दुष्यंत को भाजपा की हां, इनेलो को कांग्रेस की ना, जयंत चौधरी करेंगे संघर्ष

धर्मेंद्र कंवारी, रोहतक। राजनीति से जुड़े तीन तथ्यों पर चर्चा करेंगे। दुष्यंत चौटाला की जजपा और भाजपा (JJP and BJP) के गठबंधन पर एनडीए की मोहर, इसके फायदे किसे होंगे और नुकसान किसको होगा। जयंत चौधरी (Jayant Chowdhary) ने भाजपा के साथ ना जाकर राहुल संग जाने का फैसला लिया है, ये किस तरह का कदम है और इनेलो (INLD) विपक्षी दलों के संग चाहकर भी नहीं जा पा रही है तो इसमें आगे उसकी क्या संभावनाएं बनती हैं।
पहले बात करते हैं जजपा और भाजपा के गठबंधन टूटने की कई दिन से चली आ रही खबरों पर आज पूरी तरह से विराम लगने पर। दोस्तों, राजनीति में कई बार स्थिति होलिका दहन के समय प्रह्लाद जैसी हो जाती है। यही हालात भाजपा में से जजपा को निकालने वालों की हो गई है और आज उस बात पर हमेशा के लिए विराम लग गया है कि भाजपा- जजपा गठबंधन कब टूटेगा क्योंकि कांग्रेस के झंडे तले देशभर की विपक्षी पार्टियों के सामने भाजपा के साथ ज्यादा से ज्यादा पार्टियां दिखाने की मजबूरी में भाजपा ने जननायक जनता पार्टी को एनडीए का हिस्सा बना लिया है। जजपा के नेता और दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला एनडीए की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं।
इसी के साथ भारतीय जनता पार्टी में हरियाणा ईकाई में जो लोग हर हाल में जजपा से पीछा छुड़ाना चाहते थे उनको शांत बैठना होगा या कांग्रेस के साथ मिलकर कुछ नया खेल खेलना होगा क्योंकि एनडीए का हिस्सा बनने के बाद भले ही लोकसभा में जजपा को एक या दो सीट मिले फायदे में वही रहने वाली है और ये सीटें भी संभावना इसी बात की है कि भिवानी महेंद्रगढ और हिसार या सिरसा में से ही एक हों। इसी तरह विधानसभा में भी जजपा सीटें बांटेंगी तो निश्चित ही जितने टिकटें भाजपा उसको देगी उतनी ही जगहों पर भाजपा के प्रत्याशी लावारिश हो जाएंगे और दूसरी पार्टियों में जाना उनकी मजबूरी हो जाएगा। चौधरी बीरेंद्र सिंह जो जजपा के खिलाफ अभियान की अगुवाई कर रहे थे उनको सोचना पड़ेगा कि अब उन्हें क्या करना है? बिप्लब देब या धनखड वगैरह तो रातों रात अपनी स्टेटमेंट बदल लेंगे उन्हें कोई दिक्कत नहीं है कि ये कहने में कि केंद्रीय नेतृत्व ने जो किया है सोच समझकर ही किया होगा।
वहीं अगर देश की देखें तो कुल मिलाकर पूरे देश में सूरत ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा के साथ 29 दल तो राहुल गांधी की कांग्रेस के साथ 26 दल दिखाई दे रहे हैं। अभी जैसे जैसे मीटिंगें होगी वैसे वैसे देश की तमाम राजनीतिक पार्टियां दो धडों में बंट जाएंगी। एक धडा वो होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना चाहता है और एक धडा वो होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में लाना चाहता है।
चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी के भाजपा के साथ जाने की अफवाहों और अटकलों पर भी आज विराम लग गया है क्योंकि जयंत चौधरी ने विपक्षी दलों के साथ जाने का रास्ता चुना है और वो बेंगलुरु पहुंच गए हैं। ये बहुत ही मुश्किल रास्ता है। काफी समय से उनके भाजपा में जाने और उत्तर प्रदेश मे उप मुख्यमंत्री तक बनाने की बात हो रही थी लेकिन जयंत चौधरी ने आज सारे कयासों को खत्म कर दिया है विपक्षी दलों की बैठक में पहुंचकर। अगर वो एनडीए का हिस्सा बनना चुनते तो आज सत्ता उनके कदमों में होती लेकिन कुछ लोगों को संघर्ष के रास्ते पंसद आते हैं और शायद जयंत अभी संघर्ष के रास्ते पर हैं। दरअसल पिछले दिनों जयंत चौधरी ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था चावल खाने ही हैं तो खीर खाओ। इसके बाद लोग ये अनुमान लगाने लगे थे कि वो भाजपा में जाने वाले हैं लेकिन अब जयंत ने साफ कर दिया है कि वो खीर अपने घर की बनी हुई ही खाना पसंद करेंगे।
रही बात हरियाणा की इंडियन नेशनल लोकदल की तो तमाम तैयारियों के बावजूद भी इनेलो को अभी इंतजार करना होगा और केसी त्यागी और नीतीश कुमार की सलाह पर ओमप्रकाश चौटाला ने बेंगलुरु जाने का कार्यक्रम टाल दिया है। इनेलो के बेंगलुरु जाने में दो तरह की दिक्कतें थी, पहली तो ये कि विपक्षी दलों की पहली बैठक का आयोजन पटना में सीएम नीतीश कुमार ने किया था लेकिन बेंगलुरु की बैठक का आयोजक कांग्रेस पार्टी है इसलिए नीतीश कुमार जी ये नहीं चाहते थे कि इनेलो बैठक में शामिल हो बिना बुलाए हुए और दूसरा ये था कि इनेलो पार्टी विपक्षी दलों का हिस्सा तभी बन सकती है जब राहुल गांधी इसकी इजाजत दें और राहुल गांधी हरियाणा को उन प्रदेशों में देखते हैं और उनकी रणनीति का भी ये हिस्सा है जहां कांग्रेस से मानकर चल रही है हरियाणा में जब भी भाजपा का विकल्प जनता देखेगी तो वो कांग्रेस ही होगी, इसलिए किसी और पार्टी का साथ लेने से पहले वो सौ बार सोचेंगे इसलिए इनेलो को फिलहाल दूसरी बैठक से अलग रख ही दिया है। तीसरी मीटिंग दिल्ली में होगी और तब इनेलो के लिए अंतिम चांस होगा लेकिन मुझे अब ये बहुत दूर की बात लगता है। फिलहाल तो इनेलो- जजपा को एनडीए का हिस्सा बनते और विपक्षी दलों की बैठक को दूर से ही देखने में मजबूर रहेगी।
रही बात कांग्रेस के हरियाणा के नेताओं की तो इनेलो के शामिल करने के मसले पर करीबन सारे गुट जिनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी समेत सारे एकजुट हैं कि कांग्रेस को प्रदेश में किसी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए तो ऐसे में इनेलो की विपक्षी दलों के साथ शामिल होने की मुहिम सिरे चढ़ने की संभावनाएं अब ना के ही बराबर हो गई है। दीपेंद्र हुड्डा ने कल ही एक बयान दिया है कि अभय चौटाला तो भाजपा से हाथ मिलाने में छह मिनट भी नहीं लगाते ये उसी रणनीति का हिस्सा है कि इनेलो यूपीए में शामिल ना हो पाए। हालांकि राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं है अगर नीतीश कुमार पुरानी दोस्ती निभाएंगे तो लेकिन नीतीश की अपनी प्राथमिकताएं पहले रहेंगी। पहले हर कोई अपने बारे में सोचता है।
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