हरियाणा में महिलाओं पर बढ़ता उत्पीड़न : शगुन के दस रुपये न देने और बासमती चावल न बनाने पर मांग लिया तलाक

ओपी पाल : रोहतक
हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराधों का रिकार्ड अच्छा नहीं कहा जा सकता, जहां अजीब तरह के मामलों यानि जरा सी बात पर महिलाओं को हिंसा और अपराधों को शिकार होना पड़ रहा है। खासकर कोरोना काल में लॉकडाउन और उसके बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों ने ज्यादा गति पकड़ी है, उसकी गवाही आंकड़ दे रहे हैं। शायद यही वजह है कि प्रदेश में बढ़ते महिला हिंसा के मामलों में सबसे ज्यादा महिलाओं को दहेज की खातिर प्रताड़ना का शिकार बनाया गया है।
मसलन यानि हर दो घंटे में एक महिला दहेज प्रताड़ना की शिकार हो रही है। यही नहीं राज्य में हर दिन सात महिलाओं का अपहरण और छह के साथ छेड़छाड़ की वारदात हो रही हैं। जबकि कम से कम हर दिन चार महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की वजह से न जाने राज्य में कितने रिश्ते बिखरकर तार तार हुए और और कितनों का विश्वास टूटा है?
दहेज उत्पीड़न के मामलों ने ज्यादा रफ्तार पकड़ी
जैसे सब्जी में नमक मिर्च का कम या ज्यादा होना, बासमती चावल न बनाना, प्याज-लहुसन का सेवन न करना, ससुराल से शगुन में दस रुपये न मिलना, सास ससुर का कहना न मानना, मोबाइल पर बातें करना, पति का पत्नी और पत्नी का पति पर अन्य के साथ अवैध संबन्धों का शक करना, शराब या नशा करने का विरोध करना, प्रेम प्रसंग में धोखा देना, वीडियो बनाकर यौन शोषण करने जैसे अजीबो गरीब महिला अपराध दर्ज हो रहे हैं। राज्य में बलात्कार और यौन शोषण के मामलों में बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक शिकार बनाया गया है। जबकि आंकड़ो के मुताबिक राज्य में ऐसे मामलों से बढ़ते गृह कलेस में दहेज उत्पीड़न के मामलों ने ज्यादा रफ्तार पकड़ी है।
लॉकडाउन बना सबब
लॉकडाउन के दौरान 'वर्क फ्राम होम' के तहत नौकरी पेशे वालों के घरों में कैद रहे, तो इस दौरान महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसाओं में हुई बढ़ोतरी की पुष्टि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने शिकायतों के आधार पर की थी। मसलन वर्ष 2020 के पहले छह महीने में आयोग को महिालाओं के प्रति घरेलू हिंसा की 23,722 शिकायतों में हरियाणा भी अछूता नहीं रहा और महिलाओं के प्रति अपराधों के 10,978 मामलों के साथ हरियाणा देश में तीसरे स्थान पर नजर आया। हरियाणा पुलिस ने राज्य में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने का दावा किया और वर्ष 2020 में महिला अपराधों से संबंधित मामलों को सुलझाने सक्रीयता दिखाई है। पुलिस के जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में दुष्कर्म, छेड़छाड़ व दहेज हत्या के 96-96 प्रतिशत तो महिला अपहरण के 87 प्रतिशत केस सुलझाने का दावा किया है। हरियाण में वर्ष 2020 के दौरान महिलाओं के प्रति अपराधों के 10,978 मामले सामने आए हैं, जो अपराधों में गत वर्ष के मुकाबले बहुत कम हैं।
ऐसे मामलों ने चौंकाया
हिसार जिले में दर्ज मामलों में ससुराल से शगुन के दस रुपये न देने और बासमती चावल नहीं बनाने पर तलाक मांगा गया। वहीं प्याज लहुसन खाने का एक मामला अदालत तक तक जा पहुंचा। वहीं पत्नी की हत्या में मासूम बच्चे ने सिपाही पिता के खिलाफ चश्मदीद गवाह बनने का मामला भी सामने आया। भिवानी जिले में एक घर में दोनों बहनों में एक से बिगड़ी, तो दूसरी से भी तलाक की नौबत आई, कांउसलिंग के बाद बाममुश्किल बसे दोनों घर। अंबाला जिले में तो हद हो गई, जहां एक मामला 85 साल की बुजुर्ग महिला से बलात्कार का दर्ज हुआ।
दहेज उत्पीड़न के रिकार्ड मामले
हरियाणा पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 के दौरान महिलाओं के प्रति अपराध के दर्ज मामलो में बलात्कार के 1511, महिला अपहरण के 2697, छेड़छाड़ के 2396, दहेज हत्या के 252 और दहेज उत्पीड़न के 4122 सामने आए हैं। जबकि इससे पहले हरियाणा में वर्ष 2019 में महिलाओं के प्रति अपराध के 14683 मामले दर्ज हुए थे। इसके अलावा एक मामला अनुसूचित जाति के तहत दर्ज हुआ था।
दलित महिलाओं से दुष्कर्म
राज्य में वर्ष 2019 में 120 बलात्कार के दर्ज ऐसे मामले सामने आए, जो अनुसूचित जाति की महिलाओं से संबन्धित थे, जो वर्ष 2018 में 99 मामलों की तुलना में ज्यादा हैं। अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़कियों यानि 18 साल से कम बच्चों के बलात्कार के मामले वर्ष 2019 में 101 और 2018 में 72 मामले सामने आए। इन मामलों को पॉस्को अधिनियम की धारा 4 व 6 की आईपीसी की धारा 376 के तहत दर्ज किया गया है।
निर्भया कोष : महिला सुरक्षा को केंद्रीय वित्तीय मदद
महिलाओं की सुरक्षा संबन्धी परियोजनाओं के लिए लिए निर्भया कोष का इस्तेमाल करने के लिए हरियाणा के लिए वर्ष 2015-16 में 22.23 करोड़ रुपये की धनराशि का अनुमोदन किया गया था। इसमें वर्ष 2019-20 में 5.52 करोड़ दी गई। जबिक वर्ष 2018-19 में इस मद में कोई राशि नहीं दी गई। हालांकि इससे पहले राज्य को वर्ष 2017-18 में 2.53 करोड़ और वर्ष 2016-17 के दौरान 14.19 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। इसी प्रकार महिला सशक्तिकरण के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना के लिए भी राज्य सरकार को धनराशि का आवंटन किया गया है, जिसमें वर्ष 2020-21 में 13.39 लाख रुपये, वर्ष 2019-20 में 94.57 लाख रुपये तथा वर्ष 2018-19 में 6.91 लाख रुपये केंद्र सरकार से जारी किए गए।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश नजरअंदाज
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार एक भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जो शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से पालन कर रहा हो। यानी अधिकांश राज्य ऐसे हैं जो इनमें से ज्यादातर निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो ये सुधार बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पुलिस की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं, बोर्ड को स्थानांतरण और पोस्टिंग तय करने का अधिकार देते हैं, और वहीं ये उचित प्रशिक्षण मॉड्यूल परिवर्तन को भी सुनिश्चित करते हैं। अगर हम वास्तविक बदलाव चाहते हैं तो हमें सुधारों के साथ-साथ मानसिकता को भी बदलना होगा।
पुलिस में पर्याप्त नहीं महिला कर्मी
स्टेटस ऑफ़ पोलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट-2019 के मुताबिक भारत के पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी केवल 7.28 प्रतिशत है। इन महिलाओं में से 90 फीसदी कांस्टेबल हैं, जबकि एक फीसदी से कम ही पर्यवेक्षी जैसे उच्च पदों पर हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर महिला पुलिसकर्मी रजिस्टरों को मेंटेन करने, एफआईआर दर्ज करने और अन्य छोटे काम करते हैं, जबकि उनके समकक्ष के पुरुष पुलिसकर्मी इनवेस्टिगेशन करने, गश्त करने व वीआईपी सुरक्षा प्रदान करने जैसा कार्य करते हैं। इस प्रकार की कार्यप्रणाली खासतौर पर महिलाओं से संबंधित अपराधों के प्रति भी ऐसे अपराधों को नियंत्रित करने में उचित नहीं है।
वर्ष दर्ज मामले लंबित मामले दोष सिद्ध दर
2014 9010 ------- ---------
2015 9511 15197 18.1%
2016 9839 16440 13.4%
2017 11370 18148 15.4%
2018 14326 20580 17.1%
2019 14683 23456 16.1%
2020 10,978 ------- -------
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