बंसीलाल को मात देने वाली चंद्रावती हार गई जिंदगी की जंग

हरिभूमि न्यूज, चरखी दादरी। पूर्व उप राज्यपाल चंद्रावती का बीती रात निधन हो गया। चंद्रावती (Chandravati) ने रोहतक पीजीआई में अंतिम सांस ली। चंद्रावती पिछले लंबे समय से बीमार चल रही थी। चंद्रावती के निधन पर प्रदेशभरके नेताओं ने शोक संवेदना व्यक्त की।
पूर्व उप राज्यपाल चंद्रावती का नाम लोहिया आदोलन हो या प्रदेश के हितों के लिए गवर्नर का पद ठुकराना उनके बड़े फैसलों में शामिल रहा है। जन्म से लेकर 92 वर्ष के लंबे जीवन में पूरे देश में उनकी पहचान एक इमानदार छवि की राज नेत्री के रूप में आज भी कायम है।
चंद्रावती ने 1954 में राजनीति में कदम रखा था। 1954 में विधानसभा चुनाव जीतकर चंद्रावती ने अपना राजनैतिक सफर शुरू किया। उन्होंने पहला चुनाव बाढड़ा विधानसभा सीट से कांग्रेस (Congress) से लड़ा था। जीत के बाद विधायक दल की नेता बनी थीं। चंद्रावती ने अपने पूरे जीवन में कुल 14 चुनाव लड़े, जिसमें छह बार विधायक व एक बार सांसद बनी।
दिल्ली विश्वविद्यालय से कानूनी की पढ़ाई करने वाली चंद्रावती ने उस समय के नेताओं में वह सबसे अधिक पढ़ी लिखी महिला थी, इसलिए कुछ नेता उनका आदर तो कुछ द्वेष रखते थे। उनके प्रति मन में द्वेष पालने वाले नेता उनकी राह में बहुत बार रोड़ा बने।
विधायक बनने के बाद चंद्रावती ने शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास किया तथा गांवों में स्कूलों की स्थापना की। पूर्व उप राज्यपाल चंद्रावती का नाम लोहिया आदोलन हो या प्रदेश के हितों के लिए गवर्नर का पद ठुकराना उनके बड़े फैसलों में शामिल हैं। जन्म से लेकर 92 वर्ष के लंबे जीवन में पूरे देश में उनकी पहचान एक ईमानदार छवि की राज नेत्री के रूप में आज भी कायम है।
बंसीलाल को दी थी मात
1977 के लोकसभा चुनाव में चंद्रावती ने दिग्गज नेता बंसीलाल को रिकार्ड 1 लाख 68 हजार मतों से हराया था, उसके बाद विधानसभा चुनाव में भी मात दी। बंसीलाल को हराने के बाद चंद्रावती ने किसी नेता का दबाव नहीं माना। चंद्रावती ने चौ. चरण सिंह के साथ लंबे समय तक जनता पार्टी में काम किया है। देश में सबसे अधिक राजनैतिक अनुभवी व अनेक पदों पर काबिज रहकर पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल को एक बार चुनाव में पटखनी दी थी।
शिक्षा के जगाई अलख
चंद्रावती उस जमाने की सबसे पढ़ी लिखी नेता थी। उन्होंने विधायक बनते ही शिक्षा की अलख जगाई। विधानसभा में स्कूलों व कालेज स्थापित करने के लिए सरकार पर दबाया बनाया था। उनके प्रयासों से प्रदेशभर में शिक्षा की एक नई रोशनी मिली। शहर की तर्ज पर विद्यालय खोले गए।
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