आयुर्वेद काॅलेज की टीम का कमाल : मानव बॉडी के अंग प्लास्टिक में बदलकर किए सरंक्षित, भावी डॉक्टरों को शोध करना होगा आसान

तरुण वधवा : कुरुक्षेत्र
श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से संबंधित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के शरीर रचना विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सचिन शर्मा व स्नातकोत्तर विद्यार्थियों द्वारा मानव शरीर के कुछ अंगों को प्लास्टिक में बदलकर सुरक्षित किया गया है। इनसे बीएएमएस के भावी डॉक्टर न केवल चीरफाड़ की बारीकियां समझ सकेंगे, बल्कि इन आर्गन को म्यूजियम और लैब में भी लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। डॉ. सचिन शर्मा और उनकी टीम द्वारा बकरी के फेफड़े, इंसानी कान की सूक्ष्म हड्डियां और दांत को प्लास्टीनेट किया गया है।
डॉ. सचिन शर्मा ने बताया कि कॉलेजों में मानव देह की कमी के कारण आयुर्वेद में स्नातकोत्तर करने वाले विद्यार्थियों को पर्याप्त मात्रा में बॉडी डिसेक्शन के लिए नहीं मिल रही, और एक बार डिसेक्शन होने के बाद शरीर के ऑर्गन डैमेज हो जाते हैं। वहीं बॉडी को केमिकल्स में रखने से बदबू आती है, इसके साथ ही कई बार हाथों में सुन्नता, आंखों में जलन, उसमें पानी आने जैसे एलर्जी के लक्षण देखने को मिलते हैं। इसलिए मानव आर्गन को प्लास्टीनेशन किया जा रहा है।
प्लास्टिनेशन एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग शरीर या शरीर के अंगों को संरक्षित करने के लिए शरीर रचना विभाग में किया जाता है जिसमें पानी और वसा को कुछ विशेष प्लास्टिक तरल पदार्थों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। इससे कम खर्च में जो पारदर्शी प्लास्टिक के नमूने प्राप्त होते हैं, जिन्हें छूआ जा सकता है, इन आर्गन के नमूनों में न तो बदबू आएगी और न ही इनके टूटने का डर होगा। यहां तक कि नमूने के अधिकांश गुणों को भी बनाए रखा जा सकता है। एक बार आर्गन प्लास्टिनेशन होने बाद यह लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं। उन्होंने बताया कि वैसे देश व विदेशों में बड़े-बड़े सेंटर्स पर अत्याधुनिक मशीनों द्वारा प्लास्टीनेशन किया जाता है। वह काफी खचीर्ला होता है जबकि उनकी टीम द्वार काफी कम खर्च में प्लास्टीनेशन किया गया है।
तीन प्रकार से होती है प्लास्टिनेशन
डा. सचिन शर्मा ने बताया कि प्लास्टिनेशन की तीन टेक्निक है। ल्यूमन कास्ट प्लास्टिनेशन, शीत और होल बॉडी प्लास्टिनेशन। अभी श्रीकृष्णा राजकीय महाविद्यालय के शरीर रचना विभाग में बकरी के फेफड़े, मानव के कान की हड्डियां और दांत को प्लास्टिनेशन किया गया है। आगे विभाग की योजना होल बॉडी प्लास्टिनेशन की है। इसके लिए वैक्यूम चैंबर और रेजिंग लिक्विड मशीन की आवश्यकता पड़ती है।
पढ़ाई के साथ-साथ म्यूजियम में विद्यार्थियों के लिए उपयोगी
सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष नांदल ने बताया कि प्लास्टिनेशन तकनीकी मेडिकल कॉलेजों के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। खासकर उन संस्थान के लिए जहां बॉडी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। इस तकनीक में आर्गन को अलग से रखरखाव की आवश्यकता नहीं है। लंबे समय तक विद्यार्थियों की पढ़ाई में यह सहायक होगी। संग्राहलय में मॉडल के रूप में भी रखा जा सकता है।
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