किसानों के लिए खुशखबरी : एचएयू वैज्ञानिकों ने अधिक पैदावार देने वाली गेहूं की उन्नत किस्म डब्ल्यूएच 1270 विकसित की

हरिभूिम न्यूज : हिसार
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की मेहनत की बदौलत एक ओर उपलब्धि विश्वविद्यालय ने अपने नाम कर ली है। अब वैज्ञानिकों ने गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 उन्नत किस्म विकसित की है।
यह वैज्ञानिकों की मेहनत का ही परिणाम है कि हरियाणा प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत ही छोटा है जबकि देश के केंद्रीय खाद्यान भण्डारण में प्रदेश का कुल भण्डारण का 16 प्रतिशत हिस्सा है और फसल उत्पादन में अग्रणी प्रदेशों में है, जो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज हरियाणा प्रदेश गेहूं के प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता में देशभर में प्रथम स्थान पर है। इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की 'फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति' द्वारा नई दिल्ली में हाल ही में आयोजित बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है।
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए की गई है विकसित
गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 उन्नत किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान(कोटा व उदयपुर क्षेत्र को छोडक़र), पश्चिमी उत्तर प्रदेश(झांसी क्षेत्र को छोडक़र), जम्मू-कश्मीर के कठुआ व जम्मू जिले, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला व पौंटा घाटी और उत्तराखण्ड का तराई क्षेत्र प्रमुख रूप से शामिल हैं।
सिफारिश अनुसार बिजाई करने पर मिलती है अधिक पैदावार : डॉ. एस.के. सहरावत
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि गेहूं की इस किस्म को अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में बिजाई के लिए अनुमोदित किया गया है। अगेती बिजाई करने पर इसकी पैदावार प्रति एकड़ 4 से 8 क्विंटल तक अधिक ली जा सकती है। उन्होंने बताया कि इस किस्म में विश्वविद्यालय द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार बिजाई करके उचित खाद, उर्वरक व पानी दिया जाए तो इसकी औसतन पैदावार 75.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है और अधिकतम पैदावार 91.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है। इस किस्म की खास बात यह है कि यह गेहूं की मुख्य बिमारियां पीला रत्तवा व भूरा रत्तवा के प्रति रोगरोधी है। इसके अलावा गेहूं के प्रमुख क्षेत्रों में प्रचलित मुख्य बिमारियां जैसे पत्ता अंगमारी, सफेद चुर्णी व पत्तियों की कांग्यिारी के प्रति भी रोगरोधी है। यह किस्म 156 दिन तक पककर तैयार हो जाती है अैर इसकी औसत ऊंचाई भी 100 सेंटीमीटर तक होती है, जिसके कारण यह खेत में गिरती नहीं। इस किस्म में प्रोटीन भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है।
इन वैज्ञानिकों की मेहनत लाई रंग
गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 उन्नत किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग के वैज्ञानिक डॉ. ओ.पी. बिश्नोई, डॉ. विक्रम सिंह, डॉ. एस.के. सेठी, डॉ. एस.एस. ढांडा, डॉ. दिव्या फोगाट, डॉ. एम.एस. दलाल, डॉ. सोमवीर, डॉ. आई.एस. पंवार, डॉ. ए.के. छाबड़ा, डॉ. योगेंद्र कुमार, डॉ. के.डी. सहरावत, डॉ. मुकेश सैनी, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. कृष्ण कुमार, डॉ. वाई.पी.एस. सोलंकी और डॉ. ए.लोकेश्वर रेड्डी के अलावा डॉ. आर.एस. बेनीवाल, डॉ. रेनू मुंजाल, डॉ. भगत सिंह, डॉ. नरेश सांगवान, डॉ. आर.एस. कंवर, डॉ. प्रिंयका, डॉ. राकेश पुनियां, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ.निशा कुमारी, डॉ. बबीता व डॉ. हरबिंद्र सिंह का भी विशेष सहयोग रहा।
अगले वर्ष से होगा बीज उपलब्ध : डॉ. ए.के. छाबड़ा
पादप एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. ए.के. छाबड़ा ने बताया कि रबी के मौसम के लिए सिफारिश की गई इस किस्म का बीज अगले वर्ष किसानों के लिए उपलब्ध करवा दिया जाएगा। यह किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी।
वैज्ञानिकों की मेहनत काबिलेतारिफ : प्रोफेसर समर सिंह
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर समर सिंह ने वैज्ञानिकों द्वारा इस उपलब्धि पर बधाई दी और भविष्य में भी निरंतर प्रयासरत रहने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों की मेहनत बहुत ही काबिलेतारिफ है, जिनकी बदौलत आज केंद्रीय खाद्यान भण्डारण में प्रदेश का मुख्य स्थान है और गेहूं उत्पादन में देशभर में प्रथम स्थान पर है।
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