रोडवेज अफसरों पर भारी, कर्मचारियों की सिफारिश की 'बीमारी'

नरेन्द्र वत्स : रेवाड़ी
रोडवेज डिपो में लंबे समय तक बने रहकर आराम और मलाईदार पदों पर बैठने की आदत कई पुराने कर्मचारियों की पड़ गई है। आलम यह है कि कुछ समय तक दूसरे डिपो में तबादला होने के बाद मंत्रियों और उच्चाधिकारियों की सिफारिश से इसी डिपो में वापसी के हथकंडे कई पुराने कर्मचारी आसानी से आजमा रहे हैं। साथ ही परिचालक के पद पर कार्यरत कई कर्मचारी स्टैंड छोड़कर बसों में टिकट काटने को तैयार नहीं होते। जब ऐसे कर्मचारियों को कोई जीएम या डीआई बसों में टिकट काटने के लिए रूट पर भेज देते हैं, तो 'बड़ी सिफारिश' के बाद यह कर्मचारी फिर से स्टैंड पर ही ड्यूटी लगवाने में कामयाब हो जाते हैं। सबसे बड़ा खेल बस स्टैंड पर होने वाली एडवांस बुकिंग के काउंटरों के लिए खेला जाता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार डिपो में कई ऐसे कर्मचारी मौजूद हैं, जो कंडेक्टर की पोस्ट पर भर्ती होने के बाद गिने-चुने दिन ही बसों में टिकट काटते हैं। उनकी अधिकांश सेवाकाल बस स्टैंड में ही एडवांस बुकिंग या दूसरे पदों पर काम करने में गुजर रहा है। जीएम या डीआई की ओर से जब ऐसे कर्मचारियों को उनकी वास्तविक ड्यूटी पर लगाया जाता है, तो तत्काल आदेश रद्द कराने के लिए मंत्रियों व प्रशानिक अधिकारियों से सिफारिश कराना शुरू कर दिया जाता है। रोडवेज अधिकारियों के लिए ऐसे कर्मचारियों को वापस उसी सीट पर बैठाना मजबूरी बन जाता है।
डीटीएस बावल तक जाना मंजूरी नहीं
बावल में विभाग का ड्राइवर ट्रेनिंग स्कूल चल रहा है। कई मौकों पर जीएम की ओर से जब किसी कर्मचारी का तबादला वहां कर दिया जाता है, तो यहां से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर नौकरी करना भी बस स्टैंड के आदि हो चुके कर्मचारियों को रास नहीं आता। सूत्र बताते हैं कि हाल ही में डीटीएस से वापस रेवाड़ी बस स्टैंड का तबादला कराने के लिए एक कर्मचारी ने पहले मंत्री से लेकर एमएलए तक की सिफारिश लगवाई। उसके बाद भी जीएम ने विचार नहीं किया, तो एक प्रशासनिक अधिकारी के दबाव से वह वापस आने में कामयाब हो गया।
मजबूरी में रखा जाता है बस स्टैंड पर
अक्सर रोडवेज अधिकारी ऐसे कर्मचारियों को रूट पर चलने की छूट दे देते हैं, जो शारीरिक रूप से परेशान या बीमार होते हैं। उम्र के लिहाज से भी चालक-परिचालकों को स्टैंड की ड्यूटी दे दी जाती है, ताकि उन्हें परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। इसके बावजूद पुराने कर्मचारी अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं होते। रूट पर भेजने के बाद वापस स्टैंड पर आने के लिए हरसंभव सिफारिश का प्रयास करते हैं। ऐसे में सेवानिवृति के करीब और बीमारी का सामना करने वाले चालक-परिचालकों केा मजबूरी में रूट पर भेजा जाता है।
नहीं छूटता बुकिंग काउंटर का चस्का
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बस स्टैंड परिसर में कुछ परिचालक ऐसे भी हैं, जो एडवांस टिकट बुकिंग काउंटर छोड़कर बसों में टिकट काटने को तैयार नहीं होते। सूत्रों के अनुसार ऐसे परिचालक विभिन्न रूटों पर चलने वाली परमिट और सहकारी समिति की बसों के परिचालकों से वसूली करने के आदि हो चुके हैं। वसूली के इस फेर में बूथ पर प्राइवेट बसों को निर्धारित से ज्यादा समय देने का प्रयास किया जाता है, ताकि वह अधिक से अधिक सवारियां बैठाने में कामयाब हो जाएं। इससे प्राइवेट के बाद बूथ पर लगने वाली बसों के चालक-परिचालक सवारियों को तरसते रहते हैं।
रेवाड़ी डिपो एक नजर में
कुल बसों की संख्या 238
चल रही बसों की संख्या 146
चालकों की संख्या 238
परिचालकों की संख्या 230
पारदर्शिता के साथ ड्यूटी लगवाने का प्रयास
कई परिचालक बसों में चलने की बजाय स्टैंड पर ही बैठना पसंद करते हैं। इसके लिए वह सिफारिश लगाते रहते हैं, लेकिन ऐसा करना संभव नहीं होता। अगर सभी को बस स्टैंड पर लगाया जाए, तो बसों पर ड्यूटी कौन करेगा। मेरा प्रयास पारदर्शिता के साथ ड्यूटी लगवाना होता है। इसके लिए डीआई को स्पष्ट निर्देश हुए हैं। - रवीश हुड्डा, जीएम, रोडवेज।
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