जान ले रहीं पारिवारिक समस्याएं

जान ले रहीं पारिवारिक समस्याएं
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डॉ. मोनिका शर्मा

साथ और स्नेह की सुदृढ़ बुनियाद कहे जाने वाले परिवार में रिश्तों की रंजिशें और मन का अलगाव जानलेवा साबित हो रहा है। यह वाकई विचारणीय है कि अपनों का साथ हिम्मत देने के बजाय जिंदगी से हारने का कारण बन रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में देश में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या जैसा अतिवादी कदम उठाया है। यह आंकड़ा 2019 के के मुकाबले 10 प्रतिशत ज्यादा है, जिसका सीधा सा अर्थ है कि आत्महत्या की दर 8.7 प्रतिशत बढ़ गई है।

इन दुखद आंकड़ों में गौर करने वाली बात यह है कि सबसे अधिक 33.6 प्रतिशत मामलों में पारिवारिक समस्याएं खुदकुशी की वजह बनी हैं। ऐसे सभी कारण पारिवारिक संबंधों की उलझनों, तलाक, अकेलापन सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से जुड़े हैं। चिंतनीय है कि जो रिश्ते-नाते जीने का आधार और पारिवारिक अपनापन हर हालत में आशाओं की नींव को मजबूती देने वाले रहे, अब मन जीवन को थका रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक़ आत्महत्या करने वालों में शादी से जुड़ी समस्याओं से 5 प्रतिशत और प्रेम संबंधों के चलते 4.4 प्रतिशत लोगों ने जीवन से मुंह मोड़ लिया है। इतना ही नहीं सामाजिक स्थिति से जुड़ी आत्महत्याओं में 66.1 फीसदी शादीशुदा थे और 24 प्रतिशत अविवाहित लोगों ने जीवन से हारने का रास्ता चुना। पारिवारिक जीवन से जुड़े हालात के तहत ही जीवनसाथी को खो चुके विधवा या विधुर लोगों में 1.6 प्रतिशत और तलाकशुदा लोगों में 0.5 फीसदी खुदखुशी के मामले सामने आए हैं।

विचारणीय है कि पारिवारिक समस्याओं से जुड़े पहलू जीवन को हर मोर्चे पर प्रभावित करते हैं। साथ ही जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी तकलीफें भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पारिवारिक जीवन पर असर डालती हैं। ऐसे में भावनात्मक टूटन और व्यावहारिक उलझनों का जाल अनगिनत मुश्किलें खड़ी कर देता है। यही वजह है कि पारिवारिक समस्याओं से जीवन हारने वालों में गृहिणियां भी हैं और पेशेवर महिला-पुरुष भी। दिहाड़ी मजदूर भी हैं और युवा भी। हालांकि कारण अलग-अलग हैं पर समग्र रूप से ऐसी उलझनें घर-आंगन के परिवेश से ही जुड़ी हैं। जो कहीं न कहीं साथ, सहयोग और संबल के रीतते भाव की ओर भी इशारा करती हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2020 में बीमारी से 18 फीसदी, ड्रग्स की लत 6 प्रतिशत, कर्ज के चलते 3.4 प्रतिशत, बेरोजगारी से 2.3 फीसदी और परीक्षाओं में असफलता के कारण 1.4 प्रतिशत ख़ुदकुशी के मामले सामने आए हैं। साफ़ है कि जिन्दगी से मुंह मोड़ने वालों में हर उम्र के लोग शामिल हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि पारिवारिक सहयोग और संबल का भाव विद्यार्थियों से लेकर बेरोजगारी की परिस्थितियों से जूझ रहे वयस्कों तक, सभी के लिए अहम है, जबकि ऐसी अधिकतर घटनाओं के पीछे घर परिवार से मिलने वाला मानसिक दबाव और अपेक्षाएं भी आत्महत्या जैसा कदम उठाने की वजह बन रही हैं। दरअसल, बीते कुछ बरसों में पारिवारिक अलगाव, अपनों अपेक्षाएं और यहां तक कि घरेलू रंजिशें भी आत्महत्या का कारण बन रही हैं। करीबी रिश्तों में भी असंतोष की भावना पनप रही है। अपनों के साथ होकर भी अकेलेपन को जीने के हालात बन गए हैं। इतना ही नहीं पारिवारिक कलह के कारण हिंसा और हत्या के मामले भी देखने में आ रहे हैं। कहीं उपेक्षा का भाव तो कहीं अपेक्षाओं का बोझ, जीवन पर भारी पड़ रहा है। कभी पारिवारिक ताने-बाने में सांसारिक मुश्किलों की अपनों से शिकायत कर मन को संतोष मिल जाता था। आज अधिकतर लोग अपने ही आंगन में असंतोष, आक्रोश और उलाहनों की उलझनों में घिर गए हैं। ऐसे में अपनों से जुड़ी होने के बातें मन को ज्यादा घेरती हैं। भावनात्मक टूटन लाती हैं। कोरोना काल की आपदा ने मुश्किलों को भी बढ़ा दिया है। इन्सान को और अकेला कर किया है। नतीजतन, ख़ुदकुशी के आंकड़ों में इजाफा हुआ तो हुआ ही है, सामाजिक-पारिवारिक मोर्चे पर भी तकलीफें बढ़ी हैं।

यह कटु सच है कि बदलती जीवनशैली और स्वार्थपरक सोच ने मन-जीवन से जुड़ी जटिलताएं बढ़ा दी हैं। व्यक्तिगत स्तर पर जरूरतों की जगह इच्छाओं ने और सामुदायिक जुड़ाव का स्थान एकाकीपन की सोच ने ले लिया है। साथ ही बड़ी आबादी वाले हमारे देश में सामाजिक असमानता, बेरोजगारी और लैंगिक भेदभाव ने भी मानवीय जीवन से जुड़ी मुसीबतें बढ़ाई हैं। तकलीफदेह यह है कि सामाजिक हो या परिवेशगत, हर समस्या से जूझने में परिवार भी मददगार नहीं बन पा रहा है। सच तो यह है कि पारिवारिक स्तर पर ही उलझनों में घर बना लिया है। चिंता की बात यह भी है कि हालिया बरसों में यह जीवन का साथ छोड़ने का अहम कारण बन गया है। साल 2019 में भी आत्महत्या के चार बड़े कारणों में दो घर परिवार से जुड़े कारण ही थे। इनमें समग्र रूप से 29.2 लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते ख़ुदकुशी की। दुखद है कि हमारे यहां कर्ज और बीमारी जैसे कारणों के चलते पूरे परिवार सामूहिक आत्महत्या जैसा कदम तक उठा रहे हैं। ऐसे में पारिवारिक मामलों में बढ़ती मुश्किलों को लेकर चेतना जरूरी हो चली है।

विचारणीय है कि अपनों से जुड़ी परेशानियां इंसान को मन के मोर्चे पर कमजोर बनाती हैं। देश की सुरक्षा में डटे जवानों में भी आत्महत्या का मुख्य कारण पारिवारिक वजहें ही हैं। हाल ही सामने आया था कि जवानों की खुदकुशी के 50 प्रतिशत मामलों के पीछे पारिवारिक उलझनें हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में 2016 से 2020 के बीच विवाहेत्तर संबंधों के कारण हर साल 1100 खुदकुशी हुई हैं| विडम्बना ही है कि खुलेपन की इस सोच के चलते भी जिंदगी में दुश्वारियां बढ़ी हैं और पुरातनपंथी सोच भी लोगों की जान ले रही हैं| यही वजह है कि दहेज की मांग, घरेलू हिंसा के चलते आत्महत्या करने वाली महिलाओं के आंकड़े भी चिंतनीय हैं| समझना मुश्किल नहीं कि ऐसी सभी समस्याएं कमोबेश पारिवारिक हालातों से ही जुड़ी हैं। अफ़सोसनाक है कि संवाद, मनोरंजन और सूचनाओं की पहुंच बढ़ाने वाली तकनीक भी पारिवारिक समस्याओं में इजाफा ही कर रही है| वर्चुअल माध्यमों के जरिये बाहरी दुनिया से जुड़ने की जद्दोज़हद और बेवजह के आभासी संवाद के चलते अधिकतर लोग अकेलेपन को जी रहे हैं|

देखने में आ रहा है कि सामाजिक संवाद का खत्म होता दायरा अब पारिवारिक रिश्तों में पसरते मौन तक आ पहुंचा है। इस बेवजह की मसरूफियत में करीबी लोग भी एक दूजे का हाल जानने के बजाय स्क्रीन में झांक रहे हैं| ऐसे हालात अकेलेपन को पोषित करने वाले और पारिवारिक परिवेश में दूरियां पैदा करने का कारण बन रहे हैं| जरूरी है कि अपनों के मन-जीवन के प्रति भी समझ और संवेदनाएं रखी जाएं। (लेखक मोनिका शर्मा के अपने विचार हैं।)

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