Mustard purchase : किसानों की बल्ले-बल्ले, सरकार को चूना, मंडी की बजाय खेत में ही खरीदी जा रही सरसों

Mustard purchase : किसानों की बल्ले-बल्ले, सरकार को चूना, मंडी की बजाय खेत में ही खरीदी जा रही सरसों
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गांवों में किसानों ने व्यापारियों की ओर से खरीदी जाने वाली सरसों तेल मिल मालिकों को बेची जा रही है। इसमें प्रदेश ही नहीं राजस्थान व दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों की मिल शामिल है।


नितेश कुमार : नारनौल

सरसों का भाव मार्केट में समर्थन मूल्य से अधिक होने के साथ ही सरसों की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। जिससे न केवल लाखों रुपये की मार्केट फीस चोरी की जा रही है, बल्कि अनाज मंडी में दुकानें खोलकर बैठे लाइसेंस धारक आढ़तियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। गांवों में किसानों ने व्यापारियों की ओर से खरीदी जाने वाली सरसों तेल मिल मालिकों को बेची जा रही है। इसमें प्रदेश ही नहीं राजस्थान व दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों की मिल शामिल है। मार्केट कमेटी फीस व टैक्स चोरी कर व्यापारी आराम से बिना किसी भय के सरसों की कालाबाजारी करके मोटी कमाई कर रहे है। वहीं सरकार को लाखों रुपये का चुना लग रहा है, लेकिन इसके बावजूद न तो मार्केट कमेटी और नहीं प्रशासन इस कालाबाजारी को रोकने के लिए कोई कारगर कार्रवाई कर नहीं कर रहा है।

बता दे कि अनाज मंडी में सरसों आने पर लाइसेंस धारक बोली लगाकर सरसों की खरीद करता है। जिसके लिए एक फीसदी मार्केट कमेटी की फीस अदा करनी पड़ती हैं। इसके अलावा पांच प्रतिशत जीएसटी टैक्स सरकार को देना होता है। व्यापारी मार्केट कमेटी फीस व पांच प्रतिशत जीएसटी की चोरी करके सरकार को गत दिन साल से हर साल लाखों रुपये का चूना लगाकर मोटी कमाई करने में लगे हुए है। यहां पर बता दे कि गत तीन साल से बाजार में सरसों का भाव सरकार के समर्थन मूल्य से ज्यादा रहा है। गत साल सरसों का बाजार में भाव आठ हजार रुपये से भी ज्यादा तक पहुंच गया था, जबकि सरकारी भाव 4650 रुपये था। बात करें इस साल की तो सरकार ने इस बार सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये निर्धारित किया है, जबकि मार्केट में अभी सरसों का भाव करीब 6600 रुपये है। इस प्रकार फिलहाल सरसों के सरकारी व मंडियों में चल रहे भाव में डेढ़ हजार रुपये का अंतर है।

मिल मालिक सीधे किसान से नहीं खरीद सकते सरसों

मिल मालिक सीधे किसान से सरसों नहीं खरीद सकते है, लेकिन टैक्स से बचने के लिए मिल मालिक छोटे व्यापारियों के माध्यम या खुद गांवों में जाकर सीधे किसानों से सरसों की खरीद कर रहे है। इस प्रकार मिल मालिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करके सरकार को चूना लगा रहे है। ऐसा एक मामला गत साल सामने आया था। जिसमें मिल से सरसों की गाड़ी पकड़कर मार्केट कमेटी की फीस व टैक्स वसूला गया था।

किसानों को फायदा

खेत या घर पर ही सरसों बिकने से किसानों को भी फायदा हो रहा है, क्योंकि घर पर सरसों बिकने से किसानों को मंडी तक सरसों लेकर आने के लिए साधन का किराया भी नहीं देना पड़ रहा है। वहीं मंडी में आढ़तियों की ओर से नमी की मात्रा बताकर प्रति क्विंटल काटी जाने वाली कटौती भी नहीं देनी पड़ रही है।

क्या कहती है मार्केट कमेटी सचिव

इस बारे में मार्केट कमेटी नुकुल यादव ने बताया कि मंडी में आने वाली सरसों की रिकॉर्ड रख सकते है। बाहर गांवों में बीची जाने वाली सरसों का नहीं। मंडी में आने वाली सरसों से मार्केट कमेटी फीस वसूल की जाती है। अगर कोई गांव में किसान से सीधे सरसों खरीद करता पकड़ जाता है तो उससे मार्केट कमेटी फीस वसूल की जाएगी। इसके अलावा मार्केट कमेटी नियमानुसार चार्ज भी वसूला जाएगा।

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