नामी स्कूलों में राष्ट्रभाषा बोलने पर प्रतिबंध : कई शिक्षण संस्थानों की मनमानी, हिंदी बोलने पर लगाया जा रहा जुर्माना

रोहतक : हिंदी दिवस (Hindi Diwas) पर भले ही हिंदुस्तान को विश्व गुरु बनाने का सपना देखा जा रहा हो, लेकिन इस देश में राजभाषा का दर्जा प्राप्त हिंदी भाषा के साथ इसके अपने ही लोग परायों जैसा व्यवहार कर रहे हैं। देश की राजभाषा हिंदी अपने ही देश में सुरक्षित नहीं रह पा रही है। कई लोग इस राष्ट्रीय भाषा को बोलने तक में शर्म महसूस करते हैं। बदलते परिवेश में कई शिक्षण संस्थानों में तो मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा देने की बजाय विदेशी भाषा को अधिक अहमियत दी जा रही है। मौजूदा स्थिति तो यहां तक है कि कई नामी निजी स्कूलों में तो राष्ट्रभाषा हिंदी को बोलने की मनाहीं है। इतना ही नहीं हिंदी भाषा के बोले जाने पर बच्चों से जुर्माना तक वसूला जाता है जोकि हिंदी भाषा पर अत्याचार से कहीं बढ़कर है।
किसी भी देश की मातृभाषा उस देश की पहचान होती है, लेकिन भारत जैसे विश्व गुरु कहे जाने वाले अपने ही देश में सरेआम उसकी राष्ट्रभाषा को अपमान होता है। हिंदी को बोलने व पढ़ने पर असभ्य होने का प्रतीक समझा जाना लगा है। हमें न केवल हिंदी भाषा को बचाना होगा बल्कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना होगा। सरकारों को इस दिशा में कड़े कदम उठा राष्ट्रभाषा के अस्तत्वि की रक्षा करनी चाहिए। -संदीप नैन, प्राचार्य
देश के शिक्षण संस्थानों में हिंदी भाषा के बोले जाने पर प्रतिंबध लगाया जाना गलत है। सरकार को इसकी ओर ध्यान देना चाहिए और निजी स्कूलों में ऐसे गलत नियमों पर कभी का प्रतिबंध लगाना चाहिए। -अल्का मदान, अध्यापिका
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