पशु अस्पतालों में 25 लीटर दूध देने वाली भैंसों का नहीं रजिस्ट्रेशन, नांगल चौधरी क्षेत्र में 18 लीटर की भैंस खोजना मुश्किल

Mahendragarh-Narnaul News : पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार की ओर से दुग्ध स्पर्धा योजना क्रियाविंत कर दी गई। मापदंडानुसार दूध देने पर पशुपालक को निर्धारित पुरस्कार राशि मिलेगी, लेकिन मुर्रा नस्ल की भैंस 18 लीटर दूध नहीं देती, दूध मिलने पर पशु नस्ल के मापदंड पूरे नहीं करता। नांगल चौधरी क्षेत्र के हालात सर्वाधिक नाजुक हैं, यहां भैंस उपलब्ध नहीं होने की वजह से दुग्ध प्रतियोगिता अटकी हुई है। टारगेट पूरा नहीं होने के कारण चिकित्सक भागदौड़ में जुटे हैं।
आपको बता दें कि भूजलस्रोत सूखने के कारण ग्रामीणों की खेतीबाड़ी प्रभावित हो गई। परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोग पशुपालन व्यवसाय को प्राथमिकता देने लगे हैं। पशुपालकों की सुविधा के लिए विभाग की ओर से जिले के विभिन्न गांवों में करीब 64 वैटनरी अस्पताल तथा 71 डिस्पेंसरी स्थापित कर दी गई। जिनमें चिकित्सक, दवाइयां तथा अन्य सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो प्रत्येक अस्पताल के अंतर्गत औसतन 4500 भैंस तथा 250 गाय हैं। सरकार के निर्देशानुसार साल में दो बार दुग्ध स्पर्धा करवानी होती है। तीन दिवसीय स्पर्धा में मुर्रा नस्ल की भैंस शामिल हो सकती हैं। जिनका सुबह-शाम दुग्ध उत्पादन का रिकार्ड दर्ज किया जाता है। 18 किलोग्राम से अधिक दूध मिलने पर विभाग तृतीय स्लैब की पुरस्कार राशि मुहैया करवाएगा। बीते नौ महीने से चिकित्सक गांव-गांव जाकर योजना का प्रचार करने में जुटे है, लेकिन विभाग को सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे, क्योंकि जिले की अस्पतालों में 25 लीटर दूध देने वाली एक भी भैंस रजिस्ट्रड नहीं। 18 लीटर दूध देने वाली भैंस मिलती भी है तो वह मुर्रा नस्ल की नहीं होती। बीते साल नांगल चौधरी ब्लॉक की खातोली जाट के अस्पताल में स्पर्धा संपन्न हुई थी। जिसमें केवल दो भैंसों ने नस्ल व दूध के मापदंड पूरे किए थे। आठ अस्पतालों में प्रतियोगिता कराना संभव नहीं हो पाया। चालू वित्त वर्ष में जिले को करीब 50 पुरस्कार वितरण करने का टारगेट मिला है। 31 मार्च को अवधि खत्म हो जाएगी, अभी टारगेट पूरे होने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं।
दूध का दायरा बढ़ाने से हुई समस्या
हंसराज, मदनलाल, रविंद्र यादव आदि पशुपालकों ने बताया कि योजना के शुरुआती चरण में 11 किलोग्राम दूध की भैंस को पुरस्कार श्रेणी में लिया गया था। इसके बाद 13 किलोग्राम की शर्त रखी गई। 2017 में 15 किलोग्राम दूध देने पर पशुपालक को पुरस्कार मिला था। 2018 में न्यूनतम 18 किलोग्राम दूध अनिवार्य कर दिया गया। जिससे चिकित्सक व पशुपालकों की परेशानी बढ़ गई।
मुर्रा नस्ल के कटड़े खरीदेगा विभाग
विभाग की ओर से कृत्रिम गर्भधारण प्रक्रिया के दौरान मुर्रा नस्ल का बीज रखा जाता है। इन भैसों के कटड़ों को विभाग की ओर से खरीदने की व्यवस्था है। जिनकी कीमत 30 हजार से शुरू होगी। विभाग का तर्क है कि इससे भैंसों की नस्ल व दूध उत्पादन में सुधार होगा।
पेयजल और चारे की किल्लत से दुधारू भैंसों की संख्या घटी
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, नांगल चौधरी के ग्रामीणों को फसल सिंचाई के नहरी पानी उपलब्ध नहीं है। जिस कारण गांवों में पशुचारे की किल्लत उत्पन्न हो गई। इसके अलावा जोहड़ खाली पड़े हैं, ऐसे में पशुओं की पेयजल व्यवस्था करना मुश्किल हो गया। परेशान लोगों ने दुधारू पशुओं की संख्या में कटौती शुरू कर दी। जिसका असर दूध प्रतियोगिता पर पड़ा है।
18 लीटर दूध देने वाली मुर्रा नस्ल की भैंस नहीं मिली
निजामपुर पशु अस्पताल के सर्जन चिकित्सक अजयपाल सिंह ने बताया कि दूध प्रतियोगिता के मापदंड निर्धारित हैं। मापदंडानुसार 18 लीटर दूध देने वाली बहुत कम भैंसें मिलती है। 25 लीटर से अधिक दूध देने वाली मुर्रा नस्ल की भैंस तो मिलना ही संभव नहीं। ऐसे में प्रतियोगिता के टारगेटों को पूरे करने में परेशानी रहती है।
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