Sports Awards : द्रोणाचार्य अवॉर्डी सुजीत पहलवान को विरासत में मिली कुश्ती...

बहादुरगढ़। राष्ट्रपति के कर कमलों से खेलों का सर्वोच्च सम्मान (द्रोणाचार्य अवॉर्ड) पाने वाले कोच सुजीत पहलवान को कुश्ती विरासत में मिली है। दादा, पिता और बडे़ भाई से प्रेरणा लेकर दंगल में उतरने वाले सुजीत कुश्ती के प्रति समर्पित हो गए। पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया और कोच बनकर इस प्राचीन परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
कोच सुजीत मान बहादुरगढ़ उपमंडल के गांव सिद्दीपुर लोवा कलां के निवासी हैं। इनके दादा मौजीराम पहलवानी करते थे। पिता ईश्वर सिंह भी कुश्ती के शौकीन थे और बड़े भाई सुच्चा सिंह भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे। सुजीत के मन में भी कुश्ती के प्रति काफी रुचि थी। बचपन से ही कुश्ती के क्षेत्र में देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह थी। इसी चाह से आगे बढ़ते रहे और परिवार ने भी इनको कुश्ती के प्रति समर्पित कर दिया। वर्ष 1987 में दिल्ली स्थित गुरु हनुमान अखाड़े में कुश्ती की बारीकियां सीखनी आरंभ की। प्रतिभा के धनी सुजीत के प्रदर्शन में लगातार निखार आया और राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक कुश्तियां जीतने का सिलसिला शुरू हो गया। लगभग दस बार हरियाणा कुमार और इतनी ही बार भारत कुमार के खिताब हासिल किए। स्टेट और नेशनल में भी कई पदक इनके नाम हैं।
1994 में जीता पहला अंतरराष्ट्रीय पदक
वर्ष 1994 में इन्हाेंने जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए पहला पदक जीता। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक तेहरान, ताशकंद गुइलिन और दिल्ली में हुई चार एशियाई चैंपियनशिप में देश के लिए पदक जीते। इस दौरान 2003 में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया। बेहतरीन प्रदर्शन के बूते अपने वर्ग में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया और एथेंस में देश का प्रतिनिधित्व किया। बेहतरीन उपलब्धियाें और योगदान को देखते हुए इन्हें वर्ष 2002 में अर्जुन अवॉर्ड, 2004 में भीम अवॉर्ड तथा 2005 में रेलमंत्री अवॉर्ड प्राप्त हुआ।
कुश्ती छोड़ी तो प्रतिभाएं निखारनी शुरू की
वर्ष 2006 तक पहलवानी की और इसके बाद प्रतिभाओं को निखारने का जिम्मा अपने कंधांे पर उठा लिया। वर्ष 2009 से रेलवे और भारतीय टीम से कोच की भूमिका में जुड़े हुए हैं। इस दौरान बजरंग, दीपक, रवि सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई नामी और बड़े पहलवानों को प्रशिक्षण दिया। कई नई प्रतिभाओं को उबारकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। वर्तमान में चीफ कोच हैं। इसके अलावा बजरंग पूनिया के निजी कोच की जिम्मेदारी भी इन्हें मिली हुई है। कुश्ती के क्षेत्र में इनका नाम अदब से लिया जा रहा है। इस रुतबे और सम्मान की वजह इनकी कड़ी मेहनत और कुश्ती के प्रति समर्पण है।
बेहद विनम्र स्वभाव के हैं सुजीत मान
पहलवानों को तैयार करने वाले सुजीत का व्यवहार भी बेहद शालिन है। इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि इससे पहले कई बार इनका नाम आगे गया लेकिन अवॉर्ड नहीं मिल सका। इसके बावजूद ये मायूस नहीं हुए। उसी जज्बे के साथ अपने काम में लगे रहे। अब आखिरकार इन्हें वो सम्मान मिल गया है, जिसके ये हकदार थे। इनको द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिलने से से पहलवानों और कुश्तीप्रेमियों में बेहद खुशी है।
कुश्ती को ऊंचे मुकाम पर पहुंचाना मकसद
द्रोणाचार्य अवॉर्डी सुजीत मान कहते हैं कि कुश्ती उनका जुनून है। भारतीय कुश्ती को ऊंचे मुकाम पर पहुंचाना ही उनका मकसद है। युवाओं को यही संदेश है कि वे अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करें। नशे, सामाजिक बुराइयों से दूर होकर खेलों में आगे आएं। सत्रहा कके प्रधान दलीप सिंह, बड़े भाई सुच्चा सिंह, पारिवारिक सदस्य रवींद्र मान, बिजेंद्र उर्फ भोला पहलवान, प्रदीप मान, जसबीर पहलवान, समरजीत मान, जगबीर मान, हंसबीर मान, अक्षय कुमार, रामकिशन, अशोक मान, रतन सिंह, पूर्व प्रधान संदीप, प्रवीण मान, राजीव मान, रमेश, धर्म, आनंद, अंकुश, नीरज, मनजीत, सुलतान मान, महेंद्र, रमेश, धनराज, जितेंद्र, लालाा और रणबीर आदि का कहना है कि सुजीत ने गांव का मान बढ़ाया है। हमें उनकी उपलब्धि पर गर्व है। जब भी वह गांव लौटेंगे तो उनका जोरदार अभिनंदन किया जाएगा।
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