जजपा को भाजपा से शिवसेना जैसा खतरा ? क्या होगा हरियाणा की राजनीति में, जानिए

जजपा को भाजपा से शिवसेना जैसा खतरा ? क्या होगा हरियाणा की राजनीति में, जानिए
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इन दिनों एक सवाल हरियाणा की राजनीतिक फिजां में तैरता नजर आ रहा है। सवाल ये है कि क्या शिवसेना की तरह हरियाणा में भी भारतीय जनता पार्टी जजपा को खा जाएगी? क्या आने वाले समय में भाजपा जजपा में केवल तीन ही विधायक छोड़ेगी।

धर्मेंद्र कंवारी : रोहतक

इन दिनों एक सवाल हरियाणा की राजनीतिक फिजां में तैरता नजर आ रहा है। सवाल ये है कि क्या शिवसेना की तरह हरियाणा में भी भारतीय जनता पार्टी जजपा को खा जाएगी? क्या आने वाले समय में भाजपा जजपा में केवल तीन ही विधायक छोड़ेगी और सात विधायक भाजपा में अलग पार्टी बनाकर चले जाएंगे? क्या आने वाले समय में जजपा में केवल दुष्यंत चौटाला, उनकी मां नैना चौटाला और मंत्री अनूप धानक ही बचने वाले हैं? क्या ऐसा होगा? क्या ये संभव है? जानिए इसकी कितनी संभावनाएं है।

सबसे पहले यह सोचने की बात है कि अब देश में डेढ ही सबसे बड़ी पार्टियां बच गई हैं। एक तो विशाल धनराशि व संसाधनों वाली भारतीय जनता पार्टी, जिसका नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह के हाथों में है और आधी पार्टी कांग्रेस बची है जो गांधी परिवार से बाहर निकलकर राजनीति में आगे बढने का साहब शायद ही कभी ना जुटा पाए। उसका उत्थान होगा तो गांधी परिवार के साथ ही होगा, नहीं तो नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस लालची नेताओं से भरी पड़ी है, भाजपा जब चाहे किसी को भी अपने में मिला लेती है। अब इनके अलावा देश में जितनी भी पार्टिया हैं वो छिल्लर हैं। अधिकतर परिवारवाद के पेड पर लटके फलों की तरह हैं, जो लालच में किसी भी बड़ी पार्टी की झोली में लटकने को तेयार बैठी होती हैं।

हरियाणा की राजनीति की बात करें तो क्या जजपा को भाजपा खा जाएगी? इस सवाल का जवाब मुक्कमल समझने के लिए पिछले ट्रेंड पर जाकर देखना होगा, इसको अगर शिवसेना के उदाहरण से जोड़कर देखेंगे तो सही जवाब तक नहीं पहुंच पाएंगे। गठबधंन की राजनीति भारतीय राजनीति का वो चेहरा है जिसे ना तो कांग्रेस और ना ही भाजपा कभी छोड़ सकती हैं। भले ही ये दोनों पार्टियां दिल से चाहती हों कि मैदान में केवल दो ही खिलाड़ी बच जाएं लेकिन क्षेत्रवाद, धर्म, जातिवाद और व्यक्तित्वाद भारत की राजनीति पर इतना हावि है कि आने वाले कई सालों तक राज्यों में क्षेत्रवादी पार्टियों का वजूद खत्म कर पाना इन दोनों ही पार्टियों के लिए संभव नहीं है।

महाराष्ट्र में शिवसेना है तो यूपी में सपा, बसपा है। उड़ीसा में नवीन पटनायक की बीजद है, नीतिश कुमार की पार्टी बिहार में हैं, पश्चिम बंगाल में ममता दीदी की तृणमुल कांग्रेस है, आंध्रा में जगन रेड्डी की पार्टी है। पंजाब में अकाली हैं और हरियाणा में पहले इनेलो थी और अब उसकी जगह जजपा ने ले रखी है। इन पार्टियों का जुडाव लोकल कार्यकर्ता से ज्यादा रहता है और इनके अपने नियम कानून होते हैं इसलिए ये पार्टियां भारत में वजूद नहीं खोती हैं।

कांग्रेस ने इन पार्टियों को अपने साथ लेकर यूपीए बनाया और दस साल तक शासन किया। भाजपा ने एनडीए बनाया और पूरी मैजोरिटी लेने के बावजूद क्षेत्रीय पार्टियों को साथ लेकर ही सरकारें बनाई और चलाई हैं। बीच बीच में अपनी जरूरत के हिसाब से शिवसेना जैसी पार्टी को तोड़ा जाता है और हरियाणा में पहले इनेलो को तोड़ा गया और उसमें से ये जेजेपी निकली है। इस तरह से पहली बात तो ये है कि क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करने की स्थिति में आज भाजपा भी नहीं है और ना ही कभी कांग्रेस थी। इस सच्चाई के साथ ही दोनों पार्टियों को जीना होगा और उस वक्त का इंतजार करना होगा कि जमकर भ्रष्टाचार करने वाले ये क्षेत्रीय पार्टियां खुद ही लोगों की नजरों से गिरकर खत्म हो जाए।

