किसान आंदोलन : सालभर में एक बार भी घर नहीं गए ये 'हलधर', महापंचायत में किए सम्मानित

रवींद्र राठी. बहादुरगढ़
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में किसानों ने बीते एक साल से जारी आंदोलन के दौरान जबरदस्त व्यूह रचना अपनाते हुए सरकार के हर वार का तरीके से जवाब दिया। बहादुरगढ़ में किसान नेता जोगेंद्र सिंह उग्राहा के नेतृत्व वाली भाकियू एकता (उग्राहा) का सबसे बड़ा पड़ाव है। यह पड़ाव शहर के नए बस अड्डे से लेकर लगभग जाखौदा तक है। शहर के बाईपास पर नवनिर्मित ऑटो मार्केट में इनका धरना अलग से चलता है। इस पड़ाव में आठ ऐसे भी किसान शामिल हैं, जो बीते एक साल में एक बार भी अपने घर नहीं गए। उन्हें शुक्रवार को महापंचायत के मुख्य मंच पर सम्मानित किया गया।
किसान आंदोलन को एक साल तक सफलतापूर्वक चलाने के पीछे जहां रणनीति बनाने वाले बलबीर सिंह राजेवाल, जोगेंद्र सिंह उग्राहा, डॉ. दर्शन पाल, बूटा सिंह बुर्जगिल, अजमेर सिंह लक्खोवाल, जगजीत सिंह दलेवाल, सतनाम सिंह अजनाला, रुलदु सिंह मनसा, राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव व गुरनाम सिंह चढूनी जैसे बड़े किसान नेताओं को हर कोई जानता है। लेकिन कुछ ऐसे भी नाम हैं, जिन्होंने धरातल पर पर्दे के पीछे इस आंदोलन को चट्टानी ताकत दी। भाकियू एकता (उग्राहा) से जुड़े देशा सिंह, गुरबचन, मनप्रीत और पूर्णचंद आदि 8 किसान बीते एक साल में एक बार भी अपने घर नहीं गए और दिल्ली मोर्चे पर अडिग रहे। हालांकि साल भर के दौरान हजारों किसान क्रमबद्ध तरीके से अपने घर और मोर्चे पर आते-जाते रहे। ऐसे ही आठ किसानों को बाईपास पर सेक्टर-13 में हुई किसान महापंचायत में सम्मानित किया गया।
जोगेंद्र सिंह उग्राहा ने आठों किसानों को शॉल भेंटकर सम्मानित किया। देशा सिंह के अनुसार पिछले साल इसी दिन वे घर से कहकर चले थे कि या तो जीत कर आएंगे या फिर किसानी झंडे में लिपटकर आएंगे। उन्होंने माना कि हरियाणा के किसानों ने उनका भरपूर साथ दिया। खूब सम्मान किया और आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। मोदी के ऐलान के बाद उन्हें जीत की खुशी है, लेकिन सैकड़ों साथियों के बलिदान का दु:ख भी है। किसान गुरबचन सिंह का कहना है कि वे जीत गए हैं, लेकिन यह जीत अधूरी है। इसे पूरी करने के बाद ही घर वापस जाएंगे। एक साल पहले दिल्ली कूच के दौरान रास्ते में मिली पुलिस की लाठियां, आंसू गैस के गोले और पानी की बौछारों को वे कभी नहीं भुला सकते। किसान मनप्रीत बताते हैं कि बॉर्डर पर उन्हे दिक्कतें भी आई और घर वालों की याद भी आई, लेकिन जीतने की जिद ने घर नहीं जाने दिया। हालांकि घरवाले ही यहां उनसे मिलने आए थे। किसान पूर्णचंद ने कहा कि जीत की खुशी के साथ अपने किसान भाईयों को खोने का गम भी है। अब घर वापिस तभी जाएंगे, जब आंदोलन पूरी तरह से खत्म होगा।
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