जिला परिषद चुनाव में ग्रामीण वोटरों का नाप तौलकर फैसला, सभी पार्टियों को भविष्य की चुनौती

जिला परिषद चुनाव में ग्रामीण वोटरों का नाप तौलकर फैसला, सभी पार्टियों को भविष्य की चुनौती
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पंचायत के इन चुनावों में किसी ना किसी तरह से हर पार्टी को झटका लगा है, जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा को उम्मीद के विपरीत उम्मीद बहुत ही कम सीटों पर सफलता मिली है। वहीं आप और जजपा के लिए भी चुनौती कम नहीं हैं।

योगेंद्र शर्मा : चंडीगढ़

आखिरकार ग्रामीण इलाकों को लंबे समय के बाद उनके खुद के प्रतिनिधि मिल गए हैं, वहीं दूसरी तरफ खास बात यह है कि ग्रामीण इलाके के वोटरों ने बहुत नाप तौलकर फैसला देते हुए सभी के लिए भविष्य की चुनौती पेश कर दी है। पंचायत के इन चुनावों में किसी ना किसी तरह से हर पार्टी को झटका लगा है, जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा को उम्मीद के विपरीत उम्मीद बहुत ही कम सीटों पर सफलता मिली है। वहीं आप और जजपा के लिए भी चुनौती कम नहीं हैं। चुनाव के साथ ही जहां चुनाव आयुक्त और उनकी प्रशासनिक टीम शांतिपूर्ण चुनाव हो जाने पर राहत की सांस ली है। वहीं सत्ताधारी दल पर विपक्ष इन चुुनावों को लगातार टालने के आरोप लगाता रहा है,, चुनाव हो जाने के बाद अफसरशाही नहीं बल्कि चुने हुए प्रतिनिधि कामकाज की बागडोर संभालने का काम करेंगे।

सत्ताधारी दल के लिए झटके की खबरों के बीच कुरुक्षेत्र सीट से सांसद नायब सैनी की धर्मपत्नी अंबाला जिले में चुनाव हार गई हैं। इसके अलावा अन्य कईं स्थानोंं पर भाजपा को झटका लगा है। राज्य्य में आंकड़ों पर गौर करें, तो 411 जिला परिषद की सीटों में भाजपा ने कुल 102 सीटों पर अपने प्रत्याशी टिकट सिंबल पर उतारे थे। जिसमें मात्र तीस सीटें ही मिली हैं। अर्थात तीस फीसदी जो सत्ताधारी दल के लिए चिंता की बात है। दूसरा यह प्रत्याशी भी 22 जिलों से सात जिलों के हैं। पंचकूला जिले में सभी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ गया है, इसी तरह से कईं अन्य जिलों में भी हालात रहे हैं। हालांकि भाजपा नेता अब जीतने वालों में अधिकांश को भाजपा समर्थित बताने और दावे करने में लगे हैं।

कांग्रेस के लिए राहत की बात यह है कि पार्टी नेताओं ने पहले ही ग्रामीण इलाकों में पार्टी पदाधिकारियों, ग्रामीणों की सिंबल को लेकर खींचतान, गुटबाजी आदि को देखते हुए सिंबल पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा आप की ओऱ से भी जिला परिषद में सिंबल पर प्रत्याशी खड़े किए गए लेकिन दावों के विपरीत परिणाम रहा है। पार्टी को मुश्किल से दो दर्ज सेकम वार्डों में सफलता हाथ लगी है। सिरसा जिले में इनेलो के लिए राहत भरी खबर रही है क्योंकि अभय सिंह चौटाला के पुत्र करण चौटाला खुद चुनाव जीत गए हैं। उधर, जजपा के लिए झटका पहले ही लग चुका था। वहां ग्रामीण परिवेश के अहम चुनाव में टोहाना विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले जजपा प्रदेशाध्यक्ष सरदार निशान सिंह के बेटा चुनाव हारा है। कुल मिलाकर ग्रामीण परिवेश का यह चुनाव राज्य की प्रमुख पार्टियों और नेताओं के लिए कईं तरह की चुनौती और नेताओं को भविष्य के लिए नसीहत देकर गया है।

लंबे अर्से बाद में पंचायतों को मिले उनके चौधरी

आखिरकार लंबे वक्त के बाद में जहां पंचायतों को उनके जनप्रतिनिधि मिल गए हैं। वहीं अब अफसरशाही और पंचायत विभाग ने राहत की सांस ली है। सरकार के लिए राहत की बात यह है कि विपक्ष की ओऱ से लगातार कोविड और अन्य कारणों से चुनाव टालने के आरोप लगाए जा रहे थे। हालांकि इस दौरान लीगल पचड़े के कारण भी देरी हुई लेकिन दो साल से ज्यादा पंचायतों के चुनाव लटके रहे। कुल मिलाकर ग्रामीणों के लिए राहत की बात यह है कि अब उनके बीच के चुने हुए प्रतिनिधि खुद कामकाज कराने की पहल करेंगे और अफसरशाही से ग्रामीणों को छुटकारा मिलने जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में विकास की गति भी तेज रहेगी, क्योंकि अफसरशाही के जिम्मे कईं तरह के अन्य कामकाज और सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन जैसे कामकाज होते हैं। इसके अलावा आए दिन बैठकों और नए-नए आदेशों की पालना कराने का जिम्मा शहरी और ग्रामीण दोनों ही अफसरों पर होता है।

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