कैसे सुधरे सरकारी सिस्टम : समय पर नहीं पहुंच रहे शिक्षक, अधिकारियों ने स्कूलों का किया औचक निरीक्षण तो खुली पोल

नारनौल। सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या कम होने के पीछे वहां का कंडम सरकारी सिस्टम है। जब तक शिक्षक को सरकारी नौकरी ना मिले, काम करने का तरीका अलग होता है। नौकरी मिलने के बाद मेहनती शिक्षक भी सरकारी सिस्टम में बदल जाता है। ऐसा भी नहीं कि सभी उस कैटेगरी में हो। कुछ चुनिंदा ऐसे शिक्षकों की वजह से सिस्टम बिगड़ रहा है।
सरकारी स्कूल में शिक्षक समय पर नहीं पहुंच रहे। स्कूल पहुंच जाते है तो कक्षा में जाने की बजाय समूह में बैठकर समय व्यतीत कर रहे है। उनका साथ विद्यालय मुखिया भी किसी न किसी लालच में दे रहे है। उपस्थिति नहीं होने पर उनका हाजिरी कॉलम खाली छोड़ दिया जाता है। उसे बाद में सुविधा अनुसार भरा जा रहा है। ऐसी अनेक वजह है जिससे सरकारी स्कूलों में मोटा वेतन मिलने के बाद भी शिक्षक या मुखिया व्यवस्था बिगाड़ रहे है। इस कारण बच्चों की संख्या भी सरकारी स्कूल में घट रही है और सरकार को मजबूरन दूसरे स्कूलों में मर्ज करना पड़ रहा है। इसी तरह की शिकायतें शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के पास पहुंचे रही थी। इसके बाद अधिकारियों ने अलग-अलग समय पर विद्यालयों का औचक निरीक्षण किया और पाई गई खामियों को लेकर उच्च अधिकारियों को अवगत करवाया है। उसके बाद विद्यालय मुखिया/इंचार्जों को बीईओ ने पत्र जारी किया है।
अधिकारियों ने औचक निरीक्षण में पाई यह खामियां
< शिक्षा विभाग की ओर से तय समय सारिणी के हिसाब से विद्यालय में कुछ कर्मचारी नहीं आ रहे है।
< विद्यालय आने के पश्चात भी कुछ शिक्षक कक्षाएं खाली छोड़कर प्रांगण में समूह बनाकर बैठे रहते है।
< विद्यालय डीडीओ कुछ शिक्षकों को विशेष रियायत देते हुए उनकी उपस्थिति का कॉलम खाली छोड़ रहे है। जिन पर संबंधित शिक्षकों द्वारा बाद में हस्ताक्षर कर दिए जाते है।
< कुछ विद्यालय मुखियाओं/इंचार्ज द्वारा निर्धारित समय से पहले ही विद्यार्थियों की छुट्टी कर दी जाती है।
< कुछ विद्यालय मुखिया बिना स्वीकृत करवाएं ई-मेल के माध्यम से आकस्मिक अवकाश की सूचना भेजते हैं तो कुछ विद्यालय मुखिया बिना उच्च अधिकारी की अनुमति से आकस्मिक अथवा अन्य अवकाश पर रहते है, जिसके कारण उनके विद्यालय से कई बार अति आवश्यक सूचनाएं समय पर प्राप्त नहीं होती है।
क्या कहते है बीईओ
नारनौल बीईओ सुभाषचंद सामरिया ने बताया कि इस तरह का आचरण का विद्यालय कर्मचारियों व मुखियाओं का उनकी ड्यूटी के प्रति कोताही को दर्शाता है। यह विद्यार्थियों के हित में भी नहीं है। यदि भविष्य में इस तरह का कोई भी मामला आता है तो संबंधित विद्यालय मुखिया तथा अध्यापक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उच्च अधिकारियों को मामला भेज दिया जाएगा। जिसके फलस्वरूप किसी भी विभागीय कार्यवाही के लिए वे स्वयं जिम्मेवार होंगे।
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