देवउठनी एकादशी आज : विश्राम अवस्था से जाग बैकुंठ लोक में सभी कार्यों का पुन: भार धारण करेंगे भगवान विष्णु

देवउठनी एकादशी आज : विश्राम अवस्था से जाग बैकुंठ लोक में सभी कार्यों का पुन: भार धारण करेंगे भगवान विष्णु
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रविवार को सुबह 5:50 बजे से अगले दिन सुबह 6: 42 बजे तक एकादशी रहेगी। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है।

हरिभूमि न्यूज : भिवानी

पौराणिक मान्यता के अनुसार चातुर्मास के दौरान विश्राम कर रहे भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी ( dev uthani ekadashi ) यानी 14 नवंबर को निद्रा से जाग जाएंगे। इसी दिन देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का त्योहार मनाया जाता है। रविवार को सुबह 5:50 बजे से अगले दिन सुबह 6: 42 बजे तक एकादशी रहेगी। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्रीहरि विष्णु विश्राम अवस्था से जागकर बैकुंठ लोक में वापस आकर अपने सभी कार्यों का पुन: भार धारण करते हैं।

इसी कारण उनके सभी कार्यों का भार धारण करने से विवाह, मुंडन सहित सभी प्रकार के संस्कार कार्यों का आरंभ हो जाएगा। पंडित कृष्ण कुमार बहल वाले ने बताया कि हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। इसका कारण यह है कि उस दिन कई ग्रह अथवा नक्षत्र की स्थिति एवं प्रभाव में परिवर्तन होता है। जिसका मनुष्य की इंद्रियों पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव में संतुलन बनाए रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता है, क्योंकि व्रत एवं ध्यान ही मनुष्य में संतुलन रहने का गुण विकसित करते हैं।

ये है एकादशी के व्रत की कथा

एकादशी के महत्व की कथा के अनुसार राक्षस जालंधर की पत्नी वृंदा सर्वगुण संपन्न एवं सद्गुणों वाली पतिव्रता स्त्री थी तथा श्रीविष्णु जी की परम भक्त थी। जब राक्षस जालंधर देवताओं से युद्ध के लिए जाते हैं तो वृंदा अपने पति के लिए देव आराधना करती हैं। जब तक कि वे युद्ध से विजयी होकर नहीं लौटते थे। तब श्री हरि विष्णु ने देवताओं के आग्रह पर जालंधर का रूप बनाकर वृंदा के पास पहुंच गए और वृंदा ने आराधना बंद कर दी तब भगवान शंकर ने जालंधर का वध कर दिया और जालंधर का सिर काटकर वृंदा के पास आ गिरा। इसके बाद वृंदा ने स्वयं सती धर्म का पालन करते हुए स्वयं को भस्म कर लिया। जहां से एक पौधा उत्पन्न हुआ। जिसे श्री हरि ने तुलसी का नाम दिया और पश्चाताप स्वरूप अपने आप शालिग्राम के रूप में तुलसी चरणों में विराजमान रहने का वचन दिया। तुलसी के ओजस्वी विचारों एवं गुणों के कारण तुलसी का यह औषधीय पौधा आज इतना गुणकारी है।

हट जाएगी मांगलिक और धार्मिक कार्यों पर लगी रोक

वैदिक पुराणों में लिखा गया है कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता है। इस दिन उपवास रखने का उन्हें कई तीर्थ दर्शन, 1 हजार अश्वमेध यज्ञ एवं 100 राजसूर्य यज्ञ के तुल्य माना गया है। इस दिन का महत्व तो स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया था। उन्होंने कहा था-इस दिन एकासना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवं पूर्ण व्रत पालन से सात जन्मों के पापों का नाश होता है। इस दिन से कई जन्मों का उद्धार होता है एवं बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती है। देवउठनी ग्यारस के दिन ही भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 माह के शयन के बाद जागे थे। सनातन धर्म में इस दौरान 4 माह तक कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है और देवउठनी ग्यारस के शुभ दिन से ही सभी मांगलिक और धार्मिक कार्य शुरू किए जाते हैं। इस दिन पूरे भारतवर्ष में तुलसी विवाह का भी आयोजन समारोह पूर्वक किया जाता है।

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