डॉ दयानन्द कादयान का लेख : गौरवमयी है हरियाणा का इतिहास

डॉ दयानन्द कादयान का लेख : गौरवमयी है हरियाणा का इतिहास
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1926 में ही साइमन कमीशन के भारत आगमन पर अलग हरियाणा प्रांत की मांग का प्रस्ताव रखा गया। 1931 में जब महात्मा गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन जा रहे थे, तो उस समय पंडित नेकीराम शर्मा, देशबंधु गुप्ता व श्री राम शर्मा ने गांधी जी से प्रार्थना की थी कि हरियाणा क्षेत्र के जिलों को दिल्ली में मिलाया जाए, लेकिन गांधी जी ने उनकी मांग को गंभीरता से नहीं लिया। 1931 में दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में इन नेताओं ने अलग हरियाणा की मांग बड़ी जिम्मेदारी से उठाई थी। 1932 में पानीपत निवासी तेज अखबार के संपादक देशबंधु गुप्ता ने बड़ी दृढ़ता से हिंदी भाषा क्षेत्र को पंजाब से अलग करने की मांग उठाई।

पावन वेद मंत्रों की मधुर ध्वनि से गुंजित, भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता के अमर संदेश से संचरित हरियाणा का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सूरदास, गरीबदास, संत नितानंद और निश्चल दास जैसे रमते योगियों ने यहां पर साहित्य साधना की है। चौरंगी नाथ ने यहां बैठकर साहित्य सृजन किया। हरियाणा सामाजिक साहित्यिक व सांस्कृतिक दृष्टि से बड़ा समृद्ध रहा है। विदेशी आक्रांताओं ने यहां पर आकर ही तरावड़ी और पानीपत की लड़ाइयां लड़ी। यहां के लोगों की वीरता का प्रमाण दे रही है। 1857 की क्रांति में रोहनात, मंगाली, चिमनी, नसीबपुर, छुछकवास, झज्जर तथा सांपला आदि सैकड़ों स्थान पर अंग्रेजों से लोहा लिया गया। यह कहना बिल्कुल ही तर्क संगत नहीं है कि हरियाणा प्रांत की मांग विभाजन की घटनाओं का एक नतीजा है। यह पंजाबी सूबे की मांग होने के कारण अलग हरियाणा राज्य की मांग की गई। हरियाणा की उत्पत्ति का मूल कारण संयुक्त पंजाब के हुकुमरानों का यहां की जनता के साथ भेदभावपूर्ण रवैया रहा। पहले अंग्रेजों ने उसके बाद पंजाब की हुकूमत ने यहां के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया। इस कारण चौधरी छोटू राम की जमीदार लीग पार्टी में भी अलग हरियाणा की मांग उठती रही। कांग्रेस के अधिवेशन में 1923 में महम के बद्री प्रसाद ने अलग हरियाणा की मांग की थी। सन 1926 में अखिल भारतीय स्वतंत्रता समिति ने दिल्ली में अंबाला डिविजन को शामिल करके दिल्ली के सीमा विस्तार की सिफारिश की थी।

1926 में ही साइमन कमीशन के भारत आगमन पर अलग हरियाणा प्रांत की मांग का प्रस्ताव रखा गया। 1931 में जब महात्मा गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन जा रहे थे, तो उस समय पंडित नेकीराम शर्मा, देशबंधु गुप्ता व श्री राम शर्मा ने गांधी जी से प्रार्थना की थी कि हरियाणा क्षेत्र के जिलों को दिल्ली में मिलाया जाए, लेकिन गांधी जी ने उनकी मांग को गंभीरता से नहीं लिया। 1931 में दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में इन नेताओं ने अलग हरियाणा की मांग बड़ी जिम्मेदारी से उठाई थी। 1932 में पानीपत निवासी तेज अखबार के संपादक देशबंधु गुप्ता ने बड़ी दृढ़ता से हिंदी भाषा क्षेत्र को पंजाब से अलग करने की मांग उठाई। सन 1946 में लाहौर की असेंबली में प्रोफेसर शेर सिंह ने तत्कालीन पंजाब की सत्ता द्वारा वर्तमान हरियाणा की जनता से किया जा रहे सौतेले व्यवहार का मामला प्रभावी ढंग से उठाया। और अलग हरियाणा प्रांत की मांग की, परंतु 15 अगस्त 1947 के दिन भारत देश स्वतंत्र हो गया और पंजाब का भी बटवारा हो गया। दोनों घटनाओं का हरियाणा की राजनीति पर गहरा असर पड़ा। पूर्वी पंजाब के प्रांत में शामिल हुए इसमें इस क्षेत्र के गुरुग्राम, हिसार, रोहतक, करनाल और अंबाला जिले शामिल थे, शेष भारत की तरह यहां भी सांप्रदायिक दंगे हुए। तत्कालीन कांग्रेस अकाली सरकार के पुनर्स्थापना विभाग ने मंत्री ज्ञानी करतार सिंह ने जहां हिन्दुओं को रोहतक, गुरुग्राम, हिसार, करनाल तथा अंबाला जिलों में बसाया गया। सिखों को मुख्यतः करनाल और हिसार जिलों में बसाया गया, ताकि वर्तमान हरियाणा में एक सिख बहुल क्षेत्र स्थापित किया जा सके। जनसंख्या में हुए इस परिवर्तन ने हरियाणा की राजनीति में शहरी और ग्रामीण और जमीदार की बजाय स्थानीय और पंजाबी के मुद्दे को शहरी क्षेत्रों की राजनीति में महत्वपूर्ण बना दिया।

