हरिभूमि ने ढूंढ लिया जानी चोर का गांव : भरतपुर के मेवात क्षेत्र में है चोरगढ़ी

- चोरगढ़ी गांव में रहते हैं मेव जाति के लोग, प्राचीन काल से ही चोरी करना इस गांव के लोगों का रहा मुख्य धंधा
- यहां के दबंग लोग करते रहे हैं खुटैल का काम
- अब बच्चों को पढ़ाकर सरकारी नौकरियों में भेजने की सोचने लगे गांव के लोग
राज कुमार नरवाल,महम : सांग, किस्से, कहानियों और रागनियों में आपने जानी चोर का नाम तो सुना ही होगा। एक रागनी में गाया जाता है कि भूरे मेव का बेटा सूं, चोरगढ़ी गाम सै मेरा, भूलै मत ना अदली, जानी नाम सै मेरा। जानी चोर ने हरियाणा के रोहतक जिले के कस्बा महम में स्थित शाहजहां काल में बनाई गई बावड़ी को अपना छिपने का ठिकाना बनाया था। यह बावड़ी जानी चोर की बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। हरिभूमि ने जानी चोर के उस चोरगढ़ी गांव को ढूंढ लिया है, जिसका जिक्र सांग, किस्सों और रागनियों में मिलता है। यह चोर गढ़ी गांव राजस्थान के भरतपुर एरिया के मेवात क्षेत्र में है। कुछ महीने पहले ही इस गांव का जिला भरतपुर से बदलकर डीग हो गया है।
राजस्थान में डीग नया जिला बनाया गया है। यह सीकरी तहसील का गांव है और खोह थाना लगता है। यह गांव गुलपाड़ा से डीग मार्ग पर है। आस पास के गांवों में काबान का वास, कौलरी, टौडा व जट्टवास आदि हैं। इस गांव में 100 फीसदी लोग मेव जाति के हैं। करीब 80 फीसदी लोग अनपढ़ हैं। गांव ज्यादा बड़ा नहीं है। करीब 500 ही घर इस गांव में हैं। यह गांव भरतपुर लोकसभा क्षेत्र की नगर विधानसभा के एरिया में आता है। पुलिस के रिकॉर्ड में आज भी इस गांव का नाम चोरगढ़ी है। कुछ साल पहले इस गांव का नाम चोर गढी से बदलकर गढ़ी मेवात रख दिया गया है। पहले यहां पांचवीं कक्षा तक का ही सरकारी स्कूल होता था। अब विधायक वाजिब अली ने इस गांव के सरकारी स्कूल का दर्जा बढ़वा दिया है। हालांकि अब इस गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर सरकारी नौकरियों में भेजने की सोचने लगे हैं। इस गांव के 80 प्रतिशत लोगों का मुख्य धंधा चोरी करना रहा है। इसके साथ लगते कुछ अन्य गांव के लोग भी चोरी चकारी के पेशे से जुड़े रहे हैं। इन गांवों के बुजुर्ग खुलकर यह मानते हैं कि उनके बाप दादा ने जमकर चोरियां की हैं और वे खुद भी इस धंधे से जुड़े रहे हैं। यहां जो दबंग लोग होते थे, वे खुटैल का काम करते रहे हैं। काबान का वास गांव के एक व्यक्ति ने बताया कि जो लोग चोरी करते थे और उन्हें डर होता था कि पुलिस या अन्य कोई व्यक्ति उनसे सामान छीनकर ले जाएगा, तो वे खुटैल के पास सामान रख देते थे।
खुटैल के पास से चोरी का सामान ले जाने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। खुटैल चोरी करके लाए गए सामान के बदले में चोर काे पैसे दे देता था और सामान खुद रख लेता था। पहले यहां पर पशुओं व अन्य सामान की चोरी का काम किया था। उसके बाद वाहन व बाइक चोरी का काम किया जाने लगा। इंटरनेट आया तो नई पीढ़ी ओलेक्स आदि के माध्यम से ऑन लाइन ठगी का काम करने लगी। चोरगढ़ी गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग वहीद ने बताया कि यहां पर सिंचाई के साधन नहीं थे। जिस वजह से भूखमरी का आलम था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए यहां के 75 प्रतिशत लोग चोरी के धंधे में संलिप्त थे। अब खेतों में थोड़ी बहुत सिंचाई होने लगी है। लोग