हरियाणा की राजनीति : आदमपुर उपचुनाव, नोट, मुकुट और माला का चलन

धर्मेंद्र कंवारी. रोहतक
हरियाणा की राजनीति में नोट, मुकुट, माला का गहरा नाता है। चौधरी देवीलाल ने इसकी शुरुआत की थी, वो कहते थे कि वोट ही नहीं नोट भी दो, अगर आप मदद नहीं करोगो तो पैसे वाले ही चुनाव जीतेंगे। चौधरी देवीलाल का ये मानना था कि अगर किसी ने एक चवन्नी भी दी तो वो वोट भी देगा। उनका राजनीति में ये फार्मूला हमेशा कामयाब भी रहा। उन्होंने तो नारा भी दिया था कि एक वोट और एक नोट दो।
इसके बाद चौधरी बंसीलाल की सरकार तोडकर ओमप्रकाश चौटाला जी ने सरकार बनाई और उनका शासनकाल आया। तब वोट और नोट की परंपरा को वो ऊंचाइयां मिली कि कार्यकर्ता उनको नोटों की माला से लाद दिया करते थे। चांदी के मुकुट, चांदी की गदा तक ओमप्रकाश चौटाला जी, उनके बेटे अजय चौटाला ओर अभय चौटाला ने खूब ली। इसके बारे में खूब कहानियां भी बनीं की चौटाला साहब तो गाडी में बैठते ही खुद नोटों की माला खोलने और नोट गिनकर उनके बंडल बनाया करते थे।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जनता के बीच इसी को मुद्दा बनाया। चौटाला साहब को खूब बदनाम किया गया और अंतत उनके हाथ से सत्ता छीनकर खुद सत्ता में बैठ गए। दस साल तक कोई नोट और माला दिखाई नहीं दिए। भ्रष्टाचार ना कभी पहले रूका था और ना वो रोक पाए उनकी सरकार को तो प्रोपर्टी डीलर की सरकार कहा जी जाता था लेकिन ये सत्य है कि चुनाव में नोट करीबन सारे राजनेता अपने खास समर्थकों से लेते ही हैं।
हुड्डा जी की सरकार गई तो मनोहर लाल जी की सरकार आई। पहले और दूसरे कार्यकाल में ना केवल खट्टर साहब बल्कि उनके मंत्रियों ने भी नोटों, मालाओं से सार्वजनिक दूरी बनाई रखी। मनोहर जी को एक बार मुकुट पहनाने पर नाराज तक हो गए थे, जो सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हुआ था।
चौधरी भजनलाल जनता के महबूब नेता थे। उन्होंने जनता से कभी भी सीधे उगाही नहीं की। उनके चुनाव लडने के अलग तरीके थे और बडे बडे फायनेंसर उनकी जेब में रहा करते थे। कुलदीप बिश्नोई की राजनीति अलग तरह की रही। ये देखने में आया कि उन्होंने घर फूंका और तमाशा देखा लेकिन जनता से सीधे वोट के साथ नोट की उगाही से बचते रहे। अब बदलाव देखिए तीसरी पीढी मैदान में है। पहली बार चौधरी भजनलाल के पौते भव्य बिश्नोई सार्वजनिक रूप से जनता से चंदा स्वीकार कर रहे हैं। नोटों की मालाएं चलन में आ गई है। भाजपा इसको किस रूप में लेगी पता नहीं लेकिन मेरा राजनीति को लेकर एक तुजुर्बा है और दर्जनभर बुजुर्ग राजनेताओं ने इसको सर्टिफाई भी किया है कि अगर चुनाव में लोग नोट दे रहे हैं तो वोट भी देंगे। अगर चुनाव में घर से खर्चा हो रहा है तो वो चुनाव आप हारोगे ही हारोगे।
चुनाव में नोटों की माला स्वीकार की जा सकती है या नहीं। अगर की जा सकती है तो उसके खर्च के क्या नियम हैं ये तो चुनाव आयोग का मसला है। आदमपुर उपचुनाव की वोटिंग के नतीजे छह नवंबर को आ जाएंगे। तब इस बात को भी परखा जाएगा कि ये सही है या गलत लेकिन ये बिल्कुल सही है हरियाणा की राजनीति में वोट के साथ नोट का एक अलग तरह से नाता रहा है और ये हमेशा अपना रंग दिखाता रहेगा।
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