माइंड गेम से रोडवेज विभाग को बड़ी मात, हर स्तर पर सरकार को चूना लगा रहे प्राइवेट बस ऑपरेटर

नरेन्द्र वत्स. रेवाड़ी
बस में सीटों की संख्या 32 या 42 तक। बस का साइज वही 52 सीटर बस का। प्राइवेट बस से पांच मिनट पहले रोडवेज बस का टाइम, लेकिन समय पर रोडवेज बस मिस। मुफ्त कैटेगिरी के लिए प्राइवेट बसों पर बोर्ड होने अनिवार्य, परंतु एक भी बस पर ऐसे बोर्ड नहीं। आए दिन सीनियर सिटीजन और मुफ्त यात्रा की कैटेगिरी में शामिल लोगों से किराए भी जबरन वसूली। यानि हर स्तर पर रोडवेज विभाग को बर्बाद करने पर तुले हैं परमिट बसों के ऑपरेटर और अधिकारी इसके लिए दे रहे हैं खुली छूट। 'माइंड गेम' के मास्टर माइंड हो चुके प्राइवेट बस ऑपरेटर अपनी जेब भरने के लिए 'चोर-चोर मौसेरे भाई' की तर्ज पर अपने तमाम मतभेद भुला देते हैं। इनका टारगेट हर स्तर पर रोडवेज विभाग के नुकसान में अपना फायदा देखना है।
रूट परमिट स्कीम के तहत जिले में चल रही प्राइवेट बसों के ऑपरेटर इस समय सरकार को हर स्तर पर राजस्व का नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसमें सबसे पहले तो बसों के स्टैंडर्ड साइज का खेल शातिर दिमाग से खेला जा चुका है। जिन प्राइवेट बसों के पास 32 सीटों की बसों के परमिट हैं, उनकी बसों में सीट की जांच करने पर संख्या ठीक मिलेगी। बसों का आकार देखा जाए, तो इसकी जानकारी रखने वाले अधिकारी चौंक जाएंगे। 32 सीटर बसों का साइज भी उतना ही है, जितना कि 52 सीटर बसों का। बस में सीटों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन यात्री बैठाने के लिए स्पेश उतना ही है, जितना 52 सीटर बसों का होता है। इसकी तुलना रोडवेज विभाग की 32 सीटर बसों से की जाए, तो आसानी से इसका पता लग जाता है। रोडवेज की कम सीटों वाली बसों का आकार भी सीटों की तुलना में कम है।
सीटों के साइज में भी बड़ा खेल
बसों में अधिक से अधिक सवारियां बैठाने की व्यवस्था प्राइवेट ऑपरेटर इनकी बॉडी बनाते समय ही कर लेते हैं। दो और तीन यात्रियों के बैठने की सीटों का आकार रोडवेज बसों की तुलना में काफी छोटा रखा जाता है। रोडवेज बसों में दो और तीन यात्रियों की सीटों पर आसानी से यात्री बैठ जाते हैं, जबकि अधिकांश प्राइवेट बसों में सीटों पर निर्धारित यात्री बैठने में परेशानी का सामना करते हैं। बसों के आंतरिक स्पेश में वृद्धि करने के लिए सीटों के आगे और पीछे के गैप को भी कम रखा जाता है, ताकि इसकी जगह अधिक यात्री खाड़ी होकर यात्रा कर सकें। सांठगांठ के बाद इन बसों की पासिंग भी हो जाती है।
बसों की लंबाई भी निर्धारित से ज्यादा
कुछ प्राइवेट बस ऑपरेटरों ने तो नियमों को तोड़ने की सभी हदें पार कर रखी हैं। 52 सीटर बसों की लंबाई रोडवेज बसों के समान ही होनी चाहिए, परंतु कुछ ऑपरेटरों ने इनकी लंबाई निर्धारित से ज्यादा कराई हुई है। अगर इन बसों की फिजीकल जांच हो जाए, तो ऐसी बसों का नियमानुसार संचालन नहीं हो सकता। आम रूटों पर चलने वाली इन बसों की लंबाई डीलक्स बसों जितनी कराई हुई है। जांच के दौरान ऐसी बसों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता। आरटीए की टीमें परमिट की बसों की जांच सिर्फ परमिट होने या नहीं होने तक ही सीमित रखती हैं।
किराए को लेकर आए दिन होता है विवाद
सरकारी आदेशों के अनुसार परमिट की बसों में मुफ्त और रियायती यात्रा की सुविधा रोडवेज बसों की तरह ही उपलब्ध कराना जरूरी है। इसके लिए सरकार ने मुफ्त कैटेगिरी में 30 और रियायती कैटेगिरी में 10 तरह के लोगों को शामिल किया हुआ है। कई बसों के बदतमीज और जिद्दी परिचालक आए दिन इन कैटेगिरी के लोगों से जबरन किराया वसूल करने के लिए झगड़ा करते हैं। नियमानुसार इन बसों के दरवाजों के निकट मुफ्त कैटेगिरी के बार्ड लगाना अनिवार्य होता है, परंतु कोई भी ऑपरेटर नियम की पालना नहीं कर रहा।
सेटिंग के बल पर चल रहा टाइमिंग का खेल
परमिट बसों को बस स्टैंड के बूथों पर बस लगाने के लिए टाइमिंग आटीए कार्यालय की ओर फाइनल किया जाता है। बस ऑपरेटर सेटिंग के आधार पर टाइमिंग इस तरह से लेने में कामयाब हो जाते हैं कि उनके टाइम पर विद्यार्थियों का टाइम नहीं हो। इसके लिए सभी मिलकर पहले सर्वे करते हैं। टाइम मिल जाने के बाद यह लोग रोडवेज के कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों से सांठगांठ के आधार पर प्राइवेट बस से पहले निकलने वाली बस को ही मिस करा देते हैं। निर्धारित समय से महज 1 मिनट ज्यादा लेने के लिए प्राइवेट बसों के परिचालक 100 रुपए तक में सेटिंग करने में कामयाब हो जाते हैं।
क्या बोले परिवहन मंत्री
बसों का आकार उनकी सीटों की संख्या के आधार पर ही होता है। जो ट्रांसपोर्टर कम सीटों के परमिट वाली बसें बड़े आकार की चला रहे हैं, उनकी पहचान कराई जाएगी। मुझे पता चला है कि 'चोर' इस तरह का काम कर रहे हैं। इनका ईलाज जल्द कर दिया जाएगा। नियमों का उल्लंघन करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। -मूलचंद शर्मा, परिवहन मंत्री, हरियाणा।
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