सोनीपत : पांच देशों ने माना डीसीआरयूएसटी के भौतिकी के शोध का लोहा

हरिभूमि न्यूज : सोनीपत
दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Deenbandhu Chhotu Ram University of Science and Technology) मुरथल के भौतिकी के शोध का लोहा अमेरिका और जापान जैसे दिग्गज देश भी मान रहे हैं। विश्वविद्यालय के शोधार्थी नेहा और डॉ. प्रदीप सिंह के नाभिकीय फ्यूजन पर आधारित शोध को विश्व के बड़े देशों के वैज्ञानिकों ने सराहा है।
डीसीआरयूएसटी, मुरथल में भौतिकी के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. प्रदीप सिंह ने नाभिकीय संलयन पर शोध कार्य किया। उन्होंने ऐसे नाभिकों पर शोध कार्य किया, जो स्वयं कम ऊर्जा से बंधे हुए हैं। इनका संलयन कम ऊर्जा पर भी संभव है। विश्व की प्रयोगशालाओं में इन नाभिकों पर जो संलयन रिएक्शन किए गए उनके परिणामों को मौजूदा थ्योरी व सूत्र की मदद से पूरी तरह समझा नहीं जा रहा था। ये सूत्र तर्कसंगतता पर शत प्रतिशत खरे नहीं उतरे। लेकिन डा. प्रदीप सिंह व शोधार्थी नेहा द्वारा दिया गया नया सूत्र एनपी-20 प्रयोगशालाओं से मिले परिणामों की तर्कसंगतता पर खरा उतरता है। डा. प्रदीप सिंह के अनुसंधान को यूएस, जापान, कोरिया, हांगकॉग व कनाडा आदि देश के वैज्ञानिकों और प्रोफेसरों ने रेफर किया है।
डा. सिंह ने किया 36 रिएक्शनों पर शोध
डा.प्रदीप सिंह ने नाभिकीय (न्यूट्रान और प्रोटोन का संयुक्त रूप) की संख्या 6 से लेकर 209 तक कंबिनेशन बनाकर शोध कार्य किया। नाभिकों की अपनी बनावट का प्रभाव फ्यूजन पर होगा या नहीं , इस विषय पर भी अनुसंधान किया गया। उन्होंने 36 रिएक्शनों पर शोध कार्य किया, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। जिससे यह शोध कार्य इस क्षेत्र में कार्य कर रहे शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ की तरह कार्य करेगा। इन परिणामों से शोधार्थियों को आगे अनुसंधान करने में भी मदद मिलेगी।
कम ऊर्जा पर बढ़ी फ्यूजन होने की संभावना
डा. प्रदीप सिंह ने अपने अनुसंधान में पाया कि कम ऊर्जा पर फ्यूजन होने की संभावना ज्यादा होती है, जबकि ज्यादा एनर्जी पर फ्यूजन की संभावना कम हुई है। उन्होंने सामान्यत: से ज्यादा ऊर्जा पर पाए जाने वाली नाभिकीय सतह के संयोजन से फ्यूजन की संभावना 74 प्रतिशत ज्यादा पाई गई, लेकिन एलिमेंट का आकार सामान्यत: से ज्यादा होने पर, उसके एक डयूट्रोन के दूसरे में स्थानांतरण होने के कारण नाभिकीय फ्यूजन होने की संभावना कम होकर 23 प्रतिशत रह जाती है। ज्यादा ऊर्जा पर फ्यूजन होने की संभावना 36 प्रतिशत कम हो जाती है। डॉ. सिंह का शोधपत्र नाभिकीय क्रियाओं के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त जर्नल न्यूक्लीयर फिजिक्स में प्रकाशित हो चुका है।
शोधार्थियों के लिए बनेगें प्रेरणा स्रोत : प्रो.खासा
विभागाध्यक्ष प्रो. सतीश खासा ने कहा कि डा. प्रदीप सिंह व उनके शोधार्थियों द्वारा किया गया कार्य विश्व के मानकों पर खरा उतरता है। वर्तमान व भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता पूर्तियों की निश्चितता तय करने की तरफ यह एक कदम है। इस प्रकार के शोध दूसरे अनुसंधानकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करेंगे।
वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता से शोध की गुणवत्ता का चलता है पता : कुलपति
भौतिकी में हो रहे अनुसंधान कार्य से विश्वविद्यालय की शोध गुणवत्ता का पता चलता है। विश्वविद्यालय के अनुसंधान कार्य को विकसित देशों के प्रोफेसर और वैज्ञानिकों द्वारा रेफर करने से स्पष्ट हो जाता है कि डीसीआरयूएसटी के शोध को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिली है। उन्होंने कहा कि शोध विश्वविद्यालय की रीड होता है। विश्वविद्यालय द्वारा अनुसंधानकर्ताओं को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
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