बेटियों ने तोड़ी रुढ़िवादी परंपरा : पिता की अर्थी को दिया कंधा, अस्थियों को आंगन में दफनाया

- बेटा न होने के बावजूद बेटियों ने महसूस नहीं होने दी कमी,
- पानी में अस्थियां प्रवाहित करने की बजाय घर में दफनाकर लगाया पेड़
Ambala : भारतीय समाज में बेटा ही पिता की चिता को मुखाग्नि देता है, पर गांव बिंजलपुर में तीन बहनों ने अपने पिता की मौत पर बेटों की तरह सारे फर्ज निभाए। बेटियों ने न केवल पिता का अंतिम संस्कार किया बल्कि अंतिम यात्रा में श्मशान घाट तक साथ गई। अर्थी को कंधा देने के बाद चिता को मुखाग्नि भी दी। बाद में उसकी अस्थियों को कहीं प्रवाहित करने की बजाय घर के आंगन में ही दफना दिया।
गांव के रामकिशन पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। बीते दिनों उनकी मौत हो गई। रामकिशन का कोई बेटा नहीं था। उनकी तीन बेटियों रमा बौद्ध, सोनू व अनुराधा ने उनकी अर्थी को न केवल कंधा दिया, बल्कि वह सब कार्य किए जो बेटे द्वारा किए जाते है। रामकिशन फौज से रिटायर्ड थे। उन्होंने अपनी बेटियों को सामर्थय अनुसार शिक्षा प्रदान की। बड़ी बेटी रमा बौद्ध स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट के पद पर कार्यरत है। सोनू व अनुराधा हाऊसवाईफ है। इन बेटियों ने पिता को बेटे की कभी कमी महसूस नहीं होने दी। मृतक कैप्टन रामकिशन ने 29 वर्ष इंडियन आर्मी में रहकर देश की सेवा की। 2000 में वह सेवानिवृत्त हो गए थे। तीनों लड़कियों ने सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा, जिसके अनुसार पिता की अर्थी को कंधा व चिता को अग्नि सिर्फ बड़ा बेटा दे सकता है। तीनों लड़कियों में से रमा बौद्ध ने पिता की चिता को अग्नि देने का कार्य किया। उसके साथ छोटी बहन सोनू रानी, बहन शिवानी ने कैप्टन रामकिशन की अर्थी को कंधा व मुखाग्नि दी।
अस्थियों को घर की जमीन में दबाया
रूढ़िवादी मान्यताओं को तोड़ने के लिए परिवार के लोगों ने मृतक रामकिशन की अस्थियों को जल में प्रवाहित न करके घर के आंगन में ही दबाया और उस पर आम का पेड़ लगाया। हर किसी की जुबान पर तीनों लड़कियों की यह कहानी है।
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