पर्यावरण में जहर घोल रहे ईंट भट्टे, सरसों की पराली और भूसे का खुलकर हो रहा इस्तेमाल

पर्यावरण में जहर घोल रहे ईंट भट्टे, सरसों की पराली और भूसे का खुलकर हो रहा इस्तेमाल
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डीसी ने एक दिन पूर्व ही धारा 144 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए ईंट भट्टों पर फसल अवशेष जलाने पर पर रोक के आदेश जारी किए हैं, परंतु इन आदेशों का कोई असर दिखाई नहीं देने लगा है।

नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी

ईंट भट्टों को जून तक चलाने की छूट मिलने के बाद कई भट्टे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं। कोयले की जगह सरसों की पराली का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे इन भट्टों से धुआं के गुब्बार निकलते दिखाई देते हैं। डीसी ने एक दिन पूर्व ही धारा 144 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए ईंट भट्टों पर फसल अवशेष जलाने पर पर रोक के आदेश जारी किए हैं, परंतु इन आदेशों का कोई असर दिखाई नहीं देने लगा है।

एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए गत वर्ष एनजीटी ने ईंट भट्टों के संचालन पर रोक लगा दी थी। ईंट भट्टों पर एनजीटी की ओर से लगाई गई रोक के बाद कई दिनों से भट्टे बंद पड़े गए थे। एनजीटी के आदेशों के खिलाफ भट्टा एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। भट्टा एसोसिएशनों की ओर से प्रदूषण को लेकर प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने गत 8 अप्रैल को उन्हें अंतरिम आदेश में भट्टे चलाने की छूट प्रदान की थी। एसोसिएशनों की ओर से यह बताया गया था कि ईंट भट्टों से निकलने वाला धुआं पर्यावरण के लिए खतरनाक नहीं है। ईंट भट्टों पर जिग-जैग के नियम की पालना की जाती है। इसके बाद जब भट्टों के संचालन की छूट मिली, तो इन भट्टों से धुआं निकलना शुरू हो गया।

चुनिंदा भट्टों से धुआं ज्यादा

भट्टे चलाने की छूट मिलने के बाद ज्यादा भट्टा मालिकों ने ईंट पकाने का कार्य शुरू कर दिया है। जिले में इस समय 93 ईंट भट्टों का संचालन हो रहा है। कई ईंट भट्टों से निकलने वाली धुआं का स्तर काफी कम होता है, जबकि कई धुआं के गुब्बार छोड़ रहे हैं। ज्यादा धुआं छोड़ने वाले भट्टे हर हाल में पर्यावरण के लिए खतरा हैं। रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ मार्ग पर जाडरा के आसपास कुछ भट्टों से घना काला धुआं निकलता है, जो इन भट्टों के आसपास के गांवों के लिए भी खतरा बना हुआ है। ज्यादा धुआं छोड़ने वाले भट्टों के खिलाफ खाद्य एवं आपूर्ति विभाग कोई एक्शन नहीं ले रहा है।

कोयले का इस्तेमाल काफी कम

अधिकांश ईंट भट्टों पर कोयले का इस्तेमाल या तो पूरी तरह बंद कर दिया है या फिर बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। भट्टा मालिक विकल्प के रूप में सरसों की पराली का इस्तेमाल करते हैं। पराली कोयले से कई गुणा सस्ती होती है। इसकी उपलब्धता भी आसान है, जबकि इस समय कोयला काफी महंगा हो चुका है। भट्टा मालिकों का तर्क है कि उनके पास पराली का कोई विकल्प नहीं है। वह प्रदूषण का स्तर खुद जांच करा चुके हैं। इसमें यह बात साबित हो चुकी है कि पराली की ज्वलनशीलता कोयले से करीब 30 फीसदी तक कम है, जिस कारण उससे प्रदूषण भी कोयले की तुलना में कम होता है।

अभी आदेशों पर नहीं अमल

डीसी ने फसल अवशेष जलाने से लेकर तूड़ा व फसल अवशेष दूसरे स्थानों पर ले जाने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं। इसका कारण जिले में पशुचारे की कमी बताया गया है। तूड़ा व फसल अवशेष से ओवरलोड भरे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकारियों की ड्यूटी भी निर्धारित की गई है, परंतु आदेशों के पहले ही दिन ऐसे वाहन सड़कों पर पूर्व की तरह दौड़ते नजर आए।

ईंट भट्टा मालिक प्रदूषण की जांच खुद प्राइवेट सर्वे एजेंसी से कराते हैं। इसमें हमारा कोई रोल नहीं होता। फसल अवशेष के इस्तेमाल पर डीसी की ओर लगी रोक को सख्ती से लागू कराने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। -दिनेश यादव, आरओ, पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड।

भट्टों पर होने वाले प्रदूषण से हमारा कोई लेनादेना नहीं होता। प्रदूषण के मामले में कोई भी कार्रवाई पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड करता है। पराली का ईंट भट्टा मालिकों के पास कोई विकल्प नहीं है। डीसी के आदेशों की मुझे कोई जानकारी नहीं है। -अशोक रावत, डीएफएससी, रेवाड़ी।

सरसों की पराली का हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हम सुप्रीम कोर्ट में प्रमाण सहित पक्ष रखते हुए बात चुके हैं कि पराली जाने से ज्यादा प्रदूषण नहीं फैलता। पराली पशुओं के चारे में भी इस्तेमाल नहीं होती, इसलिए इस पर रोक लगाने का औचित्य नहीं है। - मुकेश चंद, महासचिव, ईंट भट्टा एसोसिएशन।

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