हरियाणा दिवस : कभी मध्यप्रदेश का हिस्सा होता था हरियाणा, जानिये कैसे हुआ था नामकरण

Haryana Day : हरियाणा प्रदेश आज अपने गठन की 55वीं वर्षगांठ मना रहा है। इन सालों में (Haryana Diwas) हरियाणा ने राष्ट्रीय पटल पर विकास व समृद्धि का एक अनूठा इतिहास रचा है। भारत की राजधानी की दहलीज पर अरावली और शिवालिक की पहाडि़यों के बीच विद्यमान हरियाणा अपेक्षाकृत भारत का नया राज्य है क्योंकि इसका निर्माण 1 नवम्बर 1966 के दिन ही हुआ था। किंतु इसका इतिहास बहुत पुराना है। आचार्य भगवान देव के अध्यक्ष वैदिक काल में हरियाणा पोपो के गणतंत्र की स्थली था। प्रसिद्ध भूगोल शास्त्री मूनीष रजा ने लिखा है कि पौराणिक काल में यह क्षेत्र मध्यप्रदेश का भाग था। महाभारत काल में यह कोर्को के अधिक था। कुरुक्षेत्र का यह युद्ध यहीं हुआ और भगवान कृष्ण ने गीता का ज्ञान भी यहीं दिया। प्राचीन भारत में राजा हषवर्धन के समय इसका नगर थानेसर भारत की राजधानी था। राजपूतों के शासन के दिनों में हरियाणा दिल्ली के चौहान राजपूतों के शाषण का भाग था। किंतु तरावड़ी की लड़ाई में मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज की हार के बार हरियाणा अफगान शासन का हिस्सा बन गया। परन्तु पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथाें इब्राहिम लोधी के बाद हरियाणा मुगलों के अधीन हो गया था। परन्तु पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू की बैरम खान के हाथों द्वार के बाद अकबर के समय में इस पर फिर से मुगलों का अधिकार हो गया था।
मुगल काल में हरियाणा को दिल्ली सूबे का भाग बनाया गया था। मुगल शासक औरगंजेब के शासन काल में हरियाणा के सतनामियों और जाटों ने उसकी कट्टरपंथी नीतियों के विरुद्ध विद्रोह भी किया था जिसे दबा दिया गया था। मुगलों के कमजोर हो जाने के बाद मराठाें ने यहां अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था लेकिन यहां का प्रशासन विभिन्न सिख राजाओं और मुिस्लम नवाबों के द्वारा चलाया जाता था जो कि मराठों का अधिपत्य स्वीकार करते थे किंतु 1803 में उनको ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा पराजित कर दिए जाने के बाद सिरजी अन्जन गांव समझौते के द्वारा यहां कंपनी का अधिप्रय स्थापित हो गया था। गौरतलब है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमदशाह अब्दाली के द्वारा हटाए जाने के बाद वे कमजोर हो गए थे। कंपनी ने हरियाणा क्षेत्र को बंगाल प्रेजीडेंसी का भाग बना दिया। लेकिन यहां का प्रशासन चलाने के लिए देहली रेजीडेंसी स्थापित कर दी थी। लेकिन 1833 में हरियाणा क्षेत्र का बगाज प्रजीडेंसी से नकाल कर उत्तर पश्चिमी प्रांत के नए श्राज्ञक भाग बना दिया गया था जिसकी राजधानी आगरा थी। 1857 के विद्रोह के बाद हरियाणा क्षेत्र को इस प्रांत से निकाल कर पंजाब में शामिल कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो़ के़ सी़ यादव के अनुसार ऐसा यहां की जनता को विद्रोह में भाग लेने के तथाकथित अपराध के लिए दंडित करने के लिए किया गया। आगे चलकर 1956 में राज्य पूर्णतया आयोग का सिफारिश पर पेपस का विजय पंजाब में कर दिया गया और हरियाणा का पूरा क्षेत्र एक प्रशासनिक इकारे का भाग बनाया और उसे हिस्ट्री रिजन बनाया गया। 1 नवंबर 1966 को हरियाणा एक अलग राज्य बना।
कैसे हुआ नामकरण
हरियाणा का नाम लेते ही एक ऐसे राज्य की छवि मानस पटल पर अंकित हो जाती है, जो प्राचीनता, पावनता, वीरता एवं प्रगतिशीलता का अनोखा संगम है। दिल्ली के निकट सारवान जिले से मिले विक्रमी संवत 1385 के शिलालेख पर बड़े सुनहरी अक्षरों में खुदा हुआ है:-देशोऽस्ति हरणाख्य:। पृथ्व्यिां स्वर्गसन्निभ:।। (अर्थात, हरियाणा नामक एक देश (प्रदेश) है, जो इस धरती पर स्वर्ग के समान है।) हरियाणा का नामकरण कैसे हुआ, इस विषय पर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि हरियाणा की भूमि सदैव से बेहद पावन व पवित्र रही है, और इस भूमि को 'हरि' की भूमि का श्रेय मिला। इसीलिए यह 'हरि' का प्रदेश 'हरियाणा' नाम से अलंकृत हुआ। यह प्रदेश 'हरि' का इसीलिए कहलाया, क्योंकि श्रीहरि ने यहां पर अवतार लिया और इसे अपनी क्रीड़ा-स्थली बनाया। 'हरि' की क्रीड़ा-स्थली यानि 'हरि का अरण्य' से ही इस प्रदेश का 'हरियाणा' नाम पड़ा। कुछ विद्वानों के मतानुसार अहीरों (अभीरों) का प्रदेश होने के कारण कालान्तर में यह प्रदेश 'अभिरायण' से 'हरियाणा' के नाम से जाना जाने लगा, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि यहां पर हरा-भरा वन होता था। हरा-भरा क्षेत्र यानि 'हरित अरण्य' से इस प्रदेश का नाम 'हरियाणा' पड़ा।
'इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया' के मुताबिक भी 'हरियाणा' प्रदेश होने के कारण यह प्रदेश 'हरियाणा' कहलाया। महाभारत महाकाव्य में इस प्रदेश को 'बहुधान्यक' व 'बहुधन' आदि नामों से वर्णित किया गया है, जबकि मध्ययुगीन प्राप्त लेखों में इस प्रदेश को 'हरितानक' तथा 'हरियानक' आदि नामों से वर्णित किया गया है। प्रसिद्ध इतिहासकार राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार, ''हरियाणा' नाम हरिधानक, हरियानक, हरिआनक, हरिआना, हरियान व हरियाना आदि प्रक्रिया से गुजरकर बना है। डॉ. हरिराम गुप्ता का इस सन्दर्भ में तर्क है कि, 'जिस प्रकार राजपूतों के निवास स्थान को राजपूताना, भाटियों की भूमि को भटियाना और लोधियों की भूमि को लुधियाना का नाम दिया गया, इसी तर्ज पर आर्यों की भूमि को 'आर्याण' नाम दिया गया। यह नाम 'हरियाणा' से बदलता हुआ 'हरियाणा' बना।' आर्यों से संबंधित होने के कारण इस प्रदेश का नाम 'आर्याणक' का अपभ्रंश है। इस तथ्य से प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. दास, डॉ. नानक चन्द्र शर्मा, डॉ. आर.के.मुखर्जी, डॉ. हरीराम गुप्ता आदि विद्धान पूर्णत: सहमत हैं। सबसे पुराने वेद ऋग्वेद में 'हरियाणा' का इस प्रकार उल्लेख मिलता है:- ऋजूयुक्षण्यायने रजत हरयाणे। रथं युक्तमसनाम सुषामणि।।
कुल मिलाकर 'हरियाणा' प्रदेश के नामकरण के सन्दर्भ में विद्वानों ने तरह-तरह के कयास लगाए हैं और अपने-अपने तर्क दिए हैं। लेकिन सामान्यत: हरा-भरा क्षेत्र होने के कारण यह प्रदेश 'हरियाला' कहलाया और कालान्त में यह 'हरियाणा' के नाम से जाना जाने लगा, यह तर्क सर्वाधिक स्पष्ट व सशक्त प्रतीत होता है। आदिकाल वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर मानव की उत्पत्ति लगभग 57 करोड़ वर्ष पूर्व हुई थी। लेकिन हरियाणा प्रदेश में लगभग 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व मानव जीवन के साक्ष्य मिले हैं। पिंजौर के आसपास से प्राप्त एक खोपड़ी के गहन अध्ययन के बाद प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. गाई पिलग्रिम ने निष्कर्ष निकाला कि यहां पर लगभग 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व आदि मानव का आवास था। इतिहासकार यहीं से हरियाणा प्रदेश के आदिकाल की शुरूआत मानते हैं। पुरातात्विक शोधों के बाद हरियाणा प्रदेश में पुरा-पाषाण युग के मानव उन्नति का पता चलता है। इस युग के पत्थर-औजार हरियाणा के अरावली (गुरुग्राम-फरीदाबाद) क्षेत्र के अनंगपुर पहाड़ी, मेवला पहाड़ी, अंकिर पहाड़ी, भाँखड़ी, नोदा कोह, गोठड़ा, पहाड़ी गाँव, धौज, पाली, छत्तरपुर, खेरली, निर्मार, खोरली जमालपुर, सिरोही, हरचन्दपुर, बंधवा घाटी, नीमड़ीवाली पहाड़ी, नांगरी की ढ़ाणी, भूतला, धूलावत, गुडग़ाँव बाईपास, मानेसर, सरसोला, पंचगाँवा, कोटा पहाड़ी, सोहना का गढ़ और शिवालिक क्षेत्र के सूरजपुर, डेरा खरोना, धामला, मंशा देवी, अहिया, पिंजौर, सुकेत्री, कोटला, पपलाना आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं। नवपाषाण युग के बाद यहां पर एक नई आद्यैतिहासिक संस्कृति विकसित हुई, जिसके अवशेष सीसवाल (हिसार) से 1968 में प्राप्त हुए। वैदिक सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता के भी अवशेष मिल चुके हैं।
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