राजीव गांधी थर्मल प्लांट खेदड़ में पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प, पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले दागे, जानें क्या है विवाद

राजीव गांधी थर्मल प्लांट खेदड़ में पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प, पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले दागे, जानें क्या है विवाद
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राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट खेदड़ की राख की मांग को लेकर धरनास्थल पर पुलिस तथा ग्रामीणों के बीच सोमवार को झड़प हो गई। विवाद उस समय तूल पकड़ा जब प्लांट के मुख्य गेट पर धरना दे रहे कुछ ग्रामीण थर्मल में घुसने का प्रयास करने लगे।

हिसार/बरवाला

खेदड़ थर्मल प्लांट की राख की मांग को लेकर धरनास्थल पर पुलिस तथा आंदोलकारियों के बीच झड़प हुई। विवाद उस समय तूल पकड़ा जब प्लांट के मुख्य गेट पर धरना दे रहे कुछ आंदोलनकारी थर्मल में घुसने का प्रयास करने लगे। यह आंदोलकारी बीते कई दिनों से आंदोलनरत ग्रामीणों की मांगों को अनसुना किए जाने पर आवेशित थे। थर्मल में घुसने के प्रयास के दौरान प्लांट प्रशासन ने मौके पर पुलिस को बुला लिया। इस बीच किसी ने गेट के बाहर बने केबिन के शीशे तोड़ दिए।

इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों पर हल्का बल प्रयोग किया। ग्रामीणों पर वाटर कैनन से पानी की बौछार की गई और आंसू गैस के गोले दागे गए। ग्रामीणों और पुलिस में हुए टकराव में 3-4 ग्रामीणों को चोटें आई हैं, जिनको अस्पताल ले जाया गया है। ग्रामीणों ने बाद में बैठक कर आंदोलन की आगामी रणनीति को लेकर चर्चा की। इस दौरान आसपास के सैकड़ों लोगों का जमावड़ा लग गया। आंदोलनकारी थर्मल के मेन गेट पर एक बार फिर धरना लगाकर बैठे हैं। मौके पर भारी पुलिस बल तैनात है। एक महीना पहले इस मुद्दे पर ग्रामीणों पर केस दर्ज हो चुका है।

यह है विवाद

खेदड़ स्थित राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख को लेकर करीब डेढ़ महीने से ग्रामीणों का धरना चला आ रहा है। धरनारत आंदोलनकारियों का कहना है प्लांट के बनने के बाद से उसकी राख गांव की गोशाला को दी जा रही थी। जिससे हजारों गोवंश के लिए चारे की व्यवस्था हो जाती थी। बाद में प्लांट प्रशासन ने निशुल्क राख देना बंद कर इसे बेचने के लिए टेंडर जारी कर दिए। हालांकि प्लांट प्रशासन का कहना था कि सरकार की अधिसूचना के बाद प्लांट की राख को निशुल्क देना बंद किया गया है। राख के विवाद में गांव खेदड़ तथा आसपास के ग्रामीण लामबद्ध होकर प्लंट के मेन गेट पर धरने पर बैठे थे। इसके बाद ग्रामीणों ने उनकी मांगों पर विचार करने के लिए प्लांट प्रशासन को 30 मई दोपहर 3 बजे तक का अल्टीमेटम दिया था। ग्रामीणों का कहना है कि प्लांट मे बड़ी मात्रा में बिजली के उत्पादन के लिए कोयले के जलने से राख उत्पन्न होती है।

इसमें 80 प्रतिशत राख सूखी फ्लाई ऐश होती है, शेष 20 प्रतिशत राख नीचे की राख है। सूखी फ्लाई ऐश सीमेंट की ईंटें बनाने वालों को बेची जा रही है। गत 22 फरवरी को पावर मंत्रालय ने फ्लाई ऐश की बिक्री के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जिसके विरोध में ग्रामीण एकजुट हुए और राख की बोली नहीं होने देने और राख को पहले की तरह गोशाला को निशुल्क देने की मांग को लेकर प्लांट के मुख्य गेट के बाहर धरना लगाकर बैठ गए। यह धरना करीब डेढ़ माह से जारी था। बीते कुछ दिनों से आंदोलनकारी बार-बार सरकार तथा प्लांट प्रशासन से उनकी मांग को अनसुनी किए जाने पर आंदोलनस्थल पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दे रहे थे। डेढ़ माह से जारी धरने पर प्लांट प्रशासन की उदासीनता का आरोप लगाते हुए ग्रामीण आज मेन गेट के अंदर जाने की कोशिश करने लगे। इसके बाद उनकी पुलिस के साथ झड़प हुई। इस बीच आंदोलनकारियों ने प्रशासन को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि उनकी मांग को स्वीकार किया जाए। इसके बाद वे अपने आंदोलन को तेज कर देंगे।



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