Womens Week : दिव्यांग होकर भी सैंकड़ों महिलाओं को बनाया स्वावलंबी, पढ़ें इस महिला की कहानी

हरिभूमि न्यूज : जींद
वैचारिक रूप से कमजोर व्यक्ति ही सही मायनों में निशक्त होता है। यदि हम ठान लें तो सफलता को हर हाल में हासिल किया जा सकता है। इसी सोच को लेकर सफीदों निवासी गीतांजलि कंसल खुद तो आगे बढ़ ही रही हैं साथ ही सैंकड़ों लड़कियों को स्वावलंबी बनाने तथा उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने को भी कार्य कर रही हैं।
महिलाओं के उत्थान के लिए उन्होंने खुद की वुमेन इरा फाउंडेशन संस्था बनाई। संस्था अबतक तीन निशुल्क सिलाई सेंटर खोल कर महिलाओं, लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है। वहीं उनके द्वारा सिखाई गई सैंकड़ों लड़कियां विवाह सहित अन्य समारोह में मेहंदी लगाने का कार्य कर स्वावलंबी बनी हुई हैं।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं गीतांजलि
गीतांजलि कंसल बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं और उनके द्वारा लगाई जाने वाली मेहंदी हरियाणा प्रदेश में मशहूर है। सफीदों क्षेत्र की हर लड़की का तो यही सपना होता है जब वो दुल्हन बने तो उसके हाथों पर मेहंदी गीतांजलि के हाथों से ही मेहंदी लगे। बाकायदा वो गीतांजलि मेहंदी आर्ट ग्रुप नाम से मेहंदी प्रशिक्षण भी दे रही हैं जिसमें मेहंदी लगाने के साथ पेंटिंग, नेल आर्ट, ड्राइंग, आर्ट क्राफ्ट आदि विधाएं मुफ्त सिखाती हैं। इसके अलावा उनका लगभग 200 महिलाओं का एक समूह भी है जो हर प्रकार के सामाजिक कायार्ें मंे सदैव अग्रणी रहता है। गरीब कन्या के विवाह में जरूरत का सामान मुहैया करवाना हो, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए सामान देना हो, जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार देकर स्वावलंबी बनाने के लिए उनको सिलाई मशीन उपलब्ध करवाना हो, यह सब कार्य उनका समूह करता है।
राज्यपाल से हो चुकीं सम्मानित
गीताजंलि कंसल को प्रशासन द्वारा उनके द्वारा किए जाने वाले समाजसेवा के कार्योँ को लेकर राजकीय सम्मान, हरियाणा के राज्यपाल द्वारा नारी शक्ति सम्मान और जूनियर चैंबर इंटरनेशनल के राष्ट्रीयध्यक्ष द्वारा पूरे जोन मे श्रेष्ठ चेयरपर्सन सम्मान के अलावा बड़े-बडे़ सम्मानों से नवाजा जा चुका है। गीतांजलि कहती हैं कि शारीरिक कमजोरी से इंसान उभर सकता है लेकिन विचारों की कमजोरी मनुष्य को कभी भी आगे बढ़ने नहीं देती हैं। वैचारिक रूप से कमजोर व्यक्ति ही सही मायनों में निशक्त होता है। जब वह नौ माह की थी तो उन्हें पोलियो हो गया। इसकी वजह से उन्होंने अपने पैरों की जान खो दी। इतना सब होने के बाद जहां इंसान जीने की आस छोड़ देता है वहीं उन्होंने अपनी इस कमजोरी को अपनी ताकत बनाया और आज वो जिस मुकाम पर हैं वह कोई अच्छा व्यक्ति भी आसानी से नहीं पहुंच सकता है।
दिव्यांगता को कभी हावी नहीं होने दिया
गीतांजलि कंसल दोनों पैरों से चलने में असमर्थ हैं लेकिन उन्होंने इस शारीरिक अक्षमता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। जीवन में आई हर मुश्किल का डट कर सामना किया और कभी भी किसी पर बोझ नहीं बनी। अपनी प्रतिभा के बल पर हिंदी व इंग्लिश में एमए की। आज गीतांजलि बच्चों को टयूशन पढ़ाने के साथ-साथ टेडी बीयर बनाना, पेंटिंग करना, मेहंदी लगाना, कपड़े सिलाई, कढ़ाई करना सिखा रही हैं। इसके साथ ही सफीदों स्थित किड्स वैली प्ले स्कूल में बतौर प्रबंधक भी काम कर रही हैं और हर समाजसेवा के कार्यों में भी बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं।
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