कॉमरेड रामकिशन भाटला ने राजा फरीदकोट की जमीन को आम लोगों में बांटने की मांग को लेकर खड़ा किया था आंदोलन, पढ़ें उनके संघर्ष की कहानी

कॉमरेड रामकिशन भाटला के निधन पर राजनीति, धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी और उनके निधन पर शोक जताया। वहीं कॉमरेड सतबीर सिंह ने उनके संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि बात 1988 की है। तब कॉमरेड रामकिशन भाटला ने हांसी के राजा फरीदकोट की 750 एकड़ से ज्यादा जमीन को आम लोगों में बांटने की मांग को लेकर नौ गांवों (रामपुरा, अनिपुरा, ढाणां कलां, ढ़ाणा खुर्द, ढाणी हिरान, पीरान, कुम्हारान ) की जनता का आंदोलन खड़ा किया और किसानों को उस जमीन पर कब्जा दिलवाया। भाटला गांव ने सर्वसम्मति से उन्हें अपना सरपंच चुना।
राम किशन का जन्म हिसार जिला की हांसी तहसील के गांव भाटला में 1 जनवरी 1951 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ। वे छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर थे। उन्होंने प्राइमरी शिक्षा गांव के स्कूल से तथा उसके बाद की स्कूली शिक्षा एसडी हाई स्कूल हांसी से हासिल की। उन्होंने 1974 में डीएन कॉलेज हिसार से स्नातक या और 1976 में राजनीतिक शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। अपने छात्र जीवन के आखिरी पड़ाव में वे छात्र आंदोलन से जुड़ते हुए स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) से जुड़े। राजनीति में दिलचस्पी के चलते उन्होंने 1977 में उन्होंने घिराय से विधानसभा का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा। फरवरी 1978 में उन्होंने हिसार टेक्सटाइल मिल मजदूरों के संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 5 अप्रैल 1978 में हांसी सहकारी कताई मिल में सीटू की यूनियन बनाने की शुरुआत की गई जिसके बाद 30 मई 1978 को हांसी के सीनियर सेकेंडरी स्कूल के कार्यक्रम में मजदूरों का सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में हांसी स्पिनिंग मिल वर्कर्स यूनियन संबंधित सीआईटीयू का गठन किया गया जिसके पहले महासचिव कामरेड रामकिशन बने।
सिरसा जीटीएम मिल में भी युनियन बनाई और उनके संघर्षों में उन्होंने भारी योगदान दिया। शुरुआती दौर में कानूनी सुविधाएं, ओवरटाइम, छुट्टियां आदि लागू करवाने के लिए सफल संघर्ष किए गए। मजदूरों के संघर्ष में 1979 में जेल में गए और अंततः मजदूरों की जीत हुई। 19 जनवरी 1982 को पहली देशव्यापी हड़ताल को सफल बनाने में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर योगदान दिया। वे हिसार-सिरसा जिला की सीटू संगठन की संयुक्त कमेटी के प्रधान रहे और सीटू की राज्य कमेटी के नेता रहे। मजदूरों के साथ-साथ उन्होंने किसानों के मुद्दों पर भी बेहद सक्रियता से काम किया। पक्के नाले पर माल के सवाल पर धनाना किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व में उन्होंने इलाके में आंदोलन खड़ा किया।
कामरेड पृथ्वी सिंह गोरखपुरिया इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। किसानों ने गिरफ्तारियां दी और अंततः बंसीलाल सरकार को वह वापस लेना पड़ा। किसानों की बड़ी जीत हुई। कॉमरेड रामकिशन भाटला के नेतृत्व में 1988 में हांसी में अखिल भारतीय किसान सभा का राज्य सम्मेलन और इस अवसर पर विशाल रैली का आयोजन भी किया गया जिसमें किसान के राष्ट्रीय नेताओं ने हिस्सा लिया। इसी दौरान वे सीपीआईएम के सदस्य बने और 1982 में सीपीआईएम की टिकट पर उन्होंने हांसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। वे 1988 में सीपीआईएम राज्य कमेटी के सदस्य बने और लंबे समय तक हिसार जिला के सचिव मंडल सदस्य रहे। वे 1996 तक वामपंथी आंदोलन के साथ सक्रिय रहे।
वे अंतिम समय तक मजदूर आंदोलन, किसान आंदोलन और वामपंथी आंदोलन के हिमायती रहे। उन्होंने सूचना के अधिकार कानून का बहुत इस्तेमाल किया। कुछ साल पहले, स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने हांसी से चुनाव लड़ा जिसे वामपंथी पार्टियों ने अपना समर्थन दिया। 6 साल पहले कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के कारण उनकी गतिविधियां प्रभावित हुईं। हालांकि जीने की अटूट चाह थी। वें हौंसले से इस बीमारी का मुकाबला करते रहे। अंततः 2 फरवरी 2022 को बीमारी ने उनको हमसे छीन लिया। उनके परिवार में उनकी पत्नी विद्या देवी और दो लड़के और एक बेटी हैं। उनकी पत्नी विद्या देवी भी अपनी रिटायरमेंट तक आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हैल्पर्स यूनियन की नेता व सीटू की राज्य कमेटी सदस्य रहीं। वें अभी भी जन आंदोलनों में अपना सक्रिय योगदान देती हैं।
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