Holika Dahan 2023 : रंगों का त्योहार होली 8 मार्च को, जानें - कब रहेगा होली का दहन करना शुभ

हरिभूमि न्यूज. कुरुक्षेत्र। हिंदुओं के प्रमुख त्यहारों में से एक है। हर साल फाल्लुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाने वाला यह त्योहार दो दिन का होता है। रंगों का यह त्योहार हिंदु केलेंडर के अनुसार इस साल 8 मार्च को मनाया जाएगा।
होली को डोल पूर्णिमा, रंगवाली, होली धुलेटी, मंजल कुली, याओसंग, उकुली, जजिरी, शिगमो, या फगवा के नाम से भी जाना जाता है। होलिका दहन 7 मार्च मंगलवार को शश और भद्रक योग में आ रहा है जिससे पूजा करके आप पूरे वर्ष रोगों से मुक्ति के साथ-साथ धन लाभ भी कमा सकते है। गायत्री ज्योतिष अनुसन्धान केंद्र कुरुक्षेत्र के संचालक रामराज कौशिक ने बताया कि रंगो का यह त्योहार भारत के आनंदमय उत्सवों में से एक है। यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग अपने मतभेदों को भुलाकर जीवन की खुशियों को मनाने एक साथ आते हैं।
होली की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में देखी जा सकती है। माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत होलिका, और प्रह्लाद की कथा से हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिससे वह आग से प्रतिरक्षित हो गई थी. उसने प्रह्लाद को मारने के लिए इस वरदान का यूज किया और जलती हुई आग में बैठ गई थी। हालांकि, आग ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और होलिका आग की लपटों में भस्म हो गई. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली के पहले दिन मनाया जाता है,जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है।
होलिका दहन का समय
गायत्री ज्योतिष अनुसन्धान केंद्र कुरुक्षेत्र के संचालक रामराज कौशिक ने बताया कि होलिका दहन जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन पूर्णिमा के दिन किया जाता है और अगले दिन लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे को रंग लगाकर होली खेलते हैं। इस साल होलिका दहन 7 मार्च को शाम 6:24 बजे से रात 8:51 के बीच होगा और 2 घंटे 27 मिनट तक रहेगा। इस समय कन्या लग्न और सिंह राशि होंगी। होलिका दहन भक्त प्रहलाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति का जश्न है. लोग होलिका की पूजा भी करते है। ऐसा माना जाता है कि यह सभी के घर में समृद्धि, और धन लाती है। यह पूजा लोगों को अपने डर से लड़ने की शक्ति भी देता है। दहन से पहले लकड़ी की चिता को मौली से तीन या सात बार लपेटकर मनाया जाता है। फिर उस पर पवित्र जल, कुमकुम और फूल छिड़क कर चिता की पूजा की जाती है, और फिर उसे जलाया जाता है।
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