क्या कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को साइडलाइन करने की शुरुआत हो चुकी है?

धर्मेंद्र कंवारी. रोहतक
कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए चिट्ठी कांड के बाद कांग्रेस आलाकमान में अहम बदलाव दिखाई देना शुरू हो गया है। शुक्रवार को कांग्रेस संगठन के लिए जारी नई सूची में कई दिग्गज क्षत्रपों को हाशिए पर धकेले जाने की प्रक्रिया नई सूची में दिखाई साफ दिखाई दे रही है। हरियाणा से एकमात्र रणदीप सिंह सुरजेवाला ही कांग्रेस आलाकमान पर मजबूत पकड के साथ उन छह नेताओं में शामिल हो चुके हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देंगे। जारी नई सूची में सबसे बडे संकेत पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लेकर दिखाई दे रहे हैं? उन्हें सूची में कहीं भी जगह नहीं मिली है। ऐसा कई साल में पहली बार हुआ है कि केंद्र की कांग्रेस की सूची में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम ढूंढने से भी नहीं मिल रहा हैं। उनके परिवार से केवल राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा को एक छोटी सी जगह मिली है और वो भी कांग्रेस की ऑल इंडिया कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में। इसी तरह चौधरी भजनलाल परिवार की राजनीतिक विरासत के चिराग कुलदीप बिश्नोई को भी केवल दीपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ ही विशेष आमंत्री सदस्य के रूप में ही जगह मिली है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ ही पूरी सूची में किरण चौधरी और कुमारी सैलजा भी दिखाई नहीं दी हैं और ये भी अपने आप में एक अलग ही संकेत हैं और हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस की करवटों को बयां कर रहे हैं। सूची में हरियाणा का प्रभार विवेक बंसल को सौंपा गया है। गुलाब नबी आजाद भी करीब करीब किनारे किए जा चुके हैं जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कहे पर चलने के लिए प्रसिद्ध थे। अशोक तंवर को भी गुलाब नबी आजाद ने बडी ही चतुराई के साथ निपटाकर हुड्डा की राह का रोडा हटाया था। इसलिए अब नई सूची पर तरह तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
आखिर चल क्या रहा है कांग्रेस में?
कांग्रेस की नई सूची में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा समेत कुछ दो दर्जन बडे नेताओं को साफ तौर पर साइड लाइन होते देखा जा सकता है, ये वो नेता हैं जो कभी कांग्रेस में छाए रहते थे। ये अहम बदलाव नई कांग्रेस का भी संकेत है। केंद्र में कांग्रेस का चेहरा बन चुके रणदीप सुरजेवाला की पकड गांधी परिवार और कांग्रेस पर साफ दिखाई दे रही है। नई सूची पर अगर गौर किया जाए तो रणदीप सुरजेवाला को कर्नाटक का प्रभारी बनाने के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष को मशविरा देने के लिए बनाई छह लोगों की कमेटी में शामिल किया गया है। उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सदस्य के रूप में यथावत रखा गया है। कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में उनके काम के अलावा राजस्थान में कांग्रेस सरकार को संकट से निकालने में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। राष्ट्रीय मुद्दों के साथ साथ वो दिनभर में हरियाणा के मुद्दों को भी हमेशा उठाते हैं, जो साफ दिखाता है कि भले ही वो केंद्र में कांग्रेस का चेहरा हों लेकिन उनके नजरें हरियाणा पर ही टिकी हैं। अब ऐसे में कभी हरियाणा में अगर कांग्रेस के अच्छे दिन आते हैं तो रणदीप सिंह सुरजेवाला ठीक वैसा ही उल्टफेर ना कर दें जो 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चौधरी भजनलाल के साथ किया था। हालांकि ये राजनीति है, अभी चुनाव भी दूर हैं इसलिए उठापटक जारी रहेगी लेकिन कांग्रेस का ये ट्रेक रिकॉर्ड रहा है जो एक बार बढत हासिल कर लेता है वह जल्दी पिछडता नहीं है और जो एक बार हाशिए पर डाल दिया जाता है वो कम ही उभरता है।
क्या दबाव वाली संस्कृति से बाहर निकल रही है कांग्रेस?
कांग्रेस में पिछले कई सालों से एक रिकॉर्ड रहा है कि दर्जनभर नेता ही मनमाने फैसले करवाते आए हैं। एक तरफ जहां राज्यों में उन्होंने अपने अलावा दूसरा नेतृत्व नहीं उभरने दिया वहीं केंद्र में भी एक दूसरे की मदद करते हुए कांग्रेस को अपने काबू में रखा है। कांग्रेस की अब इस नई सूची में ऐसे नेता दिखाई नहीं दे रहे हैं और इस बात पर अब चर्चा शुरू हो गई कि कांग्रेस धीरे धीरे करके अब दबाव वाली संस्कृति से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। हालांकि हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा अभी तक कांग्रेस से मनमाफिक फैसले करवाने में सफल रहे हैं लेकिन अब हालात उनके लिए साफ तौर पर विकट दिखाई दे रहे हैं। हरियाणा की राजनीति में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वो दोबारा से खुद को रिवाइव कर पाएंगे या नहीं।
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