यहां किसानों ने कृषि कानूनों की होली नहीं जलाई ,परम्पराएं आड़े आईं, सैकड़ों साल बाद भी तीन बंधनों में बंधे हैं लोग

अमरजीत एस गिल . रोहतक
संयुक्त किसान मोर्च के आह्वान पर रविवार को आंदोलकारी किसानों ने होली पर विरोध स्वरूप तीन नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई। लेकिन रोहतक के मुख्य धरना स्थल मकड़ौली कलां टोल प्लाजा पर कानूनों की प्रतियां नहीं जलाई जा सकी। वजह यह रही कि गांव मकड़ौली कलां में सैकड़ों साल से होलिका दहन नहीं किया जाता है। संकट में घिरे आंदोलकारी किसानों ने अपनी परम्परा को आज भी नहीं तोड़ा। इनका कहना है कि जो परम्पराएं बुजुर्ग हमारे लिए छोड़कर गए हैं, उनका निर्वहन हर हाल में किया जाएगा।
बेशक कृषि कानूनों की प्रतियां किसानों ने मजबूरी में न जलाई हों। लेकिन किसानों ने बीते चार महीने की तरह ही शुक्रवार को भी अपना विरोध जारी रखा और ऐलान किया कि जब तक तीनों काले कानून निरस्त नहीं होंगे, तब तक मकड़ौली टोल प्लाजा से धरना खत्म नहीं होगा। किसानों को हौंसला बढ़ाने के लिए दोपहर डेढ़ बजे इनेलो सुप्रीमो अभय चौटाला टोल पर पहुंचे। वे यहां एक-सवा घंटे तक किसानों के बीच रहे और कहा कि आंदोलन में उनकी पार्टी से जो बनेगा, वह किया जाएगा। चौटाला ने यह भी बताया कि कृषि कानूनाें के विरोध स्वरूप उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। जबकि 89 में से किसी और विधायक ने ऐसा नहीं किया।
यह है पहली परम्परा
2011 की जनसंख्या के मुताबिक गांव मकड़ौली कलां में 6157 लोग रहते हैं। इनमें 704 अनुसूचित जाति और 978 पिछड़े वर्ग से संबंध रखते हैं। गांव का भाईचारा जहां मिशाल बनाए हुए हैं, वहीं सैकड़ों साल से लोग तीन परम्पराओं का निभाते आ रहे हैं। पहली परम्परा यह है कि गांव में कभी भी होली का दहन नहीं किया जाता। दूसरी में जब किसान खेत जोतकर घर आते हैं तो वह बैलों के कंधों पर हल नहीं रखते। अमूमन जब हल जोतकर थका हारा किसान घर लौटता है तो वह बैलों के कंधाें पर ही हल को बांध देता है। लेकिन मकड़ौली कलां के किसान ऐसे नहीं करते। किसानों का कहना है कि जब दिनभर खेत में बैलों के कंधों पर ही जुआ रहता है तो घर वापसी पर ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि काम करते अगर किसानथकता है तो स्वभाविक है कि उसके बैल भी थकते हैं। ऐसे में बैलों पर हल या जुआ नहीं रखने की परम्परा किसानों द्वारा निभाई जा हरी है।
दूसरी परम्परा को भी जाने
जितने साल से बैलों के कंधों पर खेत वापसी पर किसान जुआ नहीं रखते । शायद इतने ही वर्ष से महिलाएं भी सिर पर दोघड़ रखकर पानी नहीं लाती। यानि के एक बर्तन के उपर दूसरा बर्तन रखना। और इन दोनों बर्तनों को अपने सिर रखना ही हरियाणवी समाज में दोघड़ कहा जाता है। गांव में बीती सदियों में पीने का पानी कितना भी संकट क्यों न हुआ। लेकिन महिलाएं सिर पर एक टाेकनी या एक मटका सिर पर रखकर ही पानी लाती रही। शीला देवी जिनकी उम्र 50 से अधिक हो चुकी हैं, बताती है कि सिर पर दोघड़ रखकर लाना हमारे गांव के लिए अशुभ माना जाता है। मेरी सांस ने कहा था कि कभी भी अपने सिर पर दोघड़ रखकर पानी नहीं लाएगी।
इस कारण नहीं जलाए गए कृषि कानून
जिस वजह से शुक्रवार को कृषि कानूनों की प्रतियां मकड़ौली टोल प्लाजा पर नहीं जलाई जा सकी। वह यह है कि मकड़ौली कलां में हाेलिका दहन को भी अशुभ ही माना जाता है। यह परम्परा कब से चली आ रही है, इसकी सही जानकारी तो नहीं मिली है। लेकिन मकड़ौली टोल प्लाजा पर बीते चार महीने से आंदोलन के अगुवाई कर रहे है किसान राजू बताते हैं कि हमारे दादा-परदादा बताते थे कि गांव में होली का दहन गांव आबाद होने के बाद कुछ समय बाद ही बंद हो गया था। बताया जा रहा है कि सैकड़ों साल से होली के दिन गांव में कोई बड़ी अनहोनी घटना घटी थी। जिसकी वजह से हाेलिका का दहन नहीं किया जाता।
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