हस्तशिल्प एवं सांस्कृतिक उत्सव-2023 : सदियों पुरानी ओडिशा की पट्टा चित्र कला को आगे बढ़ा रहे बिभु मोहराणा

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़। जिस तरह उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद पूरी दुनिया में पीतल नगरी के नाम से मशहूर है। उसी तरह ओडिशा की पट्टा चित्र पेंटिंग्स की पूरी दुनिया में अलग पहचान रखती हैं। पीतल पर बारीक नक्काशी के लिए विख्यात शिल्पगुरु दिलशाद हुसैन को इसी साल पद्म श्री से नवाजा गया। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के हाथों से सम्मान प्राप्त करने वाले दिलशाद के हाथों की जादूगिरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सराह चुके हैं। वहीं ओडिशा की पट्टा चित्र कला को आगे बढ़ाने में पुरी का मोहराणा परिवार 6 पीढ़ियों से लगा हुआ है।
पद्मश्री शिल्पगुरु दिलशाद हुसैन को पीतल के उत्पादों पर अपनी बेहतरीन नक्काशी और कारीगरी के लिए जाना जाता है। दिलशाद को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने और शिल्पगुरु के बाद अब पद्मश्री का खिताब भी मिल चुका है। सर्वप्रथम उन्हें वर्ष-2004 में स्टेट अवार्ड मिला था। इसके बाद 2012 में नेशनल अवॉर्ड मिला। फिर 2017 में शिल्पगुरु का खिताब मिला। उन्हें इसी साल राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के हाथों से पद्मश्री का सम्मान प्राप्त हुआ। इस बीच वर्ष-2015 में दिलशाद विशेष आमंत्रण पर ईरान भी गए थे। वहां लोगों को नक्काशी करना सिखाया। दिलशाद द्वारा तराशा गया नक्काशीदार पीतल का मटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखनऊ में पसंद किया और जी-7 सम्मेलन में जर्मन के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज को भेंट भी किया।
दिलशाद बताते हैं कि उन्होंने 10 साल की उम्र में ही नक्काशी की यह विशेष कला अपने दादा अब्दुल अखलाक हमीद से सीखनी शुरू कर दी थी। दादा के निधन के बाद उनके चाचा कल्लू अंसार ने उन्हें सिखाया। फिर वह हुनर को लगातार निखारते चले गए। इसी क्रम में उनकी पत्नी रुखसाना बेगम, पुत्री तैयबा खातून, पुत्रवधु चमन जहां, पुत्र शहजाद अली व अरशद अली भी स्टेट अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। दिलशाद के अनुसार मटके पर बारीक नक्काशी को ताज दरमियानी कहा जाता है। एक कलश तैयार करने में ही छह माह लग जाते हैं। पीतल की कीमत नहीं, कलश पर नक्काशी की ही कीमत होती है। वे पूरी लगन से नक्काशी करते हैं। नक्काशी के लिए पीतल के किसी भी बर्तन पर पहले पेंसिल से कच्चा डिजाइन बनाया जाता है। इसके बाद फिर नुकीली कलम चलाई जाती है।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री सम्मान प्राप्त करते दिलशाद हुसैन। (फाइल फोटो)
पट्टाचित्र भारत के ओडिशा की पारंपरिक पेंटिंग है। इसमें महारत रखने वाले ओडिशा के पुरी निवासी अनत मोहराणा को 1969 में नेशनल अवार्ड और 2003 में शिल्पगुरु का खिताब मिला। जबकि उनके पुत्र बिभु मोहराणा को भी वर्ष 2003 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। बिभु की एक पेंटिंग में गणेश भगवान के 708 चित्र समाहित हैं और यह पेंटिंग एक पूरी कहानी बताती है। इसकी लाइफ 5 हजार साल है। इसे बनाने के लिए पाम का पत्ता सुखाकर उबालते हैं, धूप में सुखाते हैं। फिर हल्दी, चंदन, दूध, नीम का पत्ता में डालते हैं। पहले नीडल से इस पर खुदाई करते हैं और उसके बाद रंग भरते हैं। यह रंग दीये से काजल की भांति तैयार किया जाता है। उनके परिवार की बनाई पेंटिंग्स दिल्ली-कलकत्ता से लेकर लंदन म्यूजियम में भी रखी है।
बिभु बताते हैं कि ये चित्र ज्यादातर पौराणिक, धार्मिक कहानियों और लोक कथाओं पर आधारित हैं और विशेष रूप से जगन्नाथ और वैष्णव संप्रदाय से प्रेरित हैं। पेंटिंग्स में इस्तेमाल किए गए सभी रंग प्राकृतिक हैं और पेंटिंग्स को चित्रकारों द्वारा पूरी तरह पुराने पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है। चित्रकला की पट्टाचित्र शैली ओडिशा के सबसे पुराने और सबसे लोकप्रिय कला रूपों में से एक है। यह परंपरा हजारों साल से अधिक पुरानी हैं। भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क के महान मंदिरों के निर्माण के बाद ओडिया पेंटिंग की यह पुरानी परंपरा आज भी पुरी आदि स्थानों पर बची हुई है। समय के साथ पट्टा चित्र पेंटिंग का तरीका भी बदल रहा है। यह अधिक लोकप्रिय और व्यावसाईकरण हो रहा है। वर्तमान में, लोग पट्टाचित्रों को चित्रित करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं।
बता दें कि बहादुरगढ़ शहर के सेक्टर-6 में स्थित कम्युनिटी सेंटर में प्राचीन कारीगर एसोसिएशन द्वारा नाबार्ड के सहयोग से आयोजित दस दिवसीय नौंवे राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं सांस्कृतिक उत्सव -2023 में देशभर के करीब 80 कलाकार भाग ले रहे हैं। आयोजन में अर्बन डेवेलपमेंट फाउंडेशन के अलावा क्लीन एंड ग्रीन एसोसिएशन व संघर्षशील जनकल्याण सेवा समिति भी सहयोग कर रही है।
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