राज्यपाल आचार्य देवव्रत बोले- 70 फीसदी पानी बचाकर दोगुना उत्पादन देती है प्राकृतिक खेती

राज्यपाल आचार्य देवव्रत बोले- 70 फीसदी पानी बचाकर दोगुना उत्पादन देती है प्राकृतिक खेती
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राज्यपाल गुरुकुल कुरुक्षेत्र में गुजरात से पधारे अतिथियों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज भारत में ऐसा कोई घर नहीं है जहां इन बीमारियों से कोई प्रभावित न हों।

कुरुक्षेत्र। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत (Acharya Devvrat) ने कहा कि रासायनिक खेती के महंगे कीटनाशक, यूरिया, पेस्टीसाइड से किसान को कर्जदार बना दिया है वहीं इस कीटनाशकों के कारण खाद्यान्न विषैले हो गए है जिस कारण बीपी, शुगर, हार्ट अटैक, किडनी फेल आदि बीमारियों ने आम आदमी को भी अपने चपेट में ले लिया है। राज्यपाल गुरुकुल कुरुक्षेत्र में गुजरात से पधारे अतिथियों को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि आज भारत में ऐसा कोई घर नहीं है जहां इन बीमारियों से कोई प्रभावित न हों। यह सब रासायनिक खेती में डाले जा रहे यूरिया, कीटनाशकों के प्रयोग से हुआ है, अब तो मां के दूध में भी यूरिया पाया गया है जिससे स्पष्ट है कि हमारा पर्यावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है, यही केमिकल जमीन के अंदर जाकर भूमिगत जल को दूषित करते है जिससे चर्मरोग पैदा होते हैं। इन सबसे बचने का एक ही उपाय है कि मेरे देश का किसान रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाएं। प्राकृतिक खेती में 70 फीसदी पानी की बचत के साथ दोगुना उत्पादन मिलता है और किसान को अपनी फसल का दाम भी अधिक प्राप्त होता है।

उन्होंने बताया कि गुरुकुल के फार्म पर धान की फसल में पानी भरकर नहीं रखा जाता बल्कि अन्य फसलों की तरह ही सिंचाई की जाती है और पैदावार भी 30 से 32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसी प्रकार गन्ने की फसल एक बार लगाने के बाद चार-पांच वर्ष तक चलती है और पैदावार 400 से 600 क्विंटल तक होती है।

प्राकृतिक खेती संवाद में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने अतिथियों को रासायनिक खेती से धरती को होने वाले नुकसान के साथ-साथ प्राकृतिक खेती से धरती, पर्यावरण और ग्लोबल वामिंर्ग पर प्रभाव का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया। डॉ. हरिओम ने कहा कि 60 के दशक में एक किलो फर्टिलाइजर से 13 किलो अन्न उत्पन्न होता था मगर आज स्थिति बिल्कुल उल्टी है। अधिक उत्पादन के चक्कर में किसानों ने बडी मात्रा में यूरिया, डीएपी, कीटनाशक डालकर धरती का स्वास्थ्य बिगाड़ दिया है। इसका प्रभाव पर्यावरण पर भी हुआ अब थोड़ी सी बरसात से बाढ़ आ जाती है और यदि बरसात न हो तो सूखा पड़ जाता है। गेहू-धान फसल चक्र के कारण हरियाणा, पंजाब में 4 से 10 फुट पानी प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है जो बेहद घातक स्थिति है।

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