Haryana Politics : लोगाें के दबाव तथा सांसद बेटे द्वारा फैसला लेने की बात को भी पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने किया नजरअंदाज, जानें क्यों...

सतेंद्र पंडित. जींद। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह सोमवार को मेरी आवाज सुनो रैली में भीड़ भी अच्छी खासी जुटी, बावजूद इसके कोई बड़ा फैसला नहीं ले पाए। जिसमें पार्टी छोड़ना शामिल था। राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी बीरेंद्र सिंह ने फैसला समय तथा परिस्थितियाें पर भविष्य के गर्भ में छोड़ दिया। भाषण किसानों, मजदूरों, कमेरा वर्ग, महिलाओं और युवाओं से शुरू हुआ। देश की अर्थ व्यवस्था और किसानाें, कमेरा वर्ग की सरकार में भागेदरी के साथ उचाना की राजनीति पर समाप्त हुआ। भाजपा सरकार का सहयोगी जेजेपी पर बिना नेता का नाम लिए कटाक्ष किए गए। जिसके साथ भाजपा को पार्टी छोड़ने चेतावनी भी दी गई। वह भी समय और परिस्थितियों के अनुसार।
जिसके पीछे वजह यह है कि भाजपा व जेजेपी मिल कर गठबंधन में सरकार चला रही है। उचाना विस पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की परम्परागत सीट है। वहीं से बीरेंद्र सिंह व उसका परिवार राजनीति करता आ रहा है। अब उचाना विस से दुष्यंत चौटाला विधायक हैं और गठबंधन सरकार मे डिप्टी सीएम है। गठबंधन रहता है तो उचाना विस जेजेपी के खाते में रहेगी। दुष्यंत चौटाला का उचाना विस से चुनाव लड़ना तय है। ऐसे में बीरेंद्र सिंह के पास पार्टी छोड़ने के सिवाये कोई चारा नहीं बचता। अगर अपनी परम्परागत सीट को बचा कर रखना है तो बीरेंद्र सिंह को उचाना विस से चुनाव लडना होगा। फिर उसके लिए भाजपा को छोड़ना मजबूरी होगा। बीरेंद्र सिंह ने अपने भाषण में यह साफ कहा कि अगर भाजपा जेजेपी गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं तो बीरेंद्र सिंह उचाना विस से चुनाव लडेंगे चाहे उन्हें पार्टी क्याें न छोड़नी पडे़। जो कि भाजपा को इशारे में चेतावनी थी। बीरेंद्र सिंह ने जेजेपी कर भ्रष्टाचार, कमीशन खोरी के आरोप लगाए। यहां तक कहा कि अगर भाजपा यह सोचती है कि जेेजेपी उन्हें वोट दिलाएगी वह गलत है। क्योंकि जेजेपी को खुद वोट नही है। जेजेपी जो कि भाजपा सरकार का हिस्सा है। जबकि भाजपा के खिलाफ कुछ नहीं बोला। हालांकि कृषि अर्थशास्त्री के माध्यम से सबसे बडे़ वोट बैंक किसान, कमेरा वर्ग का यह समझाने का प्रयास किया कि आजादी के बाद से हर क्षेत्र के रेटों तथा वेतनमानों में दो सौ से तीन सौ प्रतिशत बढ़ोतरी हुई लेकिन किसान की फसलों में बीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। दूसरा बड़ा वोट बैंक महिलाओं का है। जिन्हें पुरुषाें के मुकाबले 33 प्रतिशत ज्यादा मेहनताना देने की बात कही गई। युवाओं के हालातों पर भी चर्चा चली। समर्थकों ने भी बडे़ फैसले के दावे किए थे।
बीरेंद्र सिंह के सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह ने यह कह कर भीड़ की उत्सुकता को बढ़ा दिया कि रैली निर्णायक होगी और बड़ा फैसला लेंगे। उन्हाेंने कहा कि चौधरी साहब 54 साल हो गए राजनीति में जो करो दिल से करो, जो नफा नुकसान होगा देखा जाएगा। मेरे नफे नुकसान की चिता ना करें। यही वजह रही कि भीड़ तीन घंटाें तक पंडाल में जमी रही। अंदरूनी तौर से साफ था कि बिना झंडे तथा डंडे के किसान तथा कमेरे वर्ग के नाम पर भीड़ जमा कर लोगों की नब्ज टटोलना था। रैली का आयोजन चुनाव को देखत हुए अपने ताकत का आंकलन करने तथा भाजपा पर दबाव बढ़ाने का रहा। बीरेंद्र सिंह का राजनीति में जो कद है और राज्य स्तरीय रैली में जितनी भीड़ जुटी वह फैसले के अनुरूप नहीं थी। समय परिस्थिति को देखते हुए राजनीति के मंझे खिलाड़ी बीरेंद्र सिंह ने अपना फैसला नहीं लिया। रैली में भीड़ कोई विधायक या एमपी को नहीं बुलाया गया था। रैली में केवल बीरेंद्र परिवार तथा उनके नजदीकी मित्र थे।
हालांकि लोगों को पूरा विश्वास था कि बीरेंद्र सिंह भाजपा को छोड़ नई सियासी पारी खेलेंगे लेकिन बीरेद्र सिंह ने कांग्रेस के बडे़ नेताओ का जिक्र भी मंच से किया और भाजपा द्धारा मान सम्मान दिए जाने की बात भी कही। पेंच उचाना विस का फंसा हुआ है। जिसे बीरेंद्र सिंह किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेंगे। अभी विस चुनाव में समय है। तैयारियां जरूर चली हुई हैं। उसी से पूर्व की कसरत बीरेंद्र की मेरी आवाज सुनो रैली रही। बीरेंद्र सिंह फैसला तो लेंगे लेकिन समय व परिस्थिति को देखकर। कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी संभव है। जेजेपी के साथ अभी गठबंधन है। बदलते समीकरणाें में कौन कहां खडा हो, इसके बारे मे कुछ कहा जा सकता।
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