Haryana: चुनौतियों से पार पाने की कोशिश में फुटवीयर उद्योग

रवींद्र राठी : बहादुरगढ़
कोरोना वायरस Corona virus) के चलते जहां पूरे देश में कारोबार प्रभावित हुआ है, वहीं बहादुरगढ़ में भी जूता निर्माताओं पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ा है। लॉकडाउन(Lockdown) के दौरान फुटवीयर उद्योग से जुड़ी करीब डेढ़ हजार से ज्यादा फैक्टि्रयां(Factories) लगभग 51 दिन बंद रहने के कारण पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। लेकिन अनलॉक के साथ ही जूता-चप्पल बनाने वाली फैक्ट्रियों में उत्पादन भी रफ्तार पकड़ने लगा है। बाजार में जूते की मांग करीब 50 फीसद तक है और इसी के साथ उत्पादन भी लगभग इसी अनुपात में हो रहा है। हालांकि बदले हालात में जूता उद्यमियों के सामने नई तरह की चुनौतियां भी उभर रही हैं, जिनसे निपटना उनके लिए आसान नहीं रहेगा।
बता दें कि बहादुरगढ़ की फुटवीयर इंडस्ट्री की देश के प्रमुख उद्योगों में गिनती होती है। स्थानीय जूता फैक्टि्रयों में प्रत्यक्ष व प्रत्यक्ष रूप से करीब दो लाख श्रमिक काम करते हैं। लेकिन श्रमिकों के पलायन के बाद कारखाने भी प्रभावित हो गए हैं। उदाहरण के तौर पर सबसे बड़ी जूता यूनिट रिलेक्सो में पहले 8 हजार के लगभग कर्मचारी थे, अब 5 हजार ही काम कर रहे हैं। बहादुरगढ़ के जूता उद्योग का टर्नओवर 20 से 22 हजार करोड़ रुपए के बीच रहता है। यहां देश के 50 प्रतिशत से ज्यादा नॉन-लेदर जूतों का निर्माण किया जाता है। कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण स्थानीय जूता उद्योग को करीब 5 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। लॉकडाउन के दौरान जूता उद्योग करीब 50 दिन पूरी तरह बंद रहे। अभी भी आधी ही फैक्टि्रयां चालू हुई हैं। जूता निर्यातकों के अधिकांश ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं या फिर होल्ड कर दिए गए हैं। उद्यमियों की मानें तो पूरे वर्ष में बमुश्किल 30 फीसद निर्यात की भी उम्मीद नहीं है। ऐसी स्थिति में जूता उद्यमी राज्य एवं केंद्र सरकार से भी उद्योगों को पुर्नस्थापित करने की मांग लगातार कर रहे हैं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय द्वारा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में निवेश व टर्नओवर की सीमा बढ़ाए जाने को स्थानीय जूता उद्योग ने भी सराहा है।
पचास प्रतिशत श्रमिक और उत्पादन
पूरी तरह से छूट मिलने के बाद बड़ी फैक्टि्रयों में करीब 50% उत्पादन होने लगा है। हालांकि अभी डिमांड भी पहले के अनुपात में 50 फीसद ही बताई जा रही है और अगले तीन माह तक डिमांड बढ़ने की संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि डिमांड बढ़ती है तो उत्पादन बढ़ाना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा। क्योंकि श्रमिक क्षमता अभी करीब 50 प्रतिशत ही रह गई है। नियमों के पालन के साथ उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त व्यवस्था भी करनी होंगी।
एसोसिएशन कर रही उद्यमियों को प्रोत्साहित
दहशत के माहौल में एसोसिएशन उद्यमियों को फैक्टि्रयां चलाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके बावजूद अभी आधी मेन फैक्टि्रयां ही चालू हुई हैं, लेबर भी करीब 20-30 फीसद रह गई है। जूता बनाने और बेचने के साथ-साथ इसकी सप्लाई चैन भी बिल्कुल टूट चुकी है। ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। ताकि जूता उद्योग को बर्बाद होने से बचाया जा सके। - सुभाष जग्गा, महासचिव, फुटवियर एसोसिएशन बहादुरगढ़
मैन पावर भी 50 फीसदी रही
शू-मार्केट में रिक्वायरमेंट करीब 50 प्रतिशत रह गई है। मैनपॉवर भी 50 फीसद उपलब्ध है और उत्पादन भी इसी अनुपात है। स्किल्ड लेबर जा चुकी है। सेल रुकने से रुपए का फ्लो भी प्रभावित हुआ है। फ्यूचर में डिमांड बढ़ने पर लेबर की किल्लत खल सकती है। फिजिकल डिस्टेंसिंग से भी दिक्कतें बनी हैं, ऐसे में अतिरिक्त स्पेस मैनेज करना पड़ेगा। - वीरेंद्र कुमार, उपाध्यक्ष, रिलेक्सो फुटवीयर
सप्लाई चैन टूटने से उद्योग की कमर टूट गई
करीब दो महीने फैक्ट्री बंद होने और माल की सप्लाई चैन टूटने के कारण उद्योग की कमर टूट गई है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी जूता बनाने वाली इन फैक्टि्रयों को वापिस ट्रेक पर आने में करीब तीन महीने का समय लग जाएगा। वर्तमान में सरकार को आगे आकर उद्योगों को राहत पैकेज देना चाहिए। अन्यथा फैक्ट्री चलाना मुश्किल होगा। -अशोक रेढू, पूर्व अध्यक्ष, बीसीसीआई
करीबन 300 फैक्टि्रयां ही अभी शुरू हो पाई हैं
जूता उद्योग से जुड़ी छोटी-बड़ी करीब डेढ़ हजार फैक्टि्रयां हैं। इनमें से करीब 300 बड़ी फैक्टि्रयां चल रही हैं। अगर जुलाई-अगस्त माह में हालात सामान्य हो गए तो करीब 50 प्रतिशत टर्नओवर अचीव किया जा सकता है। जूता उद्योग में करीब दो लाख श्रमिक हैं। जिनमें से करीब 50 हजार ही वर्तमान में काम कर रहे हैं। -नरेंद्र छिकारा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, बीसीसीआई
उत्पादन पर लैबर कमी का दिखा असर
बाजार में अभी चप्पल की मांग तो है, लेकिन जूते की डिमांड अपेक्षाकृत कम है। लेबर की कमी के कारण उत्पादन भी 20 प्रतिशत ही है। डिस्ट्रब्यूटर भी मोटा डिस्काउंट चाह रहा है, जिससे लागत भी नहीं निकल रही। यदि सरकार समय से व्यवस्थाएं करती हैं, तभी आने वाले समय में उद्योग इस आर्थिक संकट से उभर सकेंगे और अर्थव्यवस्था अगले स्तर पर पहुंच सकेगी। - हरिशंकर बहती, एमडी, यूनिस्टार फुटवीयर्स
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