मेहनत मजदूरी भी करने लगे हैं। उनके कुछ बच्चे फौज में भी भर्ती हुए हैं। अब पहले वाली वो बात नहीं रही हैं। चोर गढ़ी गांव के नजीर हुसैन कहते हैं कि जानी चोर उनके ही गांव से थे। उन्होंने उनका बहुत नाम सुना है। चोर आपस में कहते थे, देखा न ऐसा तू जानी चोर। गांव के ज्यादातर बुजुर्ग अनपढ़ हैं, जिस वजह से उनकी गांव के इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही उन्हें इस बात की जानकारी है कि जानी चोर किस परिवार से ताल्लुक रखता था। इसी गांव के 70 वर्षीय बुजुर्ग नूरा ने कहा कि उन्हें तो बस यही सुना है कि जानी चोर उनके ही गांव का था। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ नहीं सुना।
राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र के मेवात एरिया में स्थित चोर गढ़ी गांव का सरकारी स्कूल।
चोरगढ़ी गांव तक पहुंचना नहीं है आसान
चोरी की वारदातों में संलिप्त रहने की वजह से यह गांव इतना बदनाम हो चुका है कि आस पास के क्षेत्र के गांवों के लोग किसी बाहरी व्यक्ति को इस गांव की तरफ नहीं जाने का सुझाव देते हैं। इस गांव में यदि कोई बाहर से चला भी जाता है तो उससे कोई बात करना पसंद नहीं करता। उसे सीआईडी का ही आदमी समझा जाता है। हमारी गाड़ी के ड्राइवर से भी गांव के लोगों ने यही कहा कि हमें तो ये लोग सीआईडी के आदमी लगते हैं। चोरगढ़ी गांव तक पहुंचना बाहरी व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। जिससे भी बात करो, वह यही कहता था कि क्या करोगे साहब वहां जाकर, वहां तो पुलिस को भी 20 गाड़ियां लेकर जाना पड़ता है। कुछ मामले तो ऐसे हुए हैं कि फौज बुलानी पड़ी थी।
चोरगढ़ी गांव में कैसे पहुंची टीम
हमने इतिहास पर दृष्टिपात किया तो पता चला कि जानी चोर मेव जाति के थे। उनका गांव चोरगढ़ी है। मेव जाति के लोग मेवात में रहते हैं। नूंह में पूछताछ की तो पता चला कि चोरगढ़ी मेवात में ही है। लेकिन मेवात का यह हिस्सा राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र में आता है। चोरगढ़ी गांव वहीं पर है। फिर हमने फिरोजपुर झिरका के गांव पाटखोरी में संपर्क किया। यहां से एक जानकार को साथ लेकर उन्हीं की बोलेरो गाड़ी में राजस्थान के गुलपाड़ा गांव पहुंचे। उसके बाद पालका गांव पहुंचे। पालका गांव से दो जानकार लिए, उनकी कार लेकर हमारी गाड़ी के आगे आगे चली। फिर काबान का वास गांव में वे अपने जानकार के पास हमें लेकर पहुंचे। फिर उस जानकार को लेकर हमने चोरगढ़ी गांव में एंट्री की। काबान का वास गांव के व्यक्ति के वहां पर सभी जानकार थे। इसलिए इस गांव के लोगों ने हमारे साथ खुलकर बातचीत की। चोरी की ऐसी घटनाएं बुजुर्गों ने हमारे साथ सांझा की, जिनको समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं किया जा सकता।
कहां कहां तक फैला है मेवात
अरावली पर्वत श्रंखला के काला पहाड़ की तलहटी में बसे फिरोजपुर झिरका के गांव पाटखोरी निवासी 76 वर्षीय बुजुर्ग नवाब खां ने बताया कि मेवात क्षेत्र दिल्ली, यूपी, राजस्थान और हरियाणा में फैला हुआ है। उन्होंने एक कहावत सुनाते हुए बताया कि इत दिल्ली, इत आगरा, बावल और बैराठ काला पहाड़ सुहावना इसके बीच बसै मेवात। मेवात क्षेत्र आगरा, भरतपुर, बैराठ, बावल, अलवर, गुड़गांव, नूंह, पलवल, फरीदाबाद, दिल्ली के चांदण हुल्ला और हौदराणी गांव तक फैला हुआ है।
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