भारत बंद : फतेहाबाद में किसानों ने भाजपा नेताओं के बैनर-पोस्टर फाड़े, केवल एमरजेंसी वाहनों काे दिया रास्ता

भारत बंद : फतेहाबाद में किसानों ने भाजपा नेताओं के बैनर-पोस्टर फाड़े, केवल एमरजेंसी वाहनों काे दिया रास्ता
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भारत बंद का फतेहाबाद जिले में व्यापक असर नजर आया। शहरों में बाजार लगभग पूरी तरह बंद नजर आए। सड़कों पर आज सन्नाटा पसरा नजर आया। किसानों द्वारा केवल एमरजेंसी वाहनों को जाने दिया जा रहा था।

फतेहाबाद : संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी कानून लागू करने की मांग को लेकर भारत बंद का आह्वान किया गया है। भारत बंद का फतेहाबाद जिले में व्यापक असर नजर आया। शहरों में बाजार लगभग पूरी तरह बंद नजर आए। सड़कों पर आज सन्नाटा पसरा नजर आया। किसानों द्वारा केवल एमरजेंसी वाहनों को जाने दिया जा रहा था।


भारत बंद के समर्थन में वकीलों ने सोमवार अदालतों में कामकाज ठप रखा वहीं निजी स्कूलों में भी आज अवकाश घोषित किया गया था। शहर के पेट्रोल पम्प भी दोपहर 2 बजे तक बंद रहे। कानून व्यवस्था बनाए रखने को लेकर पुलिस बल की तैनाती की गई थी। जिले में जगह-जगह पर किसान संगठनों द्वारा रोड जाम कर भाजपा सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई। फतेहाबाद में किसानों द्वारा शहर के मुख्य लाल बत्ती चौक पर धरना देकर हिसार-सिरसा रोड को जाम कर दिया गया। इसके अलावा किसानों ने चौक से फतेहाबाद शहर व भट्टू की ओर जाने वाले रास्तों पर भी ट्रैक्टर-ट्राली व अन्य वाहनों को आड़ा-तिरछा खड़ा कर जाम कर दिया। इसके अलावा फतेहाबाद-भूना रोड पर गांव जांडली के समीप, भूना में ढाणी गोपाल, कुलां में टोहाना-रतिया रोड के अलावा गांवों में भी किसानों ने रोड जाम किए। फतेहाबाद में किसानों ने बाजारों में प्रदर्शन कर खुली पड़ी दुकानों को बंद करने की दुकानदारों से अपील की। इस दौरान बाजार में लगे भाजपा नेताओं के बैनर-पोस्टरों को भी किसानों ने फाड़ डाला।


लाल बत्ती चौक पर किए गए धरने की अध्यक्षता किसान नेता मनफूल सिंह ढाका, बंसी सिहाग, कर्मजीत सालमखेड़ा, संदीप काजला, मलकीत सिंह फौजी, सुरेश गढ़वाल, रामकुमार बहबलपुरिया व बलराज सिंह तूर ने की व संचालन संयुक्त किसान मोर्चा के तहसील संयोजक योगेन्द्र भूथन द्वारा किया गया। किसानों का कहना है कि काले कृषि कानूनों को वापसी की मांग को लेकर किसान 10 महीनों से दिल्ली में डटे हुए है और सरकार उनकी मांग को नहीं मान रही है। किसानों की मांगों को पूरा करने की बजाय सरकार निजीकरण और राष्ट्रीय सम्पदा को बेचने को आमादा है।

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