अब बात करते हैं उस मूल सवाल पर कि क्या शिवसेना की तरह आने वाले समय में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के विधायकों को तोड़कर भाजपा अपने में मिला लेगी? तो इस सवाल का जवाब आप मुझसे लेना चाहें तो राजनीति को मैं जितना समझ पाया हूं उसके हिसाब से कह सकता हूं कि नहीं ऐसा नहीं होगा? जजपा का अस्तित्व मिटाकर भाजपा खुद को हरियाणा में मजबूत कर ले इसकी कोई भी वजह मैं दूर दूर तक नहीं देख पा रहा हूं और इसके पीछे कारण हैं। हो सकता है आप अलग तरह से सोचते हैं तो कमेंट करके अपनी राय जरूर देना।

अगर आप भारतीय जनता पार्टी का हरियाणा में ट्रेंड देखें तो जितने भी भ्रष्टाचार के आरोप इस सरकार पर लगाए जा रहे हें उनके निशाने पर केवल जननायक जनता पार्टी है भारतीय जनता पार्टी नहीं है। यानी कि मनोहर लाल खट्टर की सरकार की सहयोगी जननायक जनता पार्टी को ही एंटी इंकमबेंसी का सबसे ज्यादा विरोध आने वाले समय में झेलना होगा और भाजपा के कोर वोटर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है तो ऐसी पार्टी को तोड़कर अपने में मिलाने से ज्यादा फायदा ये है कि उसको अपने साथ जोड़े रखो। दूसरा जननायक जनता पार्टी का कोर वोटर जाट है और आज की स्थितियों में जाट इस पार्टी से बहुत दूर चला गया है। इतना दूर कि आने वाले दस पंद्रह सालों तक भी इसके लौटने की उम्मीद नहीं है तो ऐसी स्थिति में तो ये पार्टी खुद ब खुद ही खत्म हो जाएगी तो भाजपा को ये तोहतम लेने की भी जरूरत नहीं है कि उन्होंने जजपा को खत्म कर दिया।

तीसरा सबसे बड़ा कारण जजपा के फिलहाल बने रहने का ये है कि दुष्यंत चोटाला और उनके भाई दिग्विजय चौटाला फ्यूचर के नेता हैं। वो फुल टाइमर राजनेता हैं। आईटी सैल की ताकत को समझते हैं और उसका इस्तेमाल करना जाते हैं। अच्छे वक्ता हैं और मुद्दों पर पकड़ है। वो फिलहाल अपने कोर वोट बैंक के बेशक खलनायक हों आने और कुछ सालों तक उनको इसकी सजा भी मिलेगी लेकिन वो रिवाइव जरूर कर लेंगे। हरियाणा की जनता की मेमोरी बहुत शार्ट होती है और यही जजपा की संजीवनी है। शिवसेना के साथ भाजपा ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है और वहां पर जो सिस्टम है उसके मुकाबले तो हरियाणा कुछ भी नहीं है इसलिए यहां मुफ्त में बदनामी भाजपा नहीं लेने वाली है।

दुष्यंत चौटाला उद्धव की तरह आंख में आंख डालकर राज करने वाले बंदे नहीं हैं, परिवार की चौथी पीढी में है जो राज भोग रहे हैं तो वो जान गए हैं जिसके साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं उसके नेताओं को कैसे खुश रखना है। विधायकों के लालच से वो भी परिचित हैं उनको भी पता है कि पार्टी एक झटके में टूट सकती है लेकिन भाजपा हो या कांग्रेस उनके लिए पार्टी के साथ गठबंधन करना आसान सौदा है, पार्टी के लालची विधायकों को तोड़कर सरकार बनाना एक महंगा और सिरदर्दी वाला काम है इसलिए वो अक्सर ऐसा नहीं करते। हरियाणा में हजकां या महाराष्ट्र में शिवसेना एक आध अवपाद जरूर मिल जातेह लेकिन उसके पीछे बहुत गहरी रणनीति होती है। हां, भविष्य में ये जरूर हो सकता है जननायक जनता पार्टी का विलय समय देखकर दुष्यंत चौटाला भारतीय जनता पार्टी में करवा दें। हालांकि ये भविष्य के गर्भ में क्योंकि फिलहाल तो वो गठबंधन सहयोगी बनकर ही खुश हैं। अभी चुनाव बहुत दूर हैं और सत्ता में बैठे लोगों के लिए एक एक दिन बहुत मायने रखता है। इसलिए हरियाणा में शिवसेना की कहानी दोहराए जाने आसार नहीं है।

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