सत्या एम राय ने अपनी पुस्तक पार्टिशन आफ पंजाब में इसे ही हरियाणा प्रांत की मांग की उत्पत्ति का कारण माना है स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के द्वारा सार्वजनिक व्यस्क मताधिकार प्रदान करने के प्रावधान से हरियाणा की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति व अन्य जातियों के साधन विहीन लोगों को मताधिकार मिलने, उच्च जातियों और भूपतियों से नई चुनौतियां मिलने लगी, यूनियनिस्ट पार्टी के समाप्त चौधरी छोटूराम द्वारा स्थापित जातियों का गठबंधन भी समाप्त हो गया। सच्चर फार्मूले के माध्यम से पंजाब में गुरुमुखी को अनिवार्य कर दिया गया जिससे पंजाब की हिंदी वासी जनता पर गहरा असर पहुंचा और एक षड्यंत्र के तहत 1951 की जनगणना में पंजाब में भाषा का कॉलम ही हटा दिया गया। प्रोफेसर शेर सिंह की सलाह मान करके इंदिरा गांधी ने भारत सरकार के भूतपूर्व स्पीकर सरदार हुकम सिंह की अध्यक्षता में एक पार्लियामेंट्री कमिटी आफ पंजाबी सूबे का गठन किया इस कमेटी के गठन के बाद हरियाणा के नेताओं को यह भय सताने लगा कि कहीं पूरे पंजाब को और हिमाचल को मिलाकर के पंजाबी भाषी राज्य न बना दिया जाए। इस कारण प्रोफेसर शेर सिंह ने महापंजाब का विरोध कर दिया, जबकि पंडित भगवत दयाल शर्मा ने महा पंजाब का समर्थन किया।

संसदीय समिति के सदस्य कुमार शांता ने दिल्ली के केंद्र शासित क्षेत्र को हरियाणा में लाने के लिए एक मतभेद का नोट दिया। एक अन्य सदस्य चौधरी बंसीलाल ने दिल्ली को हरियाणा में मिलाने का विरोध किया। इस प्रकार हुकम सिंह समिति की सिफारिश पर 9 मार्च 1966 को लोकसभा में पंजाब और हरियाणा के क्षेत्र निर्धारित करने के लिए और हिमाचल के इलाकों की पहचान के सुझाव के लिए एक न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्य आयोग बनाया गया जिसे शाह आयोग कहा गया। आयोग ने सुझाव दिया कि पंजाब के शिमला, कांगड़ा और लाहौल स्पीति जिले तथा पठानकोट तहसील के डलहौजी क्षेत्र और होशियारपुर की उना तहसील को हिमाचल में शामिल कर दिया जाए। रोपड़ तहसील को छोड़कर पंजाब मंडल को हरियाणा राज्य में मिलाकर हरियाणा प्रांत बना दिया जाए। संगरूर जिले की जींद और नरवाना तहसील को भी हरियाणा में शामिल कर दिया जाए। आयोग के एक सदस्य ने मतभेद का नोट देते हो कहा की अंबाला के खरड़ तहसील जिसमें चंडीगढ़ शामिल था पंजाब को दे दिया जाए जिसका प्रोफेसर शेरसिंह ने पुरजोर विरोध किया क्योंकि चंडीगढ़ को छोड़कर बाकी तहसील पंजाबी भाषी है चंडीगढ़ की जनसंख्या बाहर से आए लोगों की है।

भारत सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 के अनुसार आयोग की सिफरश मान ली चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी बना दिया गया, जिसका परिणाम यह निकला कि आज तक हरियाणा और पंजाब के बीच में चंडीगढ़ हिंदी भाषी क्षेत्र और रवि ब्यास के पानी पर समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं यह सभी मुद्दे राजनीति का शिकार हो गए हैं। यदि हम हरियाणा के इन मुद्दों को गौर से देखें तो इन मुद्दों के सहारे बहुत से राजनेता और राजनीतिक पार्टियों ने हरियाणा और पंजाब में सत्ता का स्वाद चखा है। यदि अब हम देखें तो सीएम मनोहर लाल ने एसवाईएल के मुद्दे को ईमानदारी से उठाया है। उन्होंने पहले एसवाईएल चैनल को पूरा करने की बात की है और बाद में रावि ब्यास के पानी के निर्धारण कि ताकि यह मुद्दा सुलझ करके हरियाणा को उसके हक का पानी मिल जाए। हरियाणा के निर्माण की जो कहानी है वह बहुत ही गौरवमयी और भावी पीढ़ी को शिक्षा देने वाली है।

(लेखक- डॉ दयानन्द कादयान मीडिया स्तंभकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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