धारूहेड़ा नगरपालिका उपचुनाव : जानिये मैदान में उतरे उम्मीदवारों की खुबियां और कमजोरी

धारूहेड़ा नगरपालिका उपचुनाव : जानिये मैदान में उतरे उम्मीदवारों की खुबियां और कमजोरी
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12 सितंबर को होने वाला धारूहेड़ा नगर पालिका चेयरमैन उपचुनाव की लड़ाई मतदान की घड़ी नजदीक आने के साथ रोचक होती जा रही है। चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की खुबियों के साथ व्यक्तिगत कमजोरियां भी हैं, जो किसी भी उम्मीदवार का चुनावी खेल बिगाड़ सकती हैं। जिसे इस प्रकार से समझा जा सकता है।

हरिभूमि न्यूज : धारूहेड़ा/रेवाड़ी

12 सितंबर को होने वाला धारूहेड़ा नगर पालिका चेयरमैन उपचुनाव की लड़ाई मतदान की घड़ी नजदीक आने के साथ रोचक होती जा रही है। दिसंबर 2020 में मिली जीत के बाद शपथ से पहले पद गंवाने वाले जितेंद्र यादव पिता की सहानुभूति, राव मान सिंह को जजपा-भाजपा व प्रदीप राव को बसपा संगठन, संदीप बोहरा व दिनेश राव को राव मानसिंह के उम्मीदवार बनने से बगावती हुए भाजपा-जजपा गठबंधन तथा बाबू लाल लांबा सहित बाकी निर्दलीयों को व्यक्तिगत रसूख के अपनी चुनावी नैया को पार लगाने की उम्मीदें लगाए हुए हैं।

नामांकन से अब तक अजय सिंह चौटाला सहित आए दिन जजपा के बड़े नेता चुनाव प्रचार में हिस्सा ले चुके हैं तथा चुनाव प्रचार के अंतिम दिन शुक्रवार को भी यह सिलसिला जारी रहने के कयास लगाए जा रहे हैं। राव मान सिंह, संदीप बोहरा, दिनेश राव, खेमचंद सैनी व बाबूलाल लांबा दिसंबर 2020 में भी चुनाव लड़ चुके हैं, जबकि जितेंद्र यादव की जगह उनके पिता कंवर सिंह चुनाव लड़े थे। जबकि बसपा उम्मीदवार प्रदीप राव, रामनिवास प्रजापत, सुदर्शन पहली बार चुनावी ताल ठोक रहे हैं। चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की खुबियों के साथ व्यक्तिगत कमजोरियां भी हैं, जो किसी भी उम्मीदवार का चुनावी खेल बिगाड़ सकती हैं। जिसे इस प्रकार से समझा जा सकता है।

राव मान सिंह : जजपा-भाजपा गठबंधन

मजबूत पक्ष : जैलदार परिवार का पंचायत के समय बना दबदबा अब तक बना हुआ है। दिसंबर 2020 में जैलदार परिवार से राव मान सिंह व राव शिवदीप यादव चुनाव मैदान में आमने-सामने थे तथा दोनों को 3193 वोट मिले थे। उपचुनाव में शिवदीप के चुनाव नहीं लड़ने से जैलदार परिवार एकजुट दिख रहा है। पिता मंजीत जैलदार की छवि का लाभ भी उन्हें मिल सकता है। इसके साथ जजपा-भाजपा गठबंधन का सांझा उम्मीदवार होना भी राव मान सिंह के पक्ष में माना जा रहा है।

कमजोर पक्ष : 2020 के चुनाव में टॉप तीन उम्मीदवारों में अपना नाम दर्ज करवाने में असफल रहे राव मान सिंह को फिर गठबंधन उम्मीदवार बनाना भाजपा उम्मीदवारों को अंदरखाने हजम नहीं हो रहा है। धारूहेड़ा में जमीनी स्तर पर जजपा के मुकाबले भाजपा को मजबूत माना जाता है। अनुभव की कमी और जैलदार परिवार से लोगों की दूरी राव मान सिंह के लिए कमजोरी साबित हो सकती है।

जितेंद्र यादव

मजबूत पक्ष : दिसंबर 2020 में कंवर सिंह नगर पालिका चेयरमैन निर्वाचित हुई थे। जीत के बावजूद फर्जी सर्टिफिकेट विवाद में उनका चुनाव शपथ दिलवाए बिना ही रद्द कर दिया था। पूर्व में धारूहेड़ा के सरपंच रहे कंवर सिंह की छवि मतदाताओं के बीच अच्छी मानी जाती है। पिता के रसूख व सहानुभूति का जितेंद्र को चुनाव में फायदा मिल सकता है।

कमजोर पक्ष : जितेंद्र की पहचान उनके पिता कंवर सिंह से ही है। चुनाव में उतरने से पहले सामाजिक सक्रियता नाममात्र होना तथा पिता की जगह बेटे को चुनाव मैदान में उतारने से परिवाद का फैक्टर कमजोर बन सकता है। इन्हीं के परिवार से प्रदीप का चुनाव मैदान में उतरना भी एक कमजोर फैक्टर कहा जा सकता है।

बाबूलाल लांबा

मजबूत पक्ष : खुद के व्यक्तिगत रसूख पर चुनाव मैदान में उतरे बाबूलाल लांबा को पर्दें के पीछे से कुछ नेताओं का साथ मिलने की चर्चाएं नामांकन करने के साथ ही शुरू हो गई थी। जिसका चुनाव में उन्हें फायदा मिल सकता है।

कमजोर पक्ष : कमजोर लोगों के बीच सीधे संवाद का अभाव व हाइप्रोफाइल जीवनशैली बाबूलाल के चुनावी गणित को बिगाड़ सकती हैं।

संदीप बोहरा

मजबूत पक्ष : दिसंबर 2020 के चुनाव में 632 वोटों से बिछड़कर दूसरे स्थान पर रहे संदीप पिछले प्रदर्शन से उत्साहित दिख रहे हैं। भाजपा संगठन से लंबा जुड़ाव होने के साथ उन्हें भाजपा सहित कुछ दूसरी पार्टियों के नेताओं का भी साथ मिल सकता है। युवाओं के साथ भी अच्छा जुड़ाव माना जाता है।

कमजोर पक्ष : दिसंबर 2020 के चुनाव में मिली हार के बाद संदीप बोहरा लगातार चेयरमैन चुने गए कंवर सिंह पर न केवल हमलावर रहे, बल्कि कंवर के निर्वाचन को रद्द करवाने में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती रही। जिससे उनकी छवि एक शिकायकर्ता के रूप में बनकर उभरी। फर्जी सर्टिफिकेट विवाद के दौरान राव इंद्रजीत सिंह नजदीकी दिखाने के प्रयासों से पिछले चुनाव में साथ देने वाले नाराज पार्टी कार्यकर्ता दूरी बना सकते हैं। उपचुनाव में यही फैक्टर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इन्हें भी नहीं माना जा सकता कमजोर

दिनेश राव, खेमचंद व रामनिवास भी भाजपा से जुड़े रहे हैं। दिसंबर 2020 की तुलना में निदेश राव की छवि में सुधार हुआ है। खेमचंद व रामनिवास को अपने-अपने समाज के साथ राव मानसिंह के टिकट मिलने तथा संदीप बोहरा के राव इंद्रजीत सिंह से नजदीकी बढ़ाने से नाखुश भाजपा मतदाताओं का साथ मिल सकता है। बसपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे प्रदीप राव को पूर्व में सरपंच रहे अपने पिता के रसूख के साथ बसपा कार्यकर्ताओं का साथ मिल सकता है।


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