अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 : मिसाल बनीं प्रो. संतोष दहिया, 5 साल से महिलाओं को फ्री में उपलब्ध करा रही सेनेटरी नैपकिन

हरिभूमि न्यूज : कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड एंड ऑनर्स स्टडीज में शारीरिक शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर काम करने वाली डॉक्टर संतोष दहिया ने गरीब महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन (Sanitary Napkin) देकर एक मिसाल कायम की है। समाज में महिलाओं के लिए एक अनूठी मिसाल बन गई हैं। डॉक्टर संतोष दहिया जिसके लिए उनकी चारों तरफ प्रशंसा की जा रही है।
डॉक्टर संतोष दहिया पिछले 5 साल से सेनेटरी नैपकिन खरीदती हैं और बस्तियों में जाकर महिलाओं को फ्री में उपलब्ध करा रही हैं। वे महिलाओं से बात करती हैं और नैपकिन यूज करने की सलाह देती हैं जबकि शुरूआत में झुग्गी झोपडि़यों में रहने वाली महिलाओं ने सैनिटरी नैपकिन लेने से मना कर दिया था क्योंकि वे मानती हैं कि महावारी के समय कपड़ा ही सही होता है। सेनेटरी नैपकिन खरीदने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं होते और उन्हें मर्दों से शर्म भी आती है। कई महिलाओं ने तो यहां तक कह दिया कि यह पैड बीमारी का घर होते हैं और हम यह यूज नही करेंगे। लेकिन संतोष दहिया ने हार नहीं मानी और वे लगातार पैड लेकर उनसे संपर्क करती रही, धीरे-धीरे उन्हें समझाया और जागरूक किया।
डॉक्टर संतोष दहिया के घर में काम करने वाली महिला बार-बर बीमार हो रही थी जिसके कारण दहिया को यह समझने में देर नहीं लगी कि बीमारी का कोई और कारण है। तब पूछने पर उस महिला ने बताया कि वह कपड़ा यूज करती हैं। तब समझ में आया की गंदगी के कारण बार-बार इंफेक्शन हो रहा है इसलिए उन्होंने यह काम करने का निर्णय लिया। डॉक्टर संतोष दहिया ने बताया कि महिलाओं में पीरियड्स को लेकर बहुत हैजिटेशन है। कुछ महिलाएं तो इसे कुदरत का प्रकोप भी मानती हैं और भगवान का अभिशाप भी। लेकिन जब हमें समझाया गया यह अभिशाप नहीं बल्कि नेचुरल प्रोसेस है जो भगवान की देन है, इसमें घबराने और शर्म जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन अगर सफाई नहीं रखेंगी तो बार-बार बीमार होंगी और यहीं से पैड देने की शुरूआत हुई। आज डॉक्टर संतोष दहिया हजारों की संख्या में पैड वितरित कर चुकी हैं जिसका सारा खर्च वह खुद वहन करती हैं।
उनकी बेटी डॉक्टर सुगंधा ने बताया कि मैंने बचपन से मेरी मां को लोगों के लिए काम करते हुए देखा है इसलिए अब मैं चिकित्सक होने के नाते भी महिलाओं को सफाई और महावारी के बारे में अवगत कराती हूं और अपनी मां का सहयोग करती हूं। डॉक्टर संतोष दहिया ने बताया कि पहली बार हम पैड लेकर गए तो महिलाओं ने लेने से मना कर दिया। और पैड देखते ही अपनी झोपडि़यों की तरफ भाग गई जैसे हमने पेटी में सांप पकड़ रखे हो। महज दो तीन महिलाओं ने ही हमसे वो पैकेट पकड़ा। तब हमें समझ आया कि इसे किसी पेपर में लपेट लिया जाए तो शायद इनकी हैजिटेशन कुछ कम होगी। तब से हमने लपेट के देना शुरू किया। अब वह महिलाएं आसानी से ले लेती हैं। लगभग सभी महिलाओं को मेरा फोन नंबर और मेरे घर का पता है जब भी उन्हें जरूरत होती है तो वह मेरे घर से आकर ले जाती हैं या मुझे फोन कर देती हैं तो मैं जा कर दे आती हूं। हमारा पूरा संगठन मिलकर काम कर रहा है और हम केवल उन्हें जागरूक ही नहीं कर रही बल्कि गंदे कपड़ों से होने वाली बीमारियों के बारे में भी अवगत कराते रहते हैं ताकि वह कम बीमार हो और अपना गुजारा आराम से कर सकें।
© Copyright 2025 : Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS