Pitru Paksha : ग्रास के लिए ढूंढे से भी नहीं मिल रहे कौवे

Pitru Paksha : ग्रास के लिए ढूंढे से भी नहीं मिल रहे कौवे
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मान्यता है कि श्राद्ध में कौवों को ग्रास देने से पितरों को तृप्ति मिलती है। लेकिन बढ़ती आबादी, आबादी की जरुरत और जरूरतों की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ के कारण कौवों की संख्या बेहद कम हो गई है। ऐसे में श्राद्ध के लिए लोगों को कौवों की तलाश करनी पड़ रही है। ऐसे में श्राद्ध के दौरान काग ग्रास देने वाले लोगों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो रही है।

हरिभूमि न्यूज : बहादुरगढ़

पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का सिलसिला सोमवार 20 सितंबर से शुरू हो चुका है। मान्यता है कि श्राद्ध में कौवों को ग्रास देने से पितरों को तृप्ति मिलती है। लेकिन बढ़ती आबादी, आबादी की जरुरत और जरूरतों की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ के कारण कौवों की संख्या बेहद कम हो गई है। ऐसे में श्राद्ध के लिए लोगों को कौवों की तलाश करनी पड़ रही है। ऐसे में श्राद्ध के दौरान काग ग्रास देने वाले लोगों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो रही है।

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर हमारे जीवन के लिए बहुउपयोगी कौवे को संकट में डालना चिंता का विषय है। इस प्रजाति को बचाने की नितांत आवश्यकता है। क्योंकि कौवा सिर्फ प्रेरणादायी ही नहीं बल्कि मोक्ष दिलाने वाला भी है। पित्रों की तृप्ति व मुक्ति के लिए श्राद्ध में पंचवली का विधान है, जिसमें काकवली का विधान भी प्रमुख है। एक मंत्र में वर्णित है कि 'ऐन्द्रावरुण वायव्या वै नैतास्तन्या। वायसा: प्रतिगृहन्तु भूमि पिण्ड मयोजिनतम'।

पंडित महेंद्र शर्मा का कहना है कि हमारे जीवन में कौवा का खास महत्व है। पक्षियों में यही एक पक्षी है, जो जीवन और मौत दोनों के साथ रहता है। हमारे विद्यार्थी जीवन से लेकर गृहस्थ जीवन में कौवा से सीखने की प्रेरणा ली जाती है। जैसे 'काक चेष्टा, वको ध्यानं, श्वान निंद्रा, अपहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंपंचलक्षणम।'। यानि विद्यार्थी के पांच लक्षण में से एक लक्षण कौवा की तरह प्रयत्न करते रहना है। इसी प्रकार हितोपदेश में भी सुबुद्धि नामक कौवा शुभ-अशुभ का संकेत भी देता है। प्रकृति प्रेमी राकेश खत्री के अनुसार कई ऐसे कारण हैं, जिससे कौवा ही नहीं अन्य पक्षियों की संख्या में भी कमी आ रही है।

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