नाबालिग बच्चों को छोड़ देने वालों पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी - ऐसे जैविक माता-पिता बच्चे की कस्टडी लेने के हकदार नहीं...

नाबालिग बच्चों को छोड़ देने वालों पर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी - ऐसे जैविक माता-पिता बच्चे की कस्टडी लेने के हकदार नहीं...
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जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने नाबालिग बच्चे की जैविक मां द्वारा कस्टडी देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।

एक नाबालिग बच्चे को उसकी जैविक (जन्म देने वाली) मां को अंतरिम कस्टडी में देने से इन्कार करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने कहा है कि अगर जैविक माता-पिता अपने नाबालिग बच्चे को छोड़ देते हैं और बच्चे को प्यार से वंचित करते हैं, तो ऐसे जैविक माता-पिता बच्चे की कस्टडी लेने के हकदार नहीं हैं। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने नाबालिग बच्चे की जैविक मां द्वारा कस्टडी देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग बच्चे को उसके जैविक माता-पिता द्वारा त्याग दिये जाने के बाद बच्चे को जिस दंपति ने अपनाया, उनके पास यह बच्चा खुश है और उनके साथ रहने की इच्छा व्यक्त कर रहा है।

इस मामले में नेपाली मूल की सिरसा निवासी जैविक मां ने कथित तौर पर अपने पहले कालांवाली जिला सिरसा निवासी पति से तलाक के बाद दूसरी शादी करने के बाद बच्चे को लिखित समझौते के माध्यम से अपने गुरुदेव अनुपम मुनि के आश्रम में छोड़ दिया। आश्रम से गुरु के एक शिष्य सिरसा निवासी दंपति ने उसे अपना लिया। बाद में मां ने बच्चे की कस्टडी की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। हाई कोर्ट ने पुलिस को याचिकाकर्ता के बेटे को कोर्ट में पेश करने निर्देश दिया था।

बच्चे ने कोर्ट को बताया कि वह उनके साथ रहना चाहता है जो उसे मुनि के पास से लेकर आए थे। जिन्हें वह अपने माता-पिता कहता हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की इच्छा और उसका कल्याण सर्वोपरि है। कोर्ट ने सिरसा बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि बच्चे ने अपनी वर्तमान मां जो (आश्रम से लेकर आई थी ) और पिता के बारे में सभी संतोषजनक जवाब दिए हैं।

बच्चे से परवरिश, व्यवहार और शिक्षा के बारे में पूछा गया है। इस पर बच्चे ने उनके प्रति संतोष व्यक्त किया। बच्चा अपने माता-पिता के प्रति अपना पूरा स्नेह और प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था। बच्चा अपने बीते हुए समय को पूरी तरह से भूल चुका था। बच्चा अपने वर्तमान परिवार के साथ रहने को तैयार था। सभी तथ्यों को देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि जैविक मां यानी याचिकाकर्ता ने नाबालिग बच्चे को तब छोड़ दिया था जब उसकी दूसरी शादी हुई थी, ऐसे में वह कस्टडी की हकदार नहीं बन सकती।

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