Mushroom farming : परंपरागत फसलों में हुआ नुकसान तो मशरूम उत्पादन से लाखों कमा रहा यह किसान, जानिए सफलता की कहानी

दलबीर सिंह : भूना ( फतेहाबाद )
बेहतर कमाई के लिए बटन मशरूम ( खुंबी ) की खेती एक अच्छा विकल्प है। इसके लिए लंबे-चौड़े खेत की जरूरत नहीं बल्कि नाममात्र जगह ही काफी है। कम जमीन और कम लागत के बाद भी किसानों को कुल खर्च का चार व सात गुना तक इनकम होती है। बटन मशरूम की खेती में बंपर उत्पादन लेकर उकलाना रोड भूना निवासी किसान ओमप्रकाश ओला ने परम्परागत खेती परिवर्तनीय करके नया रिकॉर्ड बनाया है। किसान ने अपने खेत की ढाणी के पास एक यूनिट 32 गुणा 80 साइज की तथा दूसरे वर्ष 32 गुणा 100 साइज की यूनिट लगाई, मगर कोरोना काल को छोड़कर मशरूम की फसल में अच्छी आमदनी हुई है।
इसके चलते उक्त किसान का गेहूं धान व नरमा की फसल बिजाई करने का ही मन नहीं करता, क्योंकि मशरूम में कम खर्च में ज्यादा आमदनी होती है। किसान ओमप्रकाश ओला ने बताया कि उन्होंने भूमिगत पानी खेती योग्य नहीं होने के कारण गेहूं व नरमा तथा सरसों का उत्पादन कम होने के कारण लगातार घट रही आमदन को बढ़ाने के लिए बटन मशरूम की दो यूनिट लगाकर मुनाफे का नया तरीका ढूंढ लिया। मशरूम की खेती करने से किसान को कम जगह में भी लाखों रुपए की आमदनी होनी शुरू हो गई।
नवंबर से मार्च तक होता है मशरूम उत्पादन
12वीं कक्षा पास किसान ओमप्रकाश ओला ने बताया कि सामान्य खेती लागत मूल्य से अधिक बचत नहीं देती इसलिए किसानों को खेती के साथ-साथ अन्य कारोबार को भी अपनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि वह एक छोटा सा किसान है और उसके पास साढ़े 7 एकड़ जमीन है तथा उसके एरिया में भूमिगत पानी भी खारा है, जो जमीन की फसल के लायक नहीं है इसलिए उसने घर बैठे हुए बटन मशरूम उत्पादन का एक आइडिया तैयार किया। जो अब वह प्रति वर्ष मात्र नवंबर दिसंबर व जनवरी तथा फरवरी तक चार महीनों में दो से तीन लाख रुपए के बीच की पैदावार ले रहा है।
ऐसे लगती है बटन मशरूम उत्पादन यूनिट
किसान ओमप्रकाश ओला ने बताया वह बटन मशरूम के बीज दिल्ली से लेकर आते हैं। बटन मशरूम की खेती में गेहूं के अवशेष से बनी तूडी को कंपोस्ट तैयार होती है। एक हट के अंदर मशरूम बोने के लिए लगभग 50 क्विंटल तूडी की जरूरत पड़ती है। तूड़ी में रासायनिक और ऑर्गेनिक खाद मिलाकर उसे करीब एक महीने सडाया जाता है, उसके बाद इसमें मशरूम के बीज बोए जाते हैं। बिजाई के बाद बीज पर कागज लगा दिया जाता है। लगभग 15 दिन बाद उपरोक्त बीज कंपोस्ट से बाहर दिखाई देता है। बीज दिखाई देने के बाद राइस मिल की राखी एवं गोबर की खाद को मिलाकर 2 इंच तक छिड़काव कर दिया जाता है। छिड़काव के मात्र 25 से 30 दिन के बीच में मशरूम तैयार हो जाती है और प्रति दिन एक क्विंटल तक मशरूम निकलने का औसत है। यह मशरूम 80 रुपए प्रति किलो से लेकर 120 रुपए प्रति किलो तक बिक जाती है।
शादियों के सीजन में मशरूम की बढ़ जाती है डिमांड
किसान ओमप्रकाश ने बताया कि मशरूम की शादियों के सीजन में डिमांड अधिक बढ़ जाने से दाम भी अच्छे मिलते हैं। क्योंकि शादियों में लोग पनीर से ज्यादा मशरूम को खाना पसंद करते हैं जिसमें कई प्रकार के विटामिन होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी गुणकारी होती है। अगर इलाका में मशरूम की मांग कम होती है तो दिल्ली व पंजाब में इसकी बिक्री हर समय रहती है। जो 80 रुपए से लेकर 120 प्रति किलो के हिसाब से हाथों हाथ बिक जाती है।
मशरूम उत्पादन कोरोजगार के रूप में अपनाएं
मशरूम एक ऐसा व्यवसाय है जिसे भूमिहीन, शिक्षित व अशिक्षित तथा युवक-युवतियां सभी रोजगार के रूप में अपना सकते हैं। केंद्र सरकार भी किसानों व बेरोजगार युवक-युवतियों को मशरूम प्रोडक्शन को एग्रीकल्चर रिफॉर्म के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। -सुभाष चंद्र, उपनिदेशक उद्यान विभाग हरियाणा
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