भ्रूण लिंग जांच : डील से लेकर जांच तक बदलते रहते हैं गिरोह के सदस्य

मनीष कुमार : बहादुरगढ़
जागरूकता मुहिम चलाने और सख्ती बरतने के बावजूद भ्रूण लिंग जांच के मामले नहीं रुक पा रहे। सख्ती को देखते हुए अब कोख के कातिल और ज्यादा शातिर हो गए हैं। विभाग को चकमा देने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। एक ही केस में कई-कई लोग भूमिका निभाते हैं। गर्भवतियों को जांच को ले जाने के दौरान कई-कई रास्ते और गाडि़यां बदल रहे हैं। हाल ही में सामने आए केस से ऐसा ही कुछ खुलासा हुआ है।
दरअसल, विभाग द्वारा बनाई गई फर्जी ग्राहक (डिकोय) का बादली में सुनीता और डॉ. मंजीत से संपर्क हुआ था। डील होने के बाद ये दोनों डिकोय को दिल्ली के नांगलोई में ले गए। वहां नवीन और मोंटी नाम के दो शख्स से मिलवाया। इसके बाद मंजीत और सुनीता वापस लौट गए। मोंटी व नवीन डिकोय को किसान चौक नोएडा ले गए। वहां गाड़ी रोकी और कुछ ही देर में झा नाम का एक शख्स वहां आ गया। झा ने धीरज नाम के एक शख्स को फोन कर के बुलाया। धीरज बाइक पर आया और डिकोय को बैठाकर गाजियाबाद की ओर चल दिया। विभाग की टीम पीछा कर ही रही थी। धीरज मसूरी गेट गाजियाबाद पहुंचा और उसने रिजवान को फोन करके बुलाया। फिर रिजवान कार में बैठाकर डिकोय को पीपलैडा रोड की तरफ ले गया। वहां उसने गाड़ी रोकी और दर्शन चौहान नाम के शख्स को बुलाया। दर्शन बाइक लेकर आया और डिकोय को पीपलैडा (हापुड़) की करीम कॉलोनी स्थित शिफा चेेरिटेबल अस्पताल में ले गया। वहां उसकी जांच हुई। अस्पताल के मालिक वसीम खान ने अल्ट्रासाउंड कर लिंग जांच की। इस तरह से एक ही केस में 9 लोगों के नाम सामने आ गए।
अधिकारियों की मानें तो भ्रूण लिंग जांच गिरोह बेहद शातिर होते हैं। पकड़े जाने से बचने और टीम को भ्रमित करने के लिए ये तरह-तरह के तरीके अपनाते हैं। बीच में दलाल इसलिए भी बदल दिए जाते हैं कि यदि कोई साथी पकड़ में आ जाए तो केस का कनेक्शन न बने। गिरोह के सभी सदस्यों का आपस से कोई कांटेक्ट नहीं होता। एक का दूसरे, दूसरे का तीसरे से संपर्क होता है। इस तरह से चेन सिस्टम में ये काम करते हैं। सीधे रास्ते के बजाय तंग गलियों को अधिक चुनते हैं। एक और अहम बात ये कि यदि टीम जांच के दौरान इन्हें यूपी में रंगे हाथ पकड़ भी लेती है तो वहां के प्रशासन से टीम को कोई मदद नहीं मिल पाती।
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