा उसकी मदद वो ठोककर कर देंगे और हुड्डा के लिए इतना भी कम नहीं है। वैसे राजनीति के बंद कमरों में क्या होता है इसकी सही सही कहानी कभी बाहर नहीं आती है लेकिन संपत सिंह और हुड्डा के संबंधों में भी एक कहानी काफी चर्चा में रहती है। जब उन्होंने 2009 में इनेलो छोडकर कांग्रेस ज्वाइन की तो उनके कद को देखकर उनको मंत्री बनाने की संभावनाएं थी लेकिन उनको मंत्री नहीं बनाया गया था। मंत्री क्यों नहीं बनाया गया था उसे पीछे एक कहानी राजनीतिक फिजां में है वो मैं आपको सुनाता हूं।
कहते हैं कि जब वो इनेलो से कांग्रेस में गए तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उन्होंने मुलाकात की। भूपेंद्र सिंह हुडडा भी उनकी तरह मंजे हुए राजनेता हैं, जानते थे कि ये कांग्रेस में आए तो जीत जाएंगे और फिर मंत्री भी बनाना ही पड़ेगा लेकिन हुड्डा ने कहा कि टिकट की मेरी गारंटी है लेकिन मंत्री बनाने की गांरटी नहीं है मैं सोनिया से आपको मिलवा देता हूं आप उनसे बात करें। इसे बाद संपत सिंह की मुलाकात सोनिया से करवाई गई और संपत कांग्रेस के हो गए। वो चुनाव जीते ओर वो भी जसमा को हराकर। जीतने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मंत्री बनने की उम्मीद की गई तो उन्होंने कहा कि मेरी जिम्मेदारी और गांरटी टिकट की थी वो आपको मिली और आप विधायक भी बन गए हैं लेकिन मंत्री बनाना सोनिया गांधी के हाथ में है। रह गए संपत सिंह इतने अनुभव के बाद भी मंत्री बने बिना। हालांकि अगर मंत्री बनाए जाते तो निश्चित तौर पर वो बेहतरीन काम करके दिखा सकते थे क्योंकि अनुभव में उनका कोई सानी नहीं है।
अब ताजा ज्वाइनिंग के पीछे भी एक कहानी आज ही सुनने मे मिली है। वो भाजपा में चले गए थे लेकिन अनुभव बहुत खराब हुआ। कांग्रेस में लौटे हैं तो उसी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई में। अब फिर से उनको वेणुगोपाल से मिलवाया है हुड्डा ने तो लोग मजे ले रहे हैं कि कहीं ये फिर से टिकट की गांरटी हुड्डा साहब की और मंत्री बनाने का चक्कर वेणुगोपाल के मत्थे तो नहीं मढा जाएगा। खैर अभी 2024 बहुत दूर है लेकिन आदमपुर का उपचुनाव में अगर कुलदीप बिश्नाई के साथ कांग्रेस 19- 21 का खेल कर जाती है तो निश्चित तौर पर 2024 हुड्डा की मुट्ठी में होगा लेकिन अभी तो ये बहुत दूर की बात नजर आ रही है क्योंकि आदमपुर मे असली खेल कंडीडेट से है। बाहरी कंडीडेट के बूते कांग्रेस कुलदीप बिश्नोई को ठीक ठाक चुनौती तो दे सकती है लेकिन हरा नहीं सकती है। आखिर भजनलाल परिवार ने अपने गढ को वर्षों तक सींचा है कोई भी आकर उसको गिरा दे ऐसा फिलाहल तो दिखता नहीं है।
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