गुरनाम चढूनी बोले- भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में पंजाब व हरियाणा की स्थायी सदस्यता बहाल करे सरकार

गुरनाम चढूनी बोले- भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में पंजाब व हरियाणा की स्थायी सदस्यता बहाल करे सरकार
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चढूनी ने कहा कि संशोधित नियम के तहत बीबीएमबी से पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की स्थायी सदस्यता समाप्त हो गई है। पुराने नियम के तहत बीबीएमबी का सदस्य, पावर पंजाब से और सिंचाई, सदस्य हरियाणा से होता था लेकिन संशोधित नियम के बाद यह अनिवार्य नहीं रह गया है।

हरिभूमि न्यूज. कुरुक्षेत्र

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा 23 फरवरी को भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (संशोधन) नियम-2022 लागू करने पर अपनी प्रतिक्रया देते हुए भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम चढूनी ने कहा कि मोदी सरकार ने पंजाब पुनर्गठन कानून 1966 का सरासर उल्लंघन करते हुए हरियाणा के अधिकारों को कुचलने का काम किया है।

कृषि कानूनों को खत्म करने के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों ने आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी, जिसमें किसानों की ऐतिहासिक जीत हुई और मोदी सरकार को कानून वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था। इससे तिलमिलाई मोदी सरकार अब दोनों प्रदेशों से बदला लेना चाहती है और फूट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए भविष्य में कोई किसान आंदोलन सफल न हो सके, इसके लिए साजिश के तहत हरियाणा और पंजाब के किसानों के बीच बिजली और पानी को लेकर मतभेद पैदा करना चाहती है।

चढूनी ने कहा कि संशोधित नियम के तहत बीबीएमबी से पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की स्थायी सदस्यता समाप्त हो गई है। पुराने नियम के तहत बीबीएमबी का सदस्य, पावर पंजाब से और सिंचाई, सदस्य हरियाणा से होता था लेकिन संशोधित नियम के बाद यह अनिवार्य नहीं रह गया है। पंजाब और हरियाणा की जगह अन्य राज्यों से भी सदस्य लिए जा सकेंगे। स्थायी सदस्य न होने का खामियाजा राज्यों को भुगतना पड़ेगा। बाहर से जो बोर्ड में सदस्य बनेगा उसे पंजाब की बिजली समस्या का पता नहीं होगा और ना ही उसे हरियाणा और राजस्थान की सिंचाई जरूरतों की जानकारी होगी। जब तक बाहरी सदस्यों को राज्यों के हालात की समझ आएगी, तब तक 3 साल का समय पूरा हो जाएगा।

भाकियू केंद्र सरकार से मांग करती है की इस संशोधन को तुरंत रद्द कर हरियाणा व पंजाब की स्थाई सदस्यता को तुरंत दोबारा बहाल किया जाए। क्योंकि जो राज्य पानी का प्रयोग करते है उन्हें अपनी अपनी जरूरत का पता होता है। इसलिए वह राज्य इस मामले में सोच समझकर निर्णय ले सकते है अन्यथा राज्यों में पानी बंटवारे व अन्य मुद्दों को लेकर विवाद उत्पन्न होंगे। अगर सरकार राज्यों की स्थाई सदस्यता को बहाल नहीं करती तो भाकियू कड़ा फैसला ले सकती है।

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