सामाजिक क्रांति के प्रतीक छोटूराम

डाॅ. हवा सिंह
प्राय: महापुरुषों के जीवन काे मोड़ देने का श्रेय घटनाओं को होता है। छोटूराम का जन्म एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ। उनके पिता उनको अच्छी शिक्षा देना चाहते थे, परंतु पैसे का अभाव था। उनके पिताजी व छोटूराम साहूकार के पास पैसे लेने के लिए घर पहुंचे। लालाजी ने छोटूराम के पिता को अपना पंखा खींचने का आदेश दिया। इस पर बालक, किंतु स्वाभिमानी व संस्कारी, छोटूराम की आत्मा को तिलमिला दिया और साहूकार को कहा कि तुम्हें लज्जा नहीं आती कि अपने लड़के के बैठे हुए भी तुम पंखा खींचने के लिए उससे ना कह कर मेरे बूढ़े पिता से पंखा खिंचवाते हो। इस घटना ने उनके जीवन की दिशा व सोच को ही बदल डाला। उन्होंने कृषक व मजदूरों के शोषण एवं उत्पीड़न को समाप्त करने का संकल्प लिया।
उन्होंने कड़ी मेहनत कर अव्वल नंबर लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त की। कानून की डिग्री लेने के पश्चात आगरा में वकालत शुरू की। अपने जीवन निर्वाह व उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ट्यूशन व प्राइवेट नौकरी भी की। सन 1916 में रोहतक कोर्ट में वकालत शुरू की। वकीलों का व्यवहार मुवक्किलों के प्रति अच्छा नहीं था। उनको कुर्सी व मूढ़ों पर बैठने की इजाजत नहीं थी। उन्होंने इस परंपरा का विरोध ही नहीं बल्कि अपने चेंबर में कुर्सी वह मूढ़ों का प्रबंध भी किया। उन्होंने वकालत के साथ-साथ आम जनता की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुना ही नहीं बल्कि उनके समाधान के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। स्वतन्त्रता संघर्ष में भी भाग लेना आरंभ कर दिया तथा 1916 में उनको रोहतक जिले का कांग्रेस का प्रधान भी बनाया गया।
महात्मा गांधी ने प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया और देशवासियों को फौज में भर्ती होने का अपील भी की। इन्हीं का अनुसरण करते हुए छोटूराम ने पंजाब में लगभग 26 हजार नौजवानों को ब्रिटिश फौज में भर्ती कराने का काम किया। ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी की सामाजिक सेवाओं को देखते हुए वर्ष 1915 में केसर-ए-हिंद के खिताब से नवाजा। प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर कांग्रेस के नेताओं को निराशा हाथ लगी। 1920 में महात्मा गांधी ने रोलेट एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन का बिगुल बजा दिया। कांग्रेस के कई महान नेताओं जैसे सी.आर. दास, एनी बेसेंट, तिलक, डॉक्टर सप्रू, डॉ सत्यपाल, मदन मोहन मालवीय ने अपनी असहमति जताई। कुछ अन्य नेताओं जैसे रविंद्र नाथ टैगोर, डॉ. अंबेडकर तथा मोहम्मद अली जिन्ना ने भी इसका विरोध किया। हिंदू सभा तथा जस्टिस पार्टी मद्रास ने भी इसका विरोध किया। इन सभी नेताओं, पार्टियों व संगठनों का मत था कि इस आंदोलन में हर वर्ग व मत के लोग शामिल होंगे तो उनसे यह उम्मीद रखना कि असहयोग आंदोलन अहिंसात्मक रहेगा, एक मिथ्या और गलत उम्मीद है। नेताओं का विचार था कि यदि असहयोग आंदोलन हिंसक हो गया तो, इसके परिणाम की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। 1920 में रोहतक कांग्रेस अधिवेशन में छोटूराम ने असहयोग आंदोलन का विरोध किया। उनका कहना था कि स्वराज्य केवल अहसहयोग या जंग से नहीं प्राप्त किया जा सकता, बल्कि संवैधानिक तथा नीतिगत मार्ग भी स्वराज्य प्राप्ति का साधन हो सकता है। असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी स्कूलों का बहिष्कार उचित नहीं है। तत्कालीन पंजाब में निजी व सरकारी स्कूल नाम मात्र ही थे। देश में जिन किसानों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया उनकी फसलों को जला दिया गया। अत: छोटूराम ने इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए असहयोग आंदोलन का विरोध किया तथा कांग्रेस से भी अलविदा कह दिया। छोटूराम का गांधीजी से मतभेद थे न कि मन भेद।
छोटूराम ने अपना राजनीतिक सफर ब्रिटिश भारत पंजाब विधान परिषद का सदस्य बनकर किया। उन्होंने 1921 से जनवरी 1945 तक पंजाब विधान परिषद का सदस्य बनकर शिक्षा व ग्रामीण, खेती व राजस्व मंत्री के रूप में सेवाएं दी। उनका स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय में अटूट विश्वास था। वे सत्ता को सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि आम जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक उत्थान का माध्यम समझते थे। चौधरी छोटूराम ने इस दिशा में पंजाब में कई कानून बनवाए। पंजाब रहन पुण्य प्राप्ति कानून, पंजाब ऋणी राहत कानून, पंजाब क्रिमिनल संशोधन बिल, मनी लेंडर्स रजिस्ट्रेशन कानून तथा एग्रीकल्चर प्रोडक्शन मार्केटिंग कानून इत्यादि। इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य था कि किस प्रकार किसानों, मजदूरों व नौजवानों को कर्जा मुक्त जीवन मिले तथा उनका सामाजिक व आर्थिक विकास हो। खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्होंने पुरानी नहरों की साफ-सफाई तथा नई नहरों का निर्माण करवाया। भाखड़ा डैम का ब्लूप्रिंट भी तैयार किया। छोटूराम ने सामाजिक बुराइयों दहेज प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, अनियंत्रित जनसंख्या, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास, निरक्षरता, नैतिक मूल्यों की कमी, छुआछूत व जाति भेदभाव के खिलाफ कई जन आंदोलन भी किए। वह लैंगिक न्याय, समानता और पुनर्विवाह के कट्टर समर्थक थे। छोटूराम की 2 बेटियां थी। उनको अच्छी शिक्षा दी तथा समाज को संदेश दिया कि लड़का लड़की में कोई अंतर नहीं है।
कुछ विचारकों ने छोटूराम की राष्ट्रीयता व देशभक्ति पर संदेह व्यक्त किया है। छोटूराम के सभी भाषणों व कानूनों का विश्लेषण किया जाए तो उनमें कोई भी ऐसी बात नहीं मिलती जो हिंदुस्तान के स्वराज्य के खिलाफ हो। छोटूराम की देशभक्ति का इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की पार्टी मुस्लिम लीग को संयुक्त पंजाब की राजनीति में दखल नहीं होने दिया तथा उनकी मृत्यु तक मुस्लिम लीग केवल एक या दो विधायक ही विधान परिषद में भेज पाई, जबकि संयुक्त पंजाब में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से काफी ज्यादा थी। उनकी मृत्यु के बाद 1946 में पंजाब विधान परिषद का इलेक्शन हुआ तथा मुस्लिम लीग सबसे ज्यादा सीट जीतने में कामयाब हुई, परंतु उनकी यूनियनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस व अकाली दल से समझौता कर गठबंधन सरकार बनाई, परंतु जिन्ना ने ब्रिटिश सरकार से मिलकर गठबंधन सरकार को तुड़वा दिया तथा पंजाब विधान परिषद में पंजाब को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव पास करवा दिया। इस बंटवारे से हजारों लोगों का नरसंहार हुआ। राजनीतिक चिंतकों का मत है कि यदि छोटूराम जिंदा होते तो पंजाब का बंटवारा न होता। छोटूराम ने आज से 100 वर्ष पहले ऐसी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था की कल्पना की थी कि गांव व शहर के आर्थिक अंतर कम हो, धर्म का राजनीति में दखल न होना, फसलों का उचित दाम मिलना, सामाजिक भाईचारा मजबूत हो, छुआछूत की समाप्ति तथा शिक्षा का अधिकार सभी देशवासियों को मिलना, आज की वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों में छोटूराम की सोच प्रासंगिक है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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