मिसाल : मां की अर्थी को चार बेटियों ने दिया कंधा, नहीं था भाई, पिता डेढ़ साल से लापता

हरिभूमि न्यूज : बहादुरगढ़
परिवार ने बेटे की चाह रखी। चार बेटियां हुई तो महिला को दुत्कारा जाने लगा। पति व ससुरालियों से सहयोग के बजाय रूखा व्यवहार मिला, खूब ताने सहे लेकिन पीछे नहीं हटी। बेटियों को आंचल में छिपाया, दुलारा और पढ़ा-लिखाकर काम करने लायक बनाया। बेटों से बढ़कर माना। जीवन का सफर थमा तो अब जिम्मेदारियों बेटियों की थी। जरूरत पुरानी परंपराओं को तोड़कर नई शुरुआत करने की थी। बेटियों ने भी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। मृत मां की अर्थी को कंधों पर उठाकर श्मशान भूमि पहुंची और मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया। तमाम रीति-रस्मों से अपनी मां को अंतिम विदाई दी। यह देख लोगों की भी आंख भर आई।
मामला बहादुरगढ़ की कबीर बस्ती का है। यहां की निवासी करीब 51 वर्षीय पद्मा देवी पिछले काफी समय से बीमार थी। कई दिनों तक ईलाज चला, अस्पताल में भर्ती रही। गत तीन फरवरी को उसकी सांसें थम गई। पद्मा की मौत से चार बेटियां अकेली रह गई। जब पद्मा को अंतिम विदाई देने का समय आया तो मुखाग्नि के लिए पति मौजूद नहीं था और बेटा तो हुआ ही नहीं था। जब कोई और आगे नहीं आया तो चारों बेटियां ने कदम आगे बढ़ाए। अपनी मां के पार्थिव शरीर को कांधे पर उठाया और नम आंखों के साथ श्मशान भूमि की तरफ चल दीं। तमाम रस्में निभाते हुए अपनी मां के शरीर को मुखाग्नि दी। इसके बाद तेरहवीं व अन्य रस्में भी इन्होंने ही निभाई। यह देख रिश्तेदारों और आसपास रहने वाले लोगों की भी आंखें भर आईं।
सोनीपत के निवासी योगेश ने बताया कि पद्मा उसकी मौसी थी। करीब 30 साल पहले मौसी की शादी बहादुरगढ़ की कबीर बस्ती में हुई। घर वालों को बेटे की आस थी, लेकिन मौसी को चार बेटियां हो गईं। इसके बाद उनके साथ रुखा व्यवहार शुरू हो गया। मौसी ने फैक्ट्री में काम करके बेटियों को संभाला। तमाम कठिनाइयां झेलकर मौसी ने चारों बेटियों की अच्छी तरह से परवरिश की। करीब डेढ़ साल पहले मौसा जी अचानक कहीं चले गए। वापस नहीं आए। इसके बाद मौसी बीमार रहने लगी। अब कई दिन से अस्पताल में थी। गत तीन फरवरी को अंतिम सांस ली। मौसी ने अपनी चारों बेटियों को बेटे से कहीं बढ़कर माना। बेटियों ने भी पुरानी परंपराओं से आगे बढ़ते हुए अंतिम समय में अपनी मां को अंतिम विदाई दी।
अकेली रह गई बेटियां
सबसे बड़ी बेटी सुशील की उम्र करीब 26 साल है। उसने बीएससी (नर्सिंग) की है। जबकि शालू जॉब करती है। तीसरे नंबर वाली सुमन ने बीएससी नर्सिंग में एडमिशन लिया है। वहीं करीब 15 वर्षीय प्रिया 9वीं कक्षा में पढ़ती हैं। इनका कोई भाई नहीं हैं। पिता कहां है, ये किसी को मालूम नहीं और मां दुनिया छोड़कर चली गई हैं। चारों बेटियां अब अकेली रह गई हैं। इन युवतियों का कहना है कि अपनी मां से उन्होंने संघर्ष करना सीखा है। आज मां के जाने के बाद बेशक अकेली हैं, लेकिन जिंदगी अभी खत्म नहीं हुई है।
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