हरियाणा के इस गांव में पानी से लेकर मंदिर व श्मशान सब दो हिस्सों में बंटे

हरियाणा के इस गांव में पानी से लेकर मंदिर व श्मशान सब दो हिस्सों में बंटे
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गांव में एक महीने से मंदिर प्रवेश का मामला गरमाया हुआ है। अनुसूचित जाति वर्ग के परिवारों का मंदिर प्रवेश मुद्दा बना हुआ है। कई तरह के प्रतिबंधों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले हेमंत बताते हैं कि 2 नवंबर को मंदिर में प्रवेश किया जाएगा।

रोहतक : गांव ककराणा रोहतक से 11 किलोमीटर दूर है। गरनावठी गांव से होते हुए इस गांव में पहुंचा जाता है। गांव में करीब 2500 वोट हैं। गांव में नो ठोले (पान्ने) हैं। जो अलग-अलग गांवों के नाम से पहचाने जाते हैं। जिस ठोले में जिस गांव से आए लोग रहते हैं, उस ठोले का नाम उसी तरह का होता है। गांव में एक महीने से मंदिर प्रवेश का मामला गरमाया हुआ है। अनुसूचित जाति वर्ग के परिवारों का मंदिर प्रवेश मुद्दा बना हुआ है। कई तरह के प्रतिबंधों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले हेमंत बताते हैं कि 2 नवंबर को मंदिर में प्रवेश किया जाएगा। हेमंत ने बताया कि जब से गांव बसा है इस तरह के प्रतिबंध हैं। जैसे-जैसे युवा शिक्षित हुए कुछ बदलाव भी आया। लेकिन आज तक अनुसूचित जाति वर्ग के परिवारों को गांव के मुख्य मंदिर में पूजा पाठ नहीं करने दिया जाता। गांव के अधिकतर युवा ऐसे प्रतिबंध के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन कुछ परिवार टोका-टोकी करते हैं।

डर रहता है कि कोई टोक न दे।

अनुसूचित जाति के परिवारों के लिए अलग से नल लगाया गया है। यह नल रजबाहे के पास है। अनुसूचित जाती से संबंध रखने वाले सभी परिवार इसी नल से पानी भरते हैं। गांव के बाहर एक नल है उस पर कुछ लोग अपना अधिकार मानते हैं। एससी वर्ग के लोगों को पानी भरने या पीने की इजाजत नहीं। हालांकि पानी पीते भी हैं, लेकिन डर रहता है कि कोई टोक न दे।

भंडारे और शादी में भी अलग बैठकर खाना

ककराणा गांव में जब पंचायत की ओर से भंडारा लगता है तो भी एससी वर्ग के लोगों को अलग बैठाया जाता है। कोई व्यक्तिगत भंडारा होता है तो उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो भंडारे में एससी वर्ग के लोगों को बैठने देगा या नहीं। इसके अलावा गांव में किसी की शादी है तो उसमें भी अलग बैठाया जाता है या खाना घर ही पहुंचा दिया जाता है।

गांव के बाहर बनाया मंदिर

गांव में मुख्य रूप से बड़ा शिव मंदिर है। इस मंदिर में अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के प्रवेश पर पाबंदी है। हेमंत के अनुसार हमारे लिए गांव के बाहर एक अलग मंदिर बनवाया गया है। इस मंदिर का नाम सोमेश्वर महादेव मंदिर हे और एससी वर्ग से जुड़े सभी परिवार इसी मंदिर में पूजा पाठ कर सकते हैं।

चुनाव में सब घर आते हैं

जब भी सरपंची के चुनाव होते हैं तो उम्मीदवार एससी वर्ग के घर भी आते हैं। चाय पानी पीने की जरूरत हो तो पीते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद फिर पहले जैसे हालात हो जाते हैं।

2001 में उठी आवाज तो बनाया अलग मंदिर

एससी वर्ग के युवा पढ़े-लिखे तो मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध का विरोध भी होने लगा। 2001-02 में मंदिर में पूजा-अर्चना करने की आवाज उठने लगी तो एससी वर्ग के लिए गांव के बाहर एक अलग मंदिर बना दिया गया। शिव मंदिर में सिर्फ एससी वर्ग को छोड़कर सभी वर्गों के परिवार पूजा पाठ करने जाते हैं।

शिक्षा के साथ बदलाव तो आया, लेकिन उतना नहीं

गांव के ही एक बुजर्ग हैं। उनका जन्म 1964 में हुआ है। जैसे ही भेदभाव और अन्य तरह के प्रतिबंधों की बात करने लगे तो उनकी आंखों में आंसू छलक पड़े। बुुजर्ग बताते हैं कि मैं दुकान से सामान लेने भी जाता हूं तो मुझसे कहा जाता है कि अपने बच्चों को समझा लो कि अल्टीमेटम वापस लें। पहले से माहौल तो बदला है लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा बढ़ी है, बदलाव भी आया है। लेकिन जिस तरह का बदलाव आना चाहिए, उस तरह का नहीं आ पाया। सभी को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए।

कुछ परिवार करते हैं विरोध

हेमंत ने बताया कि गांव में एससी वर्ग पर नल से पानी पीने, मंदिर में प्रवेश करने का विरोध गांव के कुछ ही परिवार करते हैं। लेकिन उनकी देखा देखी दूसरे परिवार भी कई बार टोका-टोकी करते हैं। युवा वर्ग समझदार है और सभी मिलकर रहते हैं।

बाहर साथ खाते हैं, गांव में नहीं

गांव का युवा वर्ग पढ़ा लिखा है। उन्हें जातीवाद से कोई लेना-देना नहीं। अगर एससी वर्ग के युवा उन्हें गांव से कहीं बाहर यानी शहर, दूसरे जिले या राज्य में मिल जाता है तो सभी साथ में खाना-पीना करेंगे, साथ रहेंगे भी, लेकिन गांव में आते ही साथ खाना-पीना नहीं होता। बुजुर्गों और कुछ परिवारों का दबाव अब भी हावी रहता है।

दो शमशान घाट

गांव में दो शमशान घाट हैं। अमूमन हर गांव में ऐसा ही प्रबंध है। एससी वर्ग के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार एससी वर्ग के शमशान घाट में ही करना होगा। लेकिन युवा अब आवाज उठाने लगे हैं।

मंदिर में जाने की कोशिश की तो पीटा

गांव के एक युवक ने बताया कि जब मैं 6 या 7 साल का था। जाती या वर्ग के बारे में कोई समझ नहीं थी। मैं मंदिर में जाने लगा तो एक लड़के ने पिटाई कर दी। लेकिन यह तस्वीर आज भी ज्यादा बदली नहीं।

अपने बच्चों को मना लो नहीं तो हम फैसला लेंगे

गांव के युवाओं पर मंदिर में प्रवेश करने की चेतावनी के बाद गांव में हलचल शुरू हो गई है। 4 अक्टूबर, 10 और 11 अक्टूबर के बाद भी कई बार बड़ी बैठक हो चुकी हैं। पिछले सप्ताह सोमवार को इन युवाओं के बड़े बुजुर्गों भी बुलाया गया था। उन्हें कहा गया कि आपके पास 2-3 दिन का समय है। अपने बच्चों को समझा लो। इसके बाद अपना फैसला लेंगे। अब तक गांव की तरफ से मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के बारे में अभी तक कोई बात सामने नहीं आई। गांव के बाहर की ओर एक खेड़ा बना हुआ है। इस पर सभी वर्गों के लोग पूजा करते हैं। यहां किसी को मनाही नहीं है। लेकिन मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी है।




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