दीपावली पर झज्जर के बने दीये गुजरात और महाराष्ट्र को भी रोशन करेंगे

दीपावली पर झज्जर के बने दीये गुजरात और महाराष्ट्र को भी रोशन करेंगे
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दीपावली (Deepawali) के आगमन को लेकर मिट्टी के दीए बनाने वाले कामगारों के चेहरे पर रौनक लौट रही है। कोरोना काल के बाद आर्थिक संकट (Economic Crisis) से जूझ रहे ये शिल्पकार अब दीये बनाने में जुटे हैं। उन्हें यकीन है कि अनलॉक 5 के दौरान व्यापार के रास्ते खुले है और राम जी की कृपा से दीपावली पर उनके हालात सुधरेंगे।

कुमार राकेश कायत : झज्जर

मिट्टी की झझरी से देशभर में मशहूर हुए झज्जर के दीयों की जगमगाहट भी अब दक्षिण भारत के महाराष्ट्र तक पहुंच चुकी है। यहां से बने मिट्टी के दीये हरियाणा के अलावा, राजस्थान, यूपी, गुजरात व महाराष्ट्र की माया नगरी मुंबई को रोशन के लिए तैयार है।

दीपावली के आगमन को लेकर मिट्टी के दीए बनाने वाले कामगारों के चेहरे पर रौनक लौट रही है। कोरोना काल के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे ये शिल्पकार अब दीये बनाने में जुटे हैं। उन्हें यकीन है कि अनलॉक 5 के दौरान व्यापार के रास्ते खुले है और राम जी की कृपा से दीपावली पर उनके हालात सुधरेंगे। कृष्ण मिट्टी कला उद्योग चलाने वाले विनोद कुमार, सुनील कुमार व जितेंद्र ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनका कार्य ठप हो चुका था। शिल्पकला से रोजी-रोटी चलाने वाले करीब 150 परिवारों को खाने के लाले पड़ गए थे। बामुश्किल अब जीवन पटरी पर आने लगा है। दीपावली आगमन के साथ आर्थिक स्थिति मजबूत होने की भी उम्मीद है। बाहरी प्रदेशों से दीया बनवाने हेतु व्यापारियों के आर्डर आने लगे हैं।

एक गाड़ी में आते हैं करीब 4 लाख दीये : शिल्पकार विनोद कुमार ने बताया कि एक गाड़ी में करीब 4 लाख दीये आ जाते हैं। अभी तक करीब एक दर्जन गाडियों के दीये के आर्डर महाराष्ट्र व गुजरात से आ चुके हैं जिनमें से 8 गाडि़यों के दीये वे तैयार करके भेज चुके हैं। उन्होंने बताया कि वे इतने दीये समय रहते तैयार करवाने के लिए जिले के मांडौठी, छुड़ानी, छोछी आदि गांवों में बसे अन्य साथियों की भी मदद लेते हैं। आर्डर पूरा करने का जज्बा यह है कि जहां वे अपने भाईयों के साथ मिलकर माल तैयार करने में जुटे रहते हैं वहीं उनके बच्चे भी दीयों की रंगाई-पुताई आदि में तन्मयता से भागीदारी करते हैं।

50 पैसे से लेकर 50 रुपये तक आकर्षक दीये है उपलब्ध : शहर के छावनी मोहल्ला में दुकान लगाकर दीये, गुल्लक, सुराही, मटके बेचने वाले महावीर व परमानंद ने बताया कि इस बार हालांकि लोगों की आर्थिक हालत खस्ता है। फिर भी उन्हें 5 लाख दीये की बिक्री का अनुमान है। परमानंद ने बताया कि वे स्वयं दीये नहीं बनाते लेकिन अपने पुश्तैनी कारोबार को बरकरार रखने के लिए अब अन्य साथियों से रेडीमेड दीये मंगवा लेते हैं।

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