हरियाणा की राजनीति : जाट होकर भी पंडित कहलाया एक राजनेता, जानिए इनके बारे में

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक
भूले बिसरे नेताओं की कहानी में आज बात करेंगे प्रसन्नी देवी पर और उसके साथ ही जानेंगे पंडित समर सिंह मलिक की कहानी। पंडित और मलिक ये कैसे संभव हुआ इसकी भी एक गजब कहानी है। प्रसन्नी देवी का नाम पुराने लोगों ने जरूर सुना होगा लेकिन आज की पीढी प्रसन्नी देवी से ज्यादा परिचित नहीं हैं। वैसे भी महिला होकर राजनीति में मुकाम हासिल करना आसान नहीं होता लेकिन प्रसन्नी देवी हरियाणा की वो विधायक रहीं जो अलग-अलग तीन हलकों से छह बार विधायक बनीं और उस दौर में राजनीति में उतरीं जब बहुत कम महिलाएं ही इसकी हिम्मत कर पाती थीं। वो हरियाणा में मंत्री भी रहीं, उनका गांव पानीपत में सींक था और इस गांव का भी गजब का ही इतिहास है।
10 अगस्त 1931 को सींक गांव में जन्मीं प्रसन्नी देवी ने अपने जीवन का पहला चुनाव 1957 में लड़ा था लेकिन 255 वोटों से हार गई थी लेकिन साल 1962 के पंजाब चुनाव में प्रसन्नी देवी कांग्रेस के टिकट पर राजौंद सीट से संयुक्त पंजाब विधानसभा की सदस्य चुनीं गईं। हरियाणा गठन के बाद 1967 के पहले चुनाव में प्रसन्नी देवी फिर से कांग्रेस की टिकट पर इंद्री से चुनाव लड़ीं और विधायक चुनीं गई लेकिन मगर यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चली और टूट गई। वर्ष 1968 में मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर प्रसन्नी देवी कांग्रेस के टिकट पर इंद्री से चुनाव लड़ते हुए चुनी गईं। वर्ष 1972 के चुनाव में भी प्रसन्नी देवी इंद्री से विधायक चुनी गईं और बाद में चौधरी बंसीलाल की सरकार में राज्य शिक्षा व यातायात मंत्री भी बनीं। 1982 के चुनाव में प्रसन्नी देवी इंद्री हलका छोड़कर नौल्था में आ गईं और कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने जाने के बाद उन्हें भजनलाल ने अपने मंत्रिमंडल में बतौर स्वास्थ्य मंत्री शामिल कर लिया। करीब 23 साल के अंतराल के बाद नौल्था सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर प्रसन्नी देवी ने विधानसभा में प्रवेश किया।
इस तरह तीन अलग-अलग सीटों से छठी बार विधायक चुने जाने का अनूठा रिकॉर्ड प्रसन्नी देवी के खाते में दर्ज हो गया। उनका मुख्य काम महिलाओं पर ही रहा। महिलाओं और प्रोढों की शिक्षा के लिए केंद्र खुलवाने में उन्होंने बहुत रुचि ली थी। कन्या गुरुकुल खानपुर और भैंसवाल कला से भी वो लंबे समय तक जुडीं रहीं। उनको बागवानी का बहुत शौक था। ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं पर वो समाचार पत्रों में लेख लिखा करती थीं। वे जीवन के अंतिम समय में रोहतक में रहीं। 85 साल की उम्र में उनका निधन 15 जनवरी 2015 को हुआ। उनका अंतिम संस्कार उनकी ससुराल खानपुर कौलियां में किया गया था।
पंडित और मलिक की कहानी
अब बात करते हैं सींक गांव पर और पंडित और मलिक की कहानी पर। सिरसा का चौटाला गांव, नारनौंद का खांडा खेड़ी गांव और पानीपत का सींक गांव ऐसा है जिसका राजनीति में बहुत ज्यादा दबदबा रहा है। यहां से कई लोग चुनाव जीते हैं और बड़े बड़े पदों पर रहे हैं। देश की आजादी के बाद सबसे पहले 1947 के चुनाव में कांग्रेस ने पूर्वी पंजाब की पानीपत सीट से सींक निवासी और स्वतंत्रता सेनानी दत्ता राम को टिकट देने की संस्तुति की लेकिन उन्होंने खुद को अनपढ़ होने की बात कहकर टिकट काशी से उच्च शिक्षा लेकर लौटे गांव के समर सिंह मलिक को दिला दिया।
जाति से जाट होने के बावजूद काशी से शिक्षित होने के कारण वे क्षेत्र में पंडित समर सिंह के नाम से प्रसिद्ध थे। चुनाव में पंडित समर सिंह को जनता ने जोरदार समर्थन किया और उन्होंने इस सीट से शानदार जीत हासिल की। पंडित समर सिंह मलिक बहुत ईमानदार राजनेता थे और जब तक जीए शिक्षा के प्रचार प्रसार में खुद को सक्रिय रखा। उन्होंने 1947 से 1952 तक पानीपत सीट का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 1952 के पहले आम चुनाव में भी पंडित समर सिंह मलिक कांग्रेस के टिकट पर करनाल जिले की घरौंडा सीट पर संयुक्त पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए थे।
1957 के चुनाव सींक गांव के इंद्र सिंह मलिक हलका जींद, जिला संगरूर वर्तमान में पंजाब तथा कृष्ण शास्त्री हलका सफीदों से विधायक चुने गए। उस समय हरियाणा के किसी गांव से दो लोगों द्वारा एक साथ विधानसभा में प्रवेश करने का यह पहला अवसर था। इसके बाद काफी समय तक प्रसन्नी देवी जी छाई रही। वर्ष 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की लहर के चलते कांग्रेस मुकाबले से बाहर हो गई। इस चुनाव में जनता पार्टी की टिकट पर सींक निवासी चौधरी सतबीर सिंह मलिक नौल्था से विधायक चुने गए और देवीलाल के मंत्रिमंडल में वित्त, कराधान एवं आबकारी तथा श्रम व रोजगार मंत्री बने थे